प्रतिवर्ष दो करोड़ श्रद्धालु चित्रकूट पहुंच करते हैं 'कामदगिरि पर्वत' की परिक्रमा
- विश्व के अलौकिक पर्वत के दर्शन मात्र से पूरी होती है श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं
-भगवान श्रीराम के वरदान से मनोकामनाओ के पूरक बने थे कामदगिरि
चित्रकूट ,16 अप्रैल (हि.स.) उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच विंध्य पर्वत शृंखला के मध्य बसा विश्व प्रसिद्ध पौराणिक तीर्थ चित्रकूट जहां भगवान श्रीराम ने सीता और अनुज लखन के साथ वनवास काल का साढे़ 11 वर्ष का समय व्यतीत किया था। पर्वतराज सुमेरु के शिखर कहे जाने वाले चित्रकूट गिरि को कामदगिरि होने का वरदान प्रभु श्री राम ने वरदान दिया था। तभी से विश्व के इस अलौकिक पर्वत के दर्शन मात्र से आस्थावानों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।प्रतिवर्ष देश भर से करीब दो करोड से अधिक श्रद्धालु चित्रकूट पहुंच पतित पावनी मां मंदाकिनी में आस्था की डुबकी लगाने के बाद मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कामदगिरि पर्वत की पंचकोसी परिक्रमा लगाते है।
आदि तीर्थ के रूप में सुमार भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट अनादि काल से अत्रि,वाल्मीकि समेत तमाम महान ऋषि-मुनियों की तपस्थली रही है। त्रेता युग में जब अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्री राम पत्नी सीता व भ्राता लक्ष्मण सहित 14 वर्ष के वनवास के लिए निकले थे तब वे आदि ऋषि वाल्मीकि की प्रेरणा से तप और साधना के लिए चित्रकूट आए थे।प्रभु श्री राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ पावन चित्रकूट गिरि पर अपने वनवास के साढे़ 11 वर्ष व्यतीत किए थे। कामदगिरि की महिमा का बखान करते हुए कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत मदन गोपाल दास महाराज बताते हैं कि चित्रकूट का कामदगिरि पर्वत विश्व का वह पावन धाम हैं जहां प्रभु श्री राम पत्नी और अनुज लक्ष्मण के साथ नित्य निवास करते हैं। इसी पर्वत पर तप और साधना कर प्रभु श्री राम ने आसुरी ताकतों से लड़ने की दिव्य शक्तियां प्राप्त की थीं।जब भगवान श्रीराम चित्रकूट को छोड़कर जाने लगे तो चित्रकूट गिरि ने भगवान राम से याचना की कि ’हे प्रभु आपने इतने वर्षाें तक यहां वास किया। जिससे ये जगह पावन हो गई,लेकिन आपके जाने के बाद मुझे कौन पूछेगा? तब प्रभु श्रीराम ने चित्रकूट गिरि को वरदान दिया कि अब आप कामद हो जाएंगे। यानी इच्छाओं (मनोकामनाओं) की पूर्ति करने वाले हो जाएंगे। जो भी आपकी शरण में आएगा, उसके सारे विषाद नष्ट होने के साथ-साथ सारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी और उस पर सदैव राम की कृपा बनी रहेगी। जैसे प्रभु राम ने चित्रकूट गिरि को अपनी कृपा का पात्र बनाया, कामदगिरि कामतानाथ बन गए । इस अलौकिक पर्वत की महिमा गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में भी की हैं।उन्होंने लिखा है कि कामदगिरि भे रामप्रसादा ,अवलोकत अपहरत विषादा। यानी जो भी इस पर्वत के दर्शन करेगा, उसके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
