ब्राह्मी लिपि चित्रकला से उत्पन्न : प्रो. आनंद शंकर सिंह
-ब्राह्मी लिपि भारतवर्ष की प्राचीनतम लिपि : डॉ. रागिनी राय
प्रयागराज, 06 नवम्बर (हि.स.)। ईश्वर शरण पीजी कॉलेज के भाषा केन्द्र एवं प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि : लेखन विधि एवं विशेषताए’’ विषयक 15 दिवसीय कार्यशाला का शुभारम्भ हुआ। कॉलेज के प्राचार्य एवं प्राचीन इतिहास विभाग के संयोजक प्रो. आनन्द शंकर सिंह ने लिपि के उद्भव पर प्रकाश डालते हुए इसे चित्रकला से उत्पन्न बताया। शनैः शनैः चित्रों में कथात्मकता आने लगी जिससे लिपियों का विकास हुआ।
उन्होंने ब्राह्मी लिपि को विशुद्ध भारतीय बताया, जिसका आविष्कार ब्रह्मावर्त क्षेत्र में हुआ और ब्रह्मा को उसका रचयिता स्वीकृत किया। उनके अनुसार प्राग मौर्य कालीन अभिलेखों जैसे सोहगौरा महास्थान, पिपरहवाँ इत्यादि में ब्राह्मी के प्रारम्भिक स्वरूप को देखा जा सकता है। अशोक के अभिलेखों में ब्राह्मी के संयुक्ताक्षर तथा अंक प्राप्त होते हैं, जो इसकी परिपक्वता को दर्शाते हैं।
कार्यक्रम की संयोजिका प्राचीन इतिहास विभाग की डॉ. रागिनी राय ने कार्यशाला पर विस्तार से चर्चा की। लिपि की प्राचीनता पर प्रकाश डालते हुए उसे ब्रह्मा की उपज बताया। उन्होंने बताया, ब्राह्मी लिपि भारतवर्ष की प्राचीनतम लिपि है। समय के साथ इसका क्षेत्रीय विस्तार हुआ, जिसके फलस्वरूप कालांतर में कुटिल लिपि, शारदा लिपि, नागरी लिपि इत्यादि प्रकाश में आई। प्राचीन लिपि के विषय में ज्ञान होने से विद्यार्थी मूल स्रोतों को समझ सकेंगे।
भाषा केन्द्र की संयोजिका डॉ. रचना सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया और भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रागिनी राय और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अश्विनी देवी ने किया। उद्घाटन सत्र में डॉ. मनोज दुबे, डॉ. जमील अहमद, डॉ. गौरव राय, डॉ. रश्मि जैन, डॉ. विजय तिवारी, डॉ. कादम्बरी शर्मा एवं शोधार्थीगण तथा काफी संख्या में स्नातक एवं परास्नातक के छात्र मौजूद रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/सियाराम
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