काशी के मठ मंदिरों में गुरु पूर्णिमा की तैयारी, गुरु दरबार में पहुंचने लगे श्रद्धालु
वाराणसी, 20 जुलाई (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में गुरु पूर्णिमा पर्व पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाने की तैयारी है। पर्व के एक दिन पहले शनिवार को मठ, मंदिरों, आश्रमों के साथ गुरु घरानों में साफ सफाई और सजावट को अन्तिम रूप दिया गया। अघोर पीठ श्री सर्वेश्वरी समूह संस्थान देवस्थानम्, अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम पड़ाव, रविन्द्रपुरी स्थित क्रीं कुंड, गढ़वाघाट आश्रम, अस्सी डुमराव बाग स्थित काशी सुमेरू पीठ, मणिकर्णिकाघाट स्थित सतुआ बाबा आश्रम, सामनेघाट स्थित ओशो आश्रम, परमहंस आश्रम, कश्मीरीगंज स्थित श्रीराम जानकी मंदिर में गुरु वंदन के लिए श्रद्धालु एक दिन पहले से ही पहुंचने लगे हैं। आश्रम और मठ भक्तों से गुलजार है। गुरु दरबार में भजन कीर्तन के पहले श्रद्धालु स्वच्छता अभियान में भी भागीदारी कर रहे हैं।
गौरतलब हो कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला पर्व रविवार 21 जुलाई को है। पूर्णिमा तिथि 20 जुलाई शनिवार को शाम 6 बजे से शुरू होकर 21 जुलाई 3 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि 21 जुलाई को ही गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। लगभग 3000 ई.पूर्व पहले आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था। वेद व्यास जी के सम्मान में हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन वेद व्यास ने भागवत पुराण का ज्ञान भी दिया था। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। सनातन संस्था के गुरुराज प्रभु ने बताया कि इस दिन गुरुतत्व अन्य दिनों की तुलना में 100 गुना अधिक कार्यरत रहता है। ऐसे में सभी साधकों और आम लोगों को भी आध्यात्मिक उन्नति के लिए अपने गुरु का आर्शिवाद लेना चाहिए।
काशी सुमेरूपीठ के पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती ने बताया कि सनातनी भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उनके बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव मानी गई है। सनातन धर्म में गुरु और ईश्वर दोनों को एक समान माना गया है। वेदों में भी गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप बताया गया है। ''गुरु ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः'' अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। हम सभी को अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करना चाहिए और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। गुरु के आशीर्वाद से ही हमारा जीवन सार्थक और सफल होगा।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी / दिलीप शुक्ला
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