अयोध्या की फिजाओं में गूँजता रहा 'हनुमानगढी के बगल में हमरे रामजी का घर है'

अयोध्या की फिजाओं में गूँजता रहा 'हनुमानगढी के बगल में हमरे रामजी का घर है'
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अयोध्या की फिजाओं में गूँजता रहा 'हनुमानगढी के बगल में हमरे रामजी का घर है'








अयोध्या, 02 फ़रवरी (हि.स.)। पहली फरवरी की सर्द रात। अयोध्या सिकुड़ रही थी। धीरे-धीरे, एक-एक कर दुकानें भी बढ़ाई जा रहीं थीं। यहाँ चल रहे भण्डारों व लंगरों में छिटपुट संख्या थी। यह भी अपने अवसान की ओर थे। सडकों के किनारे और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लगे अलाव, लोगों को तपिश का एहसास करा रहे थे। श्रीरामलला के दर्शन का लाभ लेकर लौटे अह्लादित और मुदित श्रद्धालु वीणा चौराहे पर सेल्फी लेने में मगशूल थे। दर्शन कर लौटे श्रद्धालु जहाँ खुशियां बटोर और समेट नहीं पा रहे थे तो वहीं दूसरी ओर हाड़ कंपा देने वाली सर्द रात में श्रीरामलला के दर्शन को आये भक्तों का 'तप' भी चल रहा था। एक ऐसा तप, जो इन्हें सारी तत्कालिक दुश्वारियों से बेफिक्र बनाये हुए था। रोम-रोम में पुलकित हो रहे श्रीरामलला के दर्शन की इनमें व्यग्रता परिलक्षित थी। प्रस्तुत है, हिन्दुस्थान समाचार के मुख्य उप सम्पादक डॉ. आमोदकांत मिश्र और संवाददाता पवन पाण्डेय के पहली फरवरी के रात की 'आँखों देखी'-

कोहरे में सनी दूधिया रोशनी में नहा रहा था रामपथ

रात के तकरीबन साढ़े नौ बज चुके थे। श्रीरामपथ पर आवाजाही न के बराबर था। केवल दर्शन कर लौटने वाले ही सड़क पर दिखाई दे रहे थे। शायद, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की ओर जाने वालों ने श्रीरामलला के दर्शन की आस छोड़ सुबह की प्लानिंग कर ली थी। दर्शनार्थियों की भीड़ अब अपने आप को सुरक्षित स्थान पर ले जा रही थी। कोहरे में इलेक्ट्रिक लाइटिंग से सजी सड़क, यहाँ बिखर रही मद्धम रोशनी में नहा रही थी। सबकी आँखें इस अलौकिक छटा को देखकर निहाल थी। इसी बीच तुलसी उद्यान के सांस्कृतिक विभाग के पांडाल में हलचल दिखी।

'लोक संगीत' से गूंज रहा था तुलसी उद्यान

तुलसी उद्यान के सांस्कृतिक पांडाल में ठिठुरन और तपिश का संगम दिखा। हालांकि यहाँ कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसा कुछ भी नहीं था। यहाँ कुछ लोग अपने शरीर पर कम्बल डाले सो रहे थे तो दूसरी ओर ''सैंया (श्रीराम) मोर चोली (शरीर) पसीने से तर है, दक्षिण दिशा हनुमानगढी है, वहीं बगल में हमरे राम जी का घर है' अवधी लोकगीत पर युवाओं का दल गायन का दोहराव कर थिरक रहा था। सभी पसीने से तर-ब-तर थे। यह दृश्य न सिर्फ भारतीय संस्कृति को पुष्ट कर रहा था बल्कि लोक रंजन में भगवान श्रीराम की महत्ता को भी बया करने वाला था। जौनपुर से आये अंशु पांडेय, शिवकांत, अमन, सत्यम, सिट्टू, उज्ज्वल मिश्रा, किशन आदि गोंडा के मस्तराम के लयबद्ध अवधी गायन और पंजाब के जलालाबाद के सुट्टन के भांगड़ा ढोल की थाप पर भाव विभोर होकर थिरक रहे थे। भोर में श्रीरामलला के दर्शन को व्यग्र सुरेश उपाध्याय, सचिन तिवारी और पंजाब के दानापुर खगोट के हरजिंदर, बिहार के ऋषिकेश ओझा, बहराइच के नाथूराम यादव भी साथ दे रहे थे।

धर्म पथ के हनुमत गुफा चौराहा पर बालि-सुग्रीव युद्ध से मिल रही थी ऊर्जा

रात के लगभग पौने दस का समय था। रामानंद सागर कृत रामायण सीरियल के बालि-सुग्रीव युद्ध के दृश्य चल रहा था। यहाँ शाल ओढ़कर ठंड से बचने की कोशिश में कुछ दर्शनार्थी सड़क की रेलिंग पर सिकुड़े थे। बालि-सुग्रीव युद्ध का संवाद इन्हें रोमांचित कर रहा था। मानो, दृश्य और संवाद इन्हें श्रीरामलला के दर्शन की प्रतीक्षा के लिए ऊर्जा दे रहे हों।

आकर्षित कर रही थीं भक्तिपथ की डिजिटल रंगोलियां

रात के 10 बजने वाले थे। भक्तिपथ पर दर्शनार्थियो की आवाजाही शुरु थी। सड़क पर हल्की रोशनी और डिजिटल रंगोली अपनी छटा बिखेर रही थी। रंगोली सबके आकर्षण के केंद्र में थी। रंगोली पर खड़े होकर सब विडिओ बना रहे थे। चित्र भी ले रहे थे। इसी बीच नेपाल से आया 210 सदस्यों वाला भेड़िहारी काफिला हनुमानगढी़ का दर्शन कर भक्तिमार्ग पर पहुंचा। अभी श्रीरामलला के दर्शन नहीं हुए हैं। सुबह 4:00 बजे ही लाइन में लगने की योजना है। नेतृत्व कर रहे ललन जी और राम आशीष शाह बताते हैं कि खुले आसमान के नीचे रात गुजरेगी। शुक्रवार की भोर में श्रीरामलला का दर्शन करेंगे। ठंड बहुत है, लेकिन बाईपास पर खड़े बस के पास जमीन पर बिछावन है और वहीं खुले आसमान के नीचे रात गुजारेंगे। रामलला के दर्शन किये बगैर नहीं लौटेंगे।

सुगंध से भरा था श्रीराम जन्मभूमि पथ

रात के सवा दस बजे के आसपास श्रीराम जन्मभूमि पथ से होकर गुजरने वाली हवा भी सुगंधित हो चुकी थी। श्रीरामला का दर्शन कर लौट रहे दर्शनार्थी इस सुगंधित वातावरण में खुद को धन्य पा रहे थे। इनकी संख्या अब महज दो अंकों में सिमट चुकी थी। सुरक्षा में लगाए गये जवानों की ड्यूटी बदल रही थी और ड्यूटी बजा चुके जवान लौटने लगे थे।

हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. आमोदकांत/बृजनंदन

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