लोस चुनाव: 1977 में जीत के बाद भी आश्वस्त नहीं थे राजनारायण
रायबरेली,10 अप्रैल (हि. स.)। वर्ष 1977 में इंदिरा गांधी की हार देश ही नहीं दुनिया की बड़ी राजनीतिक घटनाओं में से एक है। इसने देश की राजनीति ही बदल दी। 1977 के इस चुनाव के बहुत से किस्से आज भी लोगों की जुबान पर हैं। उस दौरे की ताकतवर और विरोधियों के लिए एक तानाशाही छवि के रूप में इंदिरा गांधी इतना मजबूत थी कि उनकी हार की घोषणा के बाद भी विजयी राजनारायण को विश्वास ही नहीं था कि वह जीत गए हैं। यही हाल उनके समर्थकों का भी था। हालांकि रात के दो बजे दिल्ली से हुई एक घोषणा ने इस पर मुहर लगा दी।
1971 के लोकदल उम्मीदवार राजनारायण चुनाव हार गए थे लेकिन चुनाव में हुई धांधली को लेकर उन्होंने कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी और 1975 में इंदिरा गांधी के चुनाव रद्द होने का फ़ैसला आया। इसके तुरंत बाद इमरजेंसी लगाई गई। 1977 में दुबारा चुनाव हुए और लोकदल से राजनारायण उम्मीदवार थे लेकिन इस बार फिजा कुछ अलग थी। राजनारायण जनता की आवाज़ बन गए थे। इस चुनाव का परिणाम भी राजनारायण के पक्ष में आया और उन्होंने 55202 मतों से प्रधानमंत्री इंदिरागांधी को हरा दिया। उन्हें 1,77,719 मत मिले जबकि इंदिरा गांधी को 1,22,517 मत ही मिल पाए।
इस भारी विजय के बाद भी राजनारायण खामोश थे। उन्होंने अपने समर्थकों को भी किसी तरह से नारेबाज़ी करने से मना कर दिया था। यहां तक कि रायबरेली में कलेक्ट्रेट से हाथी पार्क तक के जूलूस में भी वह गाड़ी में ही बैठे रहे। उस चुनाव में राजनारायण के अहम सहयोगी रहे सर्वोदयी नेता रवींद्र सिंह चौहान कहते हैं कि ''डीएम की घोषणा के बाद जब उन्होंने राजनारायण को बधाई दी तो उन्होंने कहा कि अभी नहीं। इंदिरा कुछ भी करा सकती हैं,जब तक दिल्ली में आकाशवाणी से घोषणा नहीं हो जाती उन्हें जीत का भरोसा नहीं है''। चौहान कहते हैं कि ''रात के करीब दो बजे राजनारायण की जीत को लेकर ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारण हुआ। यह सुनकर ही उन्हें भरोसा हुआ और हाथी पार्क पर एक बड़ी सभा को उन्होंने संबोधित भी किया''।
हिन्दुस्थान समाचार/रजनीश/बृजनंदन
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