वहीं रामायणी कुटी के महंत राम हृदय दास,प्राचीन मुखारबिंद के प्रधान पुजारी भरत शरण दास महाराज और सुप्रसिद्ध भागवताचार्य एवं गायत्री शक्ति पीठ के व्यवस्थापक डॉ. रामनारायण त्रिपाठी तपोभूमि चित्रकूट की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि चित्रकूट आध्यात्मिक और धार्मिक आस्था का सर्वश्रेष्ठ केंद्र है। यह वह भूमि है जहां पर ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों देव का निवास है। भगवान विष्णु ने श्री राम रूप में यहां वनवास काटा था, तो ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के लिए यहां यज्ञ किया था और उस यज्ञ से प्रगट हुआ शिवलिंग धर्मनगरी चित्रकूट के क्षेत्रपाल के रूप में आज भी विराजमान है। विश्व के करोड़ों हिन्दुओें के आराध्य भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ कामदगिरि पर्वत पर निवास कर अपने वनवास काल का साढ़े ग्यारह वर्ष व्यतीत किए थे। वनवास काल में राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ इतनी लंबी अवधि तक निवास किया था कि चित्रकूट के कण-कण में राम, लक्ष्मण और सीता के चरण अंकित हो गये हैं। कामदगिरि पर्वत को लेकर प्रचलित किवदंती का उल्लेख करते हुए सुप्रसिद्ध भागवताचार्य डॉ. राम नारायण त्रिपाठी बताते हैं कि वायु पुराण में चित्रकूट गिरि की महिमा का उल्लेख है। सुमेरू पर्वत के बढते अहंकार को नष्ट करने के लिए वायु देवता उसके मस्तक को उड़ा कर चल दिये थे।किंतु उस शिखर पर चित्रकेतु ऋषि तप कर रहे थे। शाप के डर से वायु देवता पुनः उस शिखर को सुमेरु पर्वत पर स्थापित करने के लिए चलने लगे। तभी ऋषि राज ने कहा कि मुझे इससे उपयुक्त स्थल पर ले चलो, नहीं तो शाप दे दूंगा। सम्पूर्ण भूमंडल में वायु देवता उस शिखर को लेकर घूमते रहे,जब इस भूखंड पर आये तो ऋषि ने कहा कि इस शिखर को यहीं स्थापित करो। चित्रकेतु ऋषि के नाम से ही इस शिखर को नाम चित्रकूट गिरि पड़ा था।
सुप्रसिद्ध भागवताचार्य नवलेश दीक्षित बताते हैं कि धनुषाकार कामदगिरि पर्वत के चार द्वार हैं,जिस के उत्तर द्वार पर कुबेर,दक्षिणी द्वार पर धर्मराज,पूर्वी द्वार पर इंद्र और पश्चिमी द्वार पर वरुण देव द्वारपाल हैं। इसके अलावा कामदगिरि पर्वत के नीचे क्षीरसागर है। जिसके अंदर उठने वाले ज्वार-भाटा से कभी-कभार कामतानाथ भगवान के मुखारविंद से दूध की धारा प्रवाहित होती है।विविध विशेषताओं के कारण ही कामदगिरि पर्वत के दर्शन और परिक्रमा के लिए हर माह अमावस्या पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। वहीं पांच दिवसीय दीपदान मेले में श्रद्धालुओं की यह संख्या 40 से 50 लाख तक पहुंच जाती है।
जिला पर्यटन अधिकारी अनुपम श्रीवास्तव का कहना है कि चित्रकूट का पर्यटन विकास केंद्र और प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में है। रामघाट और कामदगिरि परिक्रमा पर सुंदरीकरण कराया जा चुका है। बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के चालू होने के बाद चित्रकूट आने वाले श्रद्धालुओं की सख्या में बढ़ोतरी हुई है। जल्द ही चित्रकूट एयरपोर्ट चालू होने वाला है। जिसके बाद एयर कनेक्टविटी बढ़ने से विदेशी पर्यटकों का भी आवागमन बढ़ेगा, जिससे क्षेत्र के हजारों बेरोजगारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के नए अवसर मिलेंगे।
हिन्दुस्थान समाचार /रतन

