राष्ट्र निर्माण में समाज शास्त्र की मुख्य भूमिका : प्रो आनंद कुमार

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राष्ट्र निर्माण में समाज शास्त्र की मुख्य भूमिका : प्रो आनंद कुमार


प्रयागराज, 30 जुलाई (हि.स.)। हमारा समाज एक प्राचीन संस्कृति का वारिस है। 1947 से हम स्वराज निर्माण या राष्ट्र निर्माण पर निकले हैं, इसमें समाज विज्ञान, विज्ञान एवं राजनीति सबका योगदान होता है। नीति निर्माण एवं योजनाओं में समाजशास्त्र की गौण भूमिका रही है। यह चिंताजनक है, लेकिन राष्ट्र निर्माण में समाज शास्त्र की मुख्य भूमिका है और वह अपनी इस भूमिका का सम्यक रूप से निर्वहन करता रहा है।

उक्त विचार मुख्य वक्ता प्रख्यात समाजशास्त्री, भूतपूर्व अध्यक्ष समाजशास्त्र विभाग जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के प्रो. आनंद कुमार ने ‘‘राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में समाजशास्त्र की महत्ता’’ विषय पर व्यक्त किया। मंगलवार को ईश्वर शरण पीजी कॉलेज द्वारा यूजीसी एवं शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार की महत्वाकांक्षी शिक्षक प्रशिक्षण परियोजना मालवीय मिशन टीचर ट्रेनिंग सेंटर (एमएमटीटीसी) के तत्वावधान में ऑनलाइन रिफ्रेशर कोर्स ‘‘कंटेंपरेरी पर्सपेक्टिव इन सोशियो लॉजिकल इंक्वायरी’’ के उद्घाटन सत्र में उन्होंने राष्ट्र निर्माण के मौलिक पहलुओं की चर्चा की।

उन्होंने राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में वैश्विक पहलुओं को समाहित करते हुए यूरोप में जर्मनी, फ्रांस, पुर्तगाल एवं रूस, युगोस्लाविया तथा दक्षिण एशिया में हमारे पड़ोसी पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं चीन के राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया की गम्भीरता पूर्वक चर्चा करते हुए एक सम्यक तुलनात्मक विवेचना भी प्रस्तुत की। इसके पश्चात प्रतिभागियों द्वारा प्रकट की गई जिज्ञासाओं का भी समुचित उत्तर दिया।

द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. कुमार सुरेश शैक्षिक प्रशासन विभाग न्यूपा नई दिल्ली ने ‘‘सोशियोलॉजी फॉर द सेंचुरी ग्लोबल कॉन्टेक्स्ट एंड इंडियन इंपरेटिव्स’’ विषय पर कहा कि 21वीं सदी समाज शास्त्र के लिए गम्भीर चुनौती की सदी है। आज हम वैश्वीकरण, उत्तर आधुनिकता, सूचना समाज, ज्ञानमूलक समाज, नागरिक समाज और कृत्रिम बुद्धिमता के समाज में रह रहे हैं। समाजशास्त्रियों के समक्ष रिविजिटिंग सोशियोलॉजी जैसे महत्वपूर्ण विषय आ रहे हैं। हमें इस वैश्विक चुनौतियों के साथ अपने समाज में विकास, विस्थापन, स्तरीकरण, मूल्य और आदर्श उनके साथ-साथ ही समकालीन परिवर्तन एवं उसके साथ प्रभाव विकास विस्थापन प्रगति एवं समरसता के पहलुओं को अपने अध्ययन में समाहित करना होगा। उन्होंने अगस्त काम्ट से लेकर दुर्खीम, मिड, ब्लूमर और भारतीय समाज शास्त्रियों श्रीनिवास, श्यामा चरण दुबे, रामकृष्ण मुखर्जी, डीपी मुखर्जी, डीएम धनार्ग, योगेंद्र सिंह आदि समाज वैज्ञानिकों को उपरोक्त संदर्भ में महत्व को रेखांकित किया।

अतिथियों का स्वागत एवं रिफ्रेशर कोर्स की रूपरेखा कार्यक्रम संयोजक डॉ. विकास कुमार ने प्रस्तुत की। प्रशिक्षण केंद्र के सहायक निदेशक डॉ. मनोज कुमार दुबे ने एमएमटीटीसी केंद्र की रूपरेखा तथा उपलब्धियों की चर्चा की। संचालन सहायक संयोजक डॉ. विवेक कुमार यादव एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रतिभागी शिक्षक डॉ. सुजीत कुमार ने किया। यह प्रशिक्षण 14 अगस्त तक चलेगा। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापकों डॉ. धीरज चौधरी, डॉ. आनंद सिंह, डॉ. अरविंद कुमार मिश्र, डॉ. गायत्री सिंह एवं देश के विविध क्षेत्र विविध राज्यों से लगभग सौ प्रतिभागी उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र / Siyaram Pandey

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