अग्निधर्मा पत्रकारिता का अयोध्या संघर्ष रक्त रंजित था : तरुण विजय

अग्निधर्मा पत्रकारिता का अयोध्या संघर्ष रक्त रंजित था : तरुण विजय
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अग्निधर्मा पत्रकारिता का अयोध्या संघर्ष रक्त रंजित था : तरुण विजय


अयोध्या, 18 जनवरी (हि स)। राम मंदिर आंदोलन के प्रत्यक्षदर्शी एवं पांचजन्य के दो दशक तक मुख्य संपादक रहे तरुण विजय ने कहा किअयोध्या आंदोलन में भाषायी भारतीय पत्रकारिता ने सत्य और जनसंघर्ष का साथ देने की भारी क़ीमत चुकायी। उन्होंने बताया कि मैं रामजन्मभूमि आंदोलन के समय पांचजन्य का मुख्य संपादक था और आंदोलन को वैचारिक बल तथा संघर्ष का सत्य वृत्त देने का दायित्व हम पर था। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने घोषित कर दिया था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता। सुभाष जोशी नाम के खूंखार आईपीएस को वहां एसएसपी लगाया था। विश्व हिंदू परिषद के संगठन सेनापति अशोक सिंहल को अयोध्या जाना था। वे पांचजन्य का संवाददाता पहचान पत्र मुझसे बनवा कर के गये। गन्ने के खेतों में वीर सत्याग्रही कारसेवकों ने रात बिताकर अयोध्या प्रवेश का जोखिम उठाया। अंग्रेज़ी के पत्रकार खुलेआम हिंदू विरोध पर उतर आये थे और पांचजन्य जैसे हिन्दी अख़बारों की अयोध्या की सत्य रिपोर्टिंग के लिए आलोचना करते थे। केवल हिन्दी पत्रकारों ने रक्त रंजित अयोध्या की आंखों देखी रिपोर्टिंग करने का साहस दिखाया था। कोठारी बंधुओं सहित बड़ी संख्या में अयोध्या में निहत्थे कारसेवकों को मुलायम सिंह की पुलिस ने मारा और सब्ज़ियों के ठेलों पर लाशें बांधकर सरयू में फेंका। मैं और आर्गेनाइज़र के संपादक बालशंकर हनुमान गढ़ी में सुबह 30 अक्तूबर को थे तो हमारी आंखों के सामने एसएसपी सुभाष जोशी कारसेवकों के समूह की बुरी तरह पिटाई करने लगे, हम दोनों ने जोशी का सामना किया, जो भी कठोर शब्द हो सकते थे सुनाए वह खिसिया कर वापस चला गया। पांचजन्य में उसकी रिपोर्टिंग की।

तरुण विजय ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि अयोध्या संघर्ष हमारे लिए सत्य रिपोर्टिंग का प्राण घातक संघर्ष बन गया था। वैचारिक अस्पृश्यता , हिंदू विचारधारा के विरुद्ध सेकुलर अंग्रेज़ी पत्रकारों का खुलेआम हमलावर, अयोध्या समर्थकों के लिए भीषण गलियों का उपयोग, रामजन्मभूमि पर शौचालय बनाने के सुझाव दिये जाते थे। अयोध्या में सत्य की विजय ने उन सबको आज मंदिर का समर्थन करने पर विवश कर दिया है जो भारतीय भाषाई पत्रकारिता की जीत है। उस अध्याय को लिखा जाना शेष है।

अयोध्या में सत्य और सत्ता में संघर्ष हुआ

तरुण विजय ने कहा कि सत्ता भारतीय सत्याग्रही कार सेवकों पर जुल्म छिपाना चाहती थी कलम का धर्म था सत्ता के अहंकार को तोड़ने हेतु सच को बताना। अयोध्या के मार्ग में बढ़ रहे कारसेवकों को इतनी बड़ी संख्या में गिरफ़्तार किया गया कि सब्जी मंडी खाली कराकर बाड़े बंदी की गयी। वहां जब मैं रिपोर्टिंग के लिए गया तो गिरफ़्तार किए गये आचार्य विष्णु कांत शास्त्री बोले- देखो रामलला का खेल सब्ज़ी मंडी बन गयी जेल।

हिन्दी के पत्रकारों ने जान की बाज़ी लगाकर यह काम किया वरना बाबरी के मनहूस झूठ को वोट बैंक राजनीति कभी उजागर न होने देती। उस समय मोबाइल फोन नहीं थे लेकिन वीडियो कैमरों की पत्रकारिता में साधना , न्यूज़ ट्रैक जैसे इलेक्ट्रॉनिक चैनलों और हिन्दी की लिखित रिपोर्टिंग ने हिंदू विरोधी घृणा फैलाने वालों के कपट को चलने नहीं दिया। 22 जनवरी के दिन न केवल एक ऐतिहासिक मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा है बल्कि सत्य पर टिकी हिन्दी पत्रकारिता का भी विजय दिवस है ।

हिन्दुस्थान समाचार/ बृजनंदन

/सियाराम

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