प्रगतिशील किसानों को डीएसआर और जीरो टिलेज प्रणाली का मिला प्रशिक्षण

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प्रगतिशील किसानों को डीएसआर और जीरो टिलेज प्रणाली का मिला प्रशिक्षण


वाराणसी, 26 मार्च (हि.स.)। अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र में दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन बुधवार को हुआ। जिसमें उत्तर प्रदेश के पूर्वोतर जिलों गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, वाराणसी, जौनपुर, चंदौली और गाजीपुर से आए 70 प्रगतिशील किसानों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को खेती की नई और उन्नत तकनीकों की जानकारी देकर उन्हें इन तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित करना था।

इसके पहले कार्यक्रम का उद्घाटन आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने किया। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, विश्व बैंक, बायर क्रॉप साइंस, सवाना समेत कई सार्वजनिक और निजी संस्थानों के विशेषज्ञ भी मौजूद रहे। प्रशिक्षण के दौरान किसानों को डायरेक्ट सीडेड राइस और जीरो टिलेज व्हीट जैसी नई तकनीकों के बारे में बताया गया, जिससे खेती की लागत घटाने, पानी की बचत करने और पैदावार बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

डॉ. सुधांशु सिंह ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में कृषि की बहुत संभावनाएं हैं। अगर किसान नई तकनीकों को अपनाते हैं, तो उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। आइसार्क किसानों को बेहतर तकनीक, बाजार से जुड़ाव और कार्बन क्रेडिट जैसे लाभों तक पहुंच दिलाने के लिए कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है।

प्रशिक्षण के दौरान कृषि वैज्ञानिकों और निजी कंपनियों के विशेषज्ञों ने खाद-उर्वरक प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण और मशीनों के उपयोग के बारे में जानकारी दी। बायर क्रॉप साइंस और सवाना जैसी कंपनियों के विशेषज्ञों ने उन्नत बीज, खरपतवार नियंत्रण के लिए आधुनिक दवाओं और मशीनों के महत्व को समझाया, जिससे किसान पारंपरिक खेती के बजाय कम मेहनत और अधिक फायदेमंद तरीकों को अपना सकें।

इरी के डॉ. मलिक ने किसानों और वैज्ञानिकों के आपसी सहयोग को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह प्रशिक्षण सिर्फ जानकारी देने के लिए नहीं है, बल्कि किसानों को नई तकनीकों को आत्मविश्वास के साथ अपनाने के लिए तैयार करने का भी अवसर है।

विश्व बैंक के प्रतिनिधि डॉ. अंजलि सुनील परसनीस ने उत्तर प्रदेश में डीएसआर को बढ़ावा देने वाली विश्व बैंक की योजनाओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि

हम 12 जिलों में डीएसआर को बढ़ावा देने के लिए किसानों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और 1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इस तकनीक को अपनाने का लक्ष्य है।

इस प्रशिक्षण का सबसे दिलचस्प हिस्सा फील्ड विजिट था, जहां किसानों ने आइसार्क के मैकेनाइजेशन हब में जाकर खुद मशीनों के संचालन, बीज ड्रिल की सेटिंग और रखरखाव के बारे में सीखा। किसानों ने वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के साथ खुलकर बातचीत की और अपनी समस्याओं का समाधान पाया।

कार्यक्रम के अंत में किसानों और विशेषज्ञों ने इस बात पर चर्चा की कि कैसे इन नई तकनीकों को बड़े स्तर पर लागू किया जाए और किसानों की आय बढ़ाने के लिए बेहतर बाजार सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

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