अब जनता में नहीं दिखायी देता चुनावी उत्साह, बढ़ रही पार्टियों की चिंता

अब जनता में नहीं दिखायी देता चुनावी उत्साह, बढ़ रही पार्टियों की चिंता
WhatsApp Channel Join Now
अब जनता में नहीं दिखायी देता चुनावी उत्साह, बढ़ रही पार्टियों की चिंता


लखनऊ, 31 मार्च (हि.स.)। चुनावी बिगुल बजने के बाद सबकी सक्रियता बढ़ी हुई है। कोई 400 पार का नारा दे रहा है तो कोई भाजपा को उत्तर प्रदेश से साफ करने की ललकार भर रहा है, लेकिन इन सबके बीच जनता मौन है। इस कारण सभी पार्टियों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच रही हैं। आमजन के मौन होने का कारण उत्साह का न होना है। उनमें उत्साह भरने के लिए जमीनी नेताओं का अभाव भी इसका प्रमुख कारण है।

एक समय था, जब चुनाव से पूर्व शहरों में पर्ची बांटने का पूरा जिम्मा जमीनी कार्यकर्ता उठाते थे। शोरगुल की दुनिया से दूर रहकर आरएसएस के कार्यकर्ता वोट से दो दिन पूर्व ही घर-घर की पर्ची बनवाकर उनके घर तक पहुंचाने का काम कर देते थे। वोट के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व समूह में घंटी और शंख बजाते हुए किसी पार्टी का नाम लिए बिना जागरण का काम करते थे। ये ऐसे लोग थे, जो सांस्कृतिक भावना से जुड़े हुए थे।

वहीं समाजवादी पार्टी का एक वर्ग हुआ करता था, जो चट्टी चौराहों पर राजनीतिक चर्चाओं के लिए प्रसिद्ध था। मुलायम सिंह के नाम पर मरने-मिटने के लिए तैयार रहता था। एक हुंकार हुई नहीं, कि हर काम छोड़कर घर से निकल जाता था। उनमें उत्साह रहता था। वह उत्साह हर जगह दिखता था। वहीं बसपा का वर्ग इन हो-हल्लाें से दूर रहकर घरों में चुनावी चर्चा में तल्लीन रहता था। उसको अखबारों की सुर्खियों से कुछ भी लेना-देना नहीं रहता था।

आज की स्थिति यह है कि सिर्फ नेताओं के इर्द-गिर्द रहने वाले ही माहौल बनाने का काम करते हैं। उन्हें आमजन से नहीं, नेता को खुश करने से मतलब होता है। वे जनता के बीच कम, नेता के सामने ज्यादा रहने पर जोर देना जरूरी समझते हैं। ऐसे ही नेताओं के कारण आज आमजन निराश है। उसको हर राजनीतिक दल एक जैसा दिखता है। इसी कारण राजनीतिक दलों की चिंताएं बढ़ गयी हैं।

इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र का कहना है कि पहले राजनीति का एक सांस्कृतिक व्यवहार हुआ करता था। हर व्यक्ति अपने-अपने स्वभाव के अनुसार राजनीतिक दल के साथ जुड़ा होता था। उनके साथ निहित स्वार्थ नहीं था। आज राजनीतिक दलों के साथ कोई सांस्कृतिक विरासत नहीं है। राजनीतिक मर्यादाएं खत्म हो गयी हैं। उनको सिर्फ अपनी सीट जीतने से मतलब है। उसके लिए वे कोई भी हथकंडा अपना सकते हैं। इस कारण जनता को सभी एक जैसे दिखते हैं और आमजन इसी कारण निराश है।

हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/सियाराम

हमारे टेलीग्राम ग्रुप को ज्‍वाइन करने के लि‍ये  यहां क्‍लि‍क करें, साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर और वाराणसी से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप डाउनलोड करने के लि‍ये  यहां क्लिक करें।

Share this story