संभावनाओं को संभव बनाने वाली है हमारी परंपरा : प्रो. पवन मलिक

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संभावनाओं को संभव बनाने वाली है हमारी परंपरा : प्रो. पवन मलिक


संभावनाओं को संभव बनाने वाली है हमारी परंपरा : प्रो. पवन मलिक


संभावनाओं को संभव बनाने वाली है हमारी परंपरा : प्रो. पवन मलिक


संभावनाओं को संभव बनाने वाली है हमारी परंपरा : प्रो. पवन मलिक


मेरठ, 27 मार्च (हि.स.)। जेसी बोस विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभागाध्यक्ष प्रो. पवन मलिक ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा सतत चलने वाला विषय है। भारतीय ज्ञान परंपरा तथा भारत एक सांस्कृतिक पहचान है। संभावनाओं को संभव करने वाली हमारे ज्ञान परंपरा है। विदेशियों ने भारतीय ज्ञान परंपरा को खत्म करने का प्रयास किया।

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल में बुधवार को एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रो. पवन मलिक ने कहा कि मानव विचार और व्यवहार बनाने का काम मीडिया करता है। आज के युवा के पास ज्ञान है, टेक्नोलॉजी है और कुछ कर गुजरने का साहस भी है। आज का युवा सनातन को लेकर जागरूक है। आज के युवाओं को यह सोचने की आवश्यकता है कि 2047 विकसित भारत में मेरा कितना योगदान है। नई शिक्षा नीति में पहली बार ऐसा हुआ है कि शिक्षा नीति में राष्ट्रीय शब्द जोड़ा गया है। सर्वांगीण विकास ही नहीं सामाजिक स्तर, राष्ट्र निर्माण, ग्लोबल सिटिजन नई शिक्षा नीति में लाया गया है। इस शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को भारतीय ज्ञान परंपरा के साथ जोड़ना है। मीडिया शब्द का अर्थ एम से मी, ई से इमोशनल, डी से डिलीवरी, आई से इंटेलेक्चुअल, ए से एक्शन है। उन्होंने कहा कि रिफरेंस के कारण रेरेटिव बनते हैं।

मुख्य अतिथि गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय नोएडा की के पत्रकारिता विभाग की डीन प्रोफेसर बंदना पांडेय ने कहा कि हमारे वेदों में मौखिक संचार को जनसंचार का सबसे बड़ा माध्यम माना गया। किसी भी विश्वविद्यालय में हमारे वेद-पुराणों को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया। भारतीय ज्ञान परंपराओं को सामने लाने की आवश्यकता है। मीडिया ने कभी इस और प्रयास नहीं किया। मीडिया ने हमेशा धर्म और महिलाओं पर फोकस किया। भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर गहन चिंतन मनन करने की आवश्यकता है। भारतीय ज्ञान परंपरा के संचार को पाठ्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकता है।

कला संकाय के डीन प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा निरंतर बहती आई है। संवाद संचार का मुख्य कारक है। सुनने की परंपरा ही बोलने की परंपरा है। भारतीय ज्ञान परंपरा स्थिर नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रश्न संवाद में परिवर्तित होकर संचार बनता है। संचार के मूल तत्व परंपरा में ही विद्यमान है। प्रश्न से जिज्ञासा, जिज्ञासा से संवाद और संवाद से संचार बनता है। तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल के निदेशक प्रोफेसर प्रशांत कुमार ने सभी का स्वागत किया। डॉ. दीपिका वर्मा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन आदित्य देव त्यागी ने किया।

इस अवसर पर बीनम यादव, डॉ. मनोज श्रीवास्तव, अशोक कुमार, डॉ. यशवेंद्र वर्मा, लव कुमार, मितेंद्र गुप्ता आदि उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. कुलदीप/मोहित

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