न जाने कौन...सिर पर टोपी और माथे पर तिलक लगा जाता है : प्रशांत मिश्र
- हिन्दी साहित्य संगम ने आयोजित की मासिक काव्य गोष्ठी
मुरादाबाद, 6 मई (हि.स.)। साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम की ओर से सोमवार को आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कालेज में मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
उपस्थित रचनाकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत मॉं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता रामदत्त द्विवेदी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में ओंकार सिंह ओंकार तथा विशिष्ट अतिथियों के रूप में पदम सिंह बेचौन उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रशान्त मिश्र ने किया।
रचना पाठ करते हुए प्रशांत मिश्र ने सुनाया पर न जाने कौन.. सिर पर टोपी और माथे पर तिलक लगा जाता है, दोस्तों को ‘हिन्दू’ और मुझे ‘मुसलमा’ बता जाता है। जितेंद्र कुमार जौली ने सुनाया चाहें एक खरीदिए, चाहें लीजै चार। डिग्री अब यूॅं बिक रही, ज्यों सब्जी बाजार।। राजीव प्रखर ने सुनाया टूटे जब-जब प्रीत में, संवादों के तार। तब-तब पायल कर गई, चुप्पी का प्रतिकार। भावुक होकर कह उठा, कविता से संगीत। अविजित है जग में प्रिये, हम दोनों की प्रीत।
नकुल त्यागी ने सुनाया-संस्कृत ग्रंथों में पढ़ा था कहीं, नदियों का, नामधारियों का, सींग वालों का, शस्त्रधारियों का नहीं करना चाहिए विश्वास, क्योंकि उसने कहा था सिर्फ एक बार आने तो दो पास। ओंकार सिंह ओंकार ने सुनाया रात अंधेरी से ही तो, भोर नई फूटेगी। घोर निराशा में से, आशा जीवन में उतरेगी।
पदम सिंह बेचैन ने सुनाया, है जन-जन में श्रीराम देते समरसता सन्देश। रामदत्त द्विवेदी ने सुनाया- न जाने किस तरफ हो जाय वर्षा, बदरिया हर तरफ से आ रही है। संस्था के अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुंचा।
हिन्दुस्थान समाचार/निमित जायसवाल/सियाराम
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