भगवान के नाम के उच्चारण का जो फल हैं वह सभी तीर्थों के दर्शन का नहीं: धीरशांत दास

भगवान के नाम के उच्चारण का जो फल हैं वह सभी तीर्थों के दर्शन का नहीं: धीरशांत दास
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भगवान के नाम के उच्चारण का जो फल हैं वह सभी तीर्थों के दर्शन का नहीं: धीरशांत दास










- श्री गीता भागवत सत्संग सप्ताह का दूसरा दिन

मुरादाबाद, 9 मई (हि.स.)। रामलीला मैदान लाइनपार में आयोजित श्री गीता भागवत सत्संग सप्ताह के दूसरे दिन गुरुवार को विश्व हिंदू परिषद मन्दिर, अर्चक, पुरोहित के प्रांत प्रमुख एवं धर्मगुरु आचार्य धीरशांत दास अर्द्धमौनी ने बताया कि भगवान के नाम के उच्चारण का जो फल हैं वह सभी तीर्थों के दर्शन का नहीं है। आप कहाँ-कहाँ दौड़ेंगे। एक बार सारी पृथ्वी की परिक्रमा कर लो चाहे एक भगवन्नाम का उच्चारण कर लो, भागने की क्या आवश्यकता है। हमें तो ऐसी यात्रा करनी चाहिये जिससे इस संसार की यात्रा फिर नहीं करनी पड़े।

धीरशांत दास ने आगे सुनाया कि सद्गुण, शुभ कर्म, भगवान् के प्रति श्रद्धा और विश्वास, यज्ञ, दान, जनकल्याण आदि, ये सब ज्ञानीजन के शुभ- लक्षण होते हैं। भगवान् के हृदय में आने से मेरे दिव्य नेत्र खुल गये। अब मुझमें सर्वत्र सब समय सब कुछ भगवान् ही दिखायी देते हैं। मेरा हृदय प्रेममय भगवान् को पाकर प्रेमसे भर गया। जगत् में कोई पराया नहीं, कोई घृणा के योग्य नहीं, कोई वैरी नहीं, सब मेरे अपने हैं, सब बन्धु हैं, सभी प्रियतम हैं, अब सबके साथ निःस्वार्थ प्रेम करना ही मेरा स्वभाव है। प्रेम ही मेरा जीवन है। प्रेम ही मेरा धर्म है। व्यवस्था में सिंघल परिवार, मित्तल परिवार ने सहयोग दिया। हिन्दुस्थान समाचार/निमित जायसवाल/बृजनंदन

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