कासगंज में शिव कांवड़ की गंगाजली बना रहे रफीक और आमिर
- आग में कांच तपाकर दे रहे गंगाजली का स्वरूप
- महाशिवरात्रि और सावन माह में किया जाता है निर्माण
कासगंज, 28 फरवरी (हि.स.)। महाशिवरात्रि पाव आते ही तीर्थ नगरी सोरों क्षेत्र के गांव कादरबाड़ी में कांवड़ में रखे जाने वाली कांच की गंगा जली तैयार की जाती है। करीब एक दर्जन मुस्लिम परिवार भगवान शिव को अर्पित किए जाने वाले गंगाजल को सहेज कर रखने वाली गंगाजली का निर्माण करते हैं। तैयार गंगाजली महाशिवरात्रि और सावन माह के दौरान विभिन्न तीर्थ स्थलों को भेजी जाती हैं। गांव के मुस्लिम परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इस कार्य को करते चले आ रहे हैं।
गंगा और जमुना के बीच स्थित ब्रज क्षेत्र का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल शूकर क्षेत्र सोरों विभिन्न उपलब्धियां से परिपूर्ण है। यहां धार्मिक आस्थाओं के अलावा आपसी सद्भाव के भी तमाम प्रमाण देखने को मिलते हैं। क्षेत्र में स्थित करीब दो हजार की आबादी वाले गांव कादरबाड़ी में परंपरागत ढंग से गंगाजली का निर्माण किया जाता है। यहां करीब एक दर्जन मुस्लिम परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी से गंगाजली बनाते चले आ रहे हैं। विभिन्न प्रकार के नाप की गंगाजली तैयार की जा रही है। इन दिनों यह क्रम लगातार जारी है। गंगाजली को तैयार करने वाले पप्पू का कहना है कि उनके दादा इस कार्य से जुड़े हुए थे। उनकी तीसरी पीढ़ी गंगाजली का निर्माण कर अपने रोजगार का साधन बनाएं हुए हैं। यही के निवासी इकबाल का कहना है कि भले ही इस कार्य में मेहनत बहुत है लेकिन उन्हें उसे समय अनुभूति महसूस होती है। जब उनके हाथ से बनी गंगाजली कांवड़ में रखकर श्रद्धालु कांवड़ियें अपने गंतव्य तक पहुंचाते हैं और भगवान शिव पर इसी कांवड़ गंगा जली से जल चढ़ाते हैं। गांव में और भी परिवार इस कार्य को कर रहे हैं। घर की महिलाएं बच्चे भी अपने परिवार के मुखिया का इस कार्य में हाथ बांटते हैं। इसके अलावा इन परिवारों के रोजगार का साधन कृषि कार्य भी है।
फिरोजाबाद से लाते हैं कच्चा माल
गंगाजली तैयार करने के लिए कांच की आवश्यकता रहती है। फिरोजाबाद जिले से कांच की सप्लाई तीर्थ नगरी तक पहुंचती है। कारीगर इस कांच को भट्टी में तपाकर फुकनी से फूंक मार गंगाजली का आकार देते हैं और विभिन्न नाप की गंगा जली तैयार करते हैं।
त्योहारों पर ही चलता है कार्य
गंगाजली तैयार करने के कार्य में जुटे रफीक का कहना है कि यह कार्य साल भर नहीं चलता है। महाशिवरात्रि पर्व और सावन माह के दौरान ही कर में तेजी आती है। तभी गांव में भट्टियां संचालित की जाती हैं। जिनके माध्यम से गंगाजली तैयार की जाती है। इस दौरान ही इस कार्य से में जुटे परिवार साल भर की कमाई कर लेते हैं। उनके द्वारा तैयार की गई गंगाजली दूर-दराज स्थित तीर्थ नगरों तक जाती है। कारीगर आमिर का कहना है कि भले ही हमें इस कार्य से बहुत बढ़ियां कमाई नहीं होती है लेकिन फिर भी दाल रोटी का इंतजाम हो जाता है। गंगाजली के नाप के अनुसार ही उसकी बिक्री खरीदी जाती है और पैसा मिलता है।
हिन्दुस्थान समाचार/पुष्पेंद्र सोनी/मोहित
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