भारतीय लोकतंत्र में हो गांधी दृष्टि का स्वराज : नंदकिशोर आचार्य
प्रयागराज, 16 फरवरी (हि.स.)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन नंदकिशोर आचार्य ने कहा कि गांधी के स्वराज को लोकतंत्र के मजबूती हेतु उपयोग में लाए जाने की जरूरत है। स्वराज का अर्थ सरकार के नियंत्रण से मुक्त होने का सतत प्रयास, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र अभिव्यक्ति महसूस कर सके।
उद्घाटन सत्र में जयपुर से आए प्रख्यात गांधीवादी लेखक और हिंदी के वरिष्ठ कवि नंदकिशोर आचार्य ने कहा कि आज लोकतंत्र को राजनीतिक लोकतंत्र होने से पहले नैतिक लोकतंत्र की ओर ले चलना होगा। लोकतंत्र में सत्ता का रूपांतरण नागरिक दमन की ओर नहीं जाना चाहिए। लोकतंत्र की सशक्तिकरण में अधिकार का त्याग हो सकता है किंतु कर्तव्य का कदापि नहीं होना चाहिए।
दिल्ली से आए सुपरिचित साहित्यकार गोपेश्वर सिंह ने लोकतंत्र के विस्तार और विकास को परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि गांधी की राजनीति आचरण की राजनीति है, उसे अलग करके नहीं देखा जा सकता। जैसे भक्त कवियों की रचनाओं को उनके जीवन से अलग करके नहीं देखा जा सकता। कहा कि गांधी का लोकतंत्र अभय का लोकतंत्र था।
गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान के निदेशक और संगोष्ठी के संयोजक प्रो. संतोष भदौरिया ने संस्थान की गतिविधियों और संगोष्ठी के वैचारिकी को परिभाषित किया। इस सत्र का संचालन डॉ. अमृता ने किया।
प्रथम सत्र में ‘आज़ादी के पचहत्तर सालः भारत निर्माण के वैचारिक आयाम’ विषय पर मुख्य वक्तव्य देते हुए बिहार के पटना से आए वरिष्ठ लेखक और संस्कृतिकर्मी प्रेम कुमार मणि ने वैचारिक स्तर पर भारत के बनने की कहानी को अनेक कथाओं के जरिए बताया। कहा कि बीसवीं सदी के उपनिवेशवाद से भारत ने खुद की सशक्त वैचारिकी निर्मित की। जिसमें राष्ट्रीय आंदोलन के बाद समाजवादी आंदोलनों की बड़ी भूमिका रही। आधुनिक भारत के निर्माण में बीसवीं सदी के दो बड़े विचारकों टैगोर और गांधी की भारतीय दृष्टि का बड़ा महत्व है।
इस सत्र में विशिष्ट वक्ता वरिष्ठ पत्रकार और रचनाधर्मी दिल्ली से अरुण कुमार त्रिपाठी ने भारतीय लोकतंत्र के आयामों पर बात की। कहा कि भारतीय लोकतंत्र की दिशा में गांधी और अंबेडकर की महती भूमिका है। भारत विरोधाभासों से बना है। इन्हीं विरोधाभासों से इसे सुदृढ़ आधार मिल रहा है। गांधी के पास फ़ौज नहीं थी, लेकिन नैतिक बल था। आज उसी नैतिकता को आगे लाने की जरूरत है। अध्यक्षीय वक्तव्य में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रो. पंकज कुमार ने भारतीय लोकतंत्र के सामाजिक पहलू को बताया। युवा अध्येता डॉ. जितेंद्र विसारिया और डॉ. अखिलेश पाल ने शोध वक्तव्य दिया। इस सत्र का संचालन डॉ. धीरेंद्र प्रताप सिंह ने किया।
द्वितीय तकनीक सत्र विकास की अवधारणा और नीतियांः चुनौतियां एवं संघर्ष में कोलकाता से आए प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा विकास पर आने से पहले भारत की कल्पना पर आना होगा। इतिहास वृत्त को समझना होगा। राष्ट्र का निर्माण कवि कलाकार रचनात्मक लोग करते हैं। विकास 19 शताब्दी से ही परिभाषित होता रहा है। बॉम्बे प्लान का मॉडल, एमएन रॉय मॉडल, गांधीयन मॉडल। यूरोपियन मॉडल फेल होगा। एरिक हॉब्सबॉम ने कहा है कि उदारीकरण के दौर में भारत जैसे देश में जो मॉडल है उसमें मार्केट में स्वाधीनता की मांग है और राजनीति में पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी। विकास का जो नया मॉडल आया है, उसमें मार्केट फ्रीडम हो, लेकिन पॉलिटिक्स पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी हो। जबकि यह दोनों विरोधाभासी बातें हैं।
जीबी पंत संस्थान से डॉ. अर्चना सिंह ने कहा कि विकास की अवधारणा में स्त्रियों की उपस्थिति को समझे जाने की जरुरत है। शोध वक्तव्य देते हुए अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली के एकेडमिक फेलो डॉ. रमाशंकर सिंह ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की चलती चक्की में गरीबी की गति उतनी ही तेज है, इसे रोकना होगा। राजनीतिक सिद्धांतों के शासन को समझना होगा। अजनबी किस्म की राजनीतिक और सामाजिक समझ ने भारतीय समाज को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। अध्यक्षीय वक्तव्य में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रो. आशीष सक्सेना ने विकास की सामाजिकता में निहित तत्वों को विस्तार से बताया। इस सत्र का संचालन राजस्थान से आए डॉ.अविचल गौतम ने किया।
तृतीय सत्र 21वीं सदी में तकनीक और गांधी में ग्वालियर से आए वरिष्ठ गांधीवादी विचारक आलोक वाजपेयी ने विविध संदर्भों में गांधी की उपस्थिति को रेखांकित किया। कहा कि गांधी सत्याग्रह को राजनीतिक यंत्र के रूप में देखते थे। कोलकाता से आए डॉ.अमित राय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आशुतोष पार्थेश्वर ने गांधी और तकनीक के रिश्ते को साहित्यिक संदर्भों और हिंद स्वराज के हवाले से परिभाषित किया। इस सत्र में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से डॉ.यशार्थ मंजुल और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन इतिहास विभाग के शोधार्थी प्रांजल बरनवाल ने शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान की प्रो.अनुराधा कुमार ने कहा कि गांधी तकनीक के विस्तार से चिंतित थे और उनकी चिंता आज साकार रूप में दिख रही है। इस सत्र का संचालन डॉ. सुरेंद्र कुमार ने किया।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त

