महाशिवरात्रि पर एक हजार गुना अधिक सक्रिय होता है शिवतत्व

महाशिवरात्रि पर एक हजार गुना अधिक सक्रिय होता है शिवतत्व
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महाशिवरात्रि पर एक हजार गुना अधिक सक्रिय होता है शिवतत्व


वाराणसी,06 मार्च (हि.स.)। महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा शिवभक्त पूरे उत्साह के साथ करते हैं। भगवान शिव सहज प्रसन्न होने वाले देवता हैं, इसलिए भगवान शिव के भक्तों की संख्या पृथ्वी पर सबसे अधिक है । सनातन संस्था की प्राची जुवेकर बताती हैं कि महाशिवरात्रि के दिन शिवतत्व नित्य की तुलना में 1000 गुना अधिक सक्रिय रहता है। शिवतत्व का अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की भावपूर्ण रीति से पूजा-अर्चना करने के साथ शिव पंचाक्षर यानी ‘ॐ नमः शिवाय’ नाम जप अधिकाधिक संख्या में करना चाहिए । प्राची बताती हैं कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को श्वेत रंग के पुष्प ही चढाएं । उसमें रजनीगंधा, जूही, बेला पुष्प अवश्य हों । ये पुष्प दस अथवा दस के गुणज में हों । इन पुष्पों को चढ़ाते समय उनका डंठल शिवजी की और रखकर चढ़ाएं। पुष्पों में धतूरा, श्वेत कमल,श्वेत कनेर आदि पुष्पों का चयन भी कर सकते हैं । उन्होंने बताया कि भगवान शिव को केवड़ा निषिद्ध है, किन्तु केवल महाशिवरात्रि के दिन ही केवड़ा चढ़ाया जाता है । इस कालावधि में शिव-तत्व अधिक से अधिक आकृष्ट करने वाले बेल पत्र, श्वेत पुष्प इत्यादि शिवलिंग पर चढ़ाए जाते हैं । इनके द्वारा वातावरण में विद्यमान शिव-तत्व आकृष्ट किया जाता है । उन्होंने बताया कि भगवान शिव के नाम का जप करते हुए अथवा उनका एक-एक नाम लेते हुए शिव पिंडी पर बेलपत्र अर्पण करने को ही बिल्वार्चन कहते हैं । इस विधि में शिवलिंग को बेल पत्रों से संपूर्णत: आच्छादित किया जाता है ।

—भगवान शिव की परिक्रमा कैसे करें

प्राची जुवेकर बताती हैं कि महादेव की परिक्रमा चंद्रकला के समान होती है । अरघा से उत्तर दिशा की ओर, अर्थात सोम की दिशा की ओर, जो सूत्र जाता है, उसे सोमसूत्र या जलप्रणालिका कहते हैं । परिक्रमा बाईं ओर से आरंभ कर जल प्रणालिका के दूसरे छोर तक जाते हैं , उसे न लांघते हुए मुड़कर पुनः जलप्रणालिका तक आते हैं । ऐसा करने से एक परिक्रमा पूर्ण होती है । यह नियम केवल मानव स्थापित अथवा मानव निर्मित शिवलिंग के लिए ही लागू होता है; स्वयंभू लिंग या चल अर्थात पूजा घर में स्थापित लिंग के लिए नहीं । महाशिवरात्रि के एक दिन पहले अर्थात फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी पर प्रातःकाल व्रत का संकल्प किया जाता है । सायंकाल नदी अथवा तालाब पर जाकर शास्त्रोक्त स्नान किया जाता है । भस्म और रुद्राक्ष धारण कर प्रदोष काल में शिवजी के मन्दिर जाते हैं । महादेव का ध्यान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है । उसके बाद भवभवानी प्रीत्यर्थ (यहां भव अर्थात शिव) तर्पण किया जाता है । नाम मन्त्र जपते हुए शिवजी को एक सौ आठ कमल अथवा बिल्वपत्र व पुष्पांजलि अर्पित कर अर्घ्य दिया जाता है । उन्होंने कहा कि भगवान शिव का दूध से अभिषेक करना चाहिए। दूध में शिव के तत्व को आकर्षित करने की क्षमता अधिक होती है।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/सियाराम

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