गुरु परम्परा से ही हो रहा राष्ट्र एवं धर्म का उत्थान : शंकराचार्य वासुदेवानंद
--चोटी प्रतियेगिता में विपिन शास्त्री प्रथम
--नौ दिवसीय आराधना महोत्सव का हुआ समापन
प्रयागराज, 26 दिसम्बर (हि.स.)। भगवान आदिशंकराचार्य मंदिर, ब्रह्म निवास अलोपीबाग में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने श्रीमद्भागवत कथा के अन्तिम दिन कहा कि सनातन धर्म के अनुसार गुरू ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश और परमब्रह्म है। गुरू परम्परा से ही राष्ट्र एवं धर्म का विश्वव्यापी उत्थान हो रहा है। गुरू परम्परा से ही हमें अपने इतिहास, भूगोल, संस्कृति एवं जीवन शैली का ज्ञान होता है।
नौ दिवसीय आराधना महोत्सव के समापन अवसर पर मंगलवार को उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु, नारद, शुक्राचार्य, वृहस्पति गुरू, भगवान परशुराम, पूज्य व्यास, भगवान आदिशंकराचार्य आदि सभी गुरू परम्परा के वाहक हैं और सबने समय समय पर सनातन धर्म के सूत्र व सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार व विस्तार के लिए कार्य प्रयास एवं संघर्ष किया है। भगवान आदिशंकराचार्य की परम्परा को कायम रखते हुए 1941 में पीठोद्धारक ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती द्वारा भगवान ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य, उनके बाद जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन शान्तानंद सरस्वती, ब्रह्मलीन विष्णुदेवानंद सरस्वती तथा उनके बाद 14-15 नवम्बर 1989 से मैं स्वयं इस पीठ का पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य हूं। गुरुओं के आदेश व परम्परा को निभाते हुए सनातन धर्म, संस्कृति व गौरव को विश्वव्यापी बनाने में संलग्न हूं।
शंकराचार्य ने कहा कि वरिष्ठ शंकराचार्य स्वामी शान्तानंद सरस्वती एवं मुख्यमंत्री श्रीमहंत योगी आदित्यनाथ के गुरू श्री महंत अवैद्यनाथ ने भी श्री राम मंदिर अयोध्या के निर्माण के लिए संघर्ष किया। उनकी प्रेरणा से ही मैंने और श्री महन्त योगी आदित्यनाथ ने मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाया और स्व. अशोक सिंहल के सतत् प्रयास से सभी सनातन परम्परा के संत एक साथ खड़े हुए। परिणाम स्वरूप अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर भव्य दिव्य राम मंदिर बन रहा है। यह शहीद श्री राम कारसेवकों के बलिदान का फल है।
आराधना महोत्सव में आज सर्वप्रथम शंकराचार्य ने ब्रह्मलीन शंकराचार्य शान्तानंद सरस्वती के जयन्ती समारोह में उनका एवं उनके खड़ाऊ का पूजन एवं आरती किया। कथा व्यास ने श्रीमद्भागवत कथा के समापन अवसर पर कहा कि सभी श्रद्धालु भक्तों को श्रीमद्भागवत कथा से ज्ञात अपने आदर्श चरित्र-पात्रों के आचरण का अनुशरण एवं अनुकरण करना चाहिए।
ज्योतिष्पीठ प्रवक्ता ओंकारनाथ त्रिपाठी ने बताया कि इस अवसर पर शंकराचार्य वासुदेवानंद के निर्देश पर चोटी प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। चोटी सम्राट आचार्य विपिन शास्त्री की चोटी 42 इंच लम्बी होने के कारण उन्हें 10वें वर्ष भी चोटी सम्राट घोषित किया गया। विपिन शुक्ल को 30 इंच की चोटी होने पर प्रथम, आकाश शर्मा को 26 इंच की चोटी होने पर द्वितीय तथा 22 इंच की चोटी होने पर कृष्णा पाण्डेय व प्रकाश मिश्र को तृतीय पुरस्कार मिला। राघवेन्द्र उपाध्याय को चतुर्थ स्थान सहित कुल 32 प्रतियोगियों को प्रोत्साहन सहित चोटी रखने के लिए शंकराचार्य वासुदेवानंद द्वारा पुरस्कृत किया गया।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्याकान्त
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