लम्पी रोग वायरस जनित, बचाव ही समुचित उपचार : डॉ.आर.पी.मिश्र
- पशुपालकों से अपील संक्रमित गोवंश को तत्काल करें अलग
कानपुर, 04 अक्टूबर (हि.स.)। योगी सरकार गोवंश को स्वस्थ रखने के लिए पशुधन विभाग के माध्यम से जागरूकता अभियान शुरू किया है। अभियान के तहत लम्पी स्किन डिजीज (एल.एस.डी) को प्रदेश के सभी मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश जारी किया है। कानपुर जिले में गोवंशीय पशुओं का टीकाकरण किया जा रहा है। यह जानकारी बुधवार को मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ.आर.पी.मिश्र ने दी।
उन्होंने बताया कि यदि किसी गोवंशीय पशु के शरीर पर दाने या गड्ढे दिखाई देते है तो तत्काल पशुपालन विभाग कानपुर न में स्थित कंट्रोल रूम मो. नम्बर डॉ. विपिन 9451443345 एवं अरुण कुमार 9838103081 पर संपर्क करने करें और सूचना दे तथा नजदीकी राजकीय पशु चिकित्सालय या पशु सेवा केन्द्र पर सम्पर्क स्थापित करे लें।
उन्होंने पशुपालकों से अपील किया है कि तत्काल बीमार गोवंश को स्वस्थ गोवंश से अलग कर दे। इसके साथ ही बीमार गोवंश का उपचार करने के लिए क्या-क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, यह जानकारी सरकारी पशु चिकित्सक से सम्पर्क करके जानकारी ले सकते है।
लम्पी रोग एक वायरल बीमारी
डॉ.मिश्र ने बताया कि लम्पी रोग पशु से मनुष्य में नहीं फैलती है। पशुपालक भाइयों से अपील है कि इस रोग से मृत्यु दर बहुत कम है। इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे गोवंशों की यदि मृत्यु हो भी जाती है तो ऐसी दशा में उनके शव को खुले में न छोड़े, नहीं तो वह अन्य पशुओं में भी फैल सकती है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि उन्हें मिट्टी में दफनाना आवश्यक है। जिससे कि अन्य गोवंश सुरक्षित रहें। समय पर उपचार कराने से 05 से 15 दिन में पशु स्वस्थ हो जाता है। यदि कोई गोवंश इसकी चपेट में आता है तो अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय या पशु सेवा केंद्र से सम्पर्क बनाकर रखें।
जाने क्या है लम्पी रोग के लक्षण
डॉ.आर.पी.मिश्र ने बताया कि रोग प्रभावित गोवंश में बुखार, भूख न लगना, आंख व नाक से पानी गिरना, पैरों में सूजन, मुंह, नाक, थन, जननांग पर गांठें बनना, दुग्ध उत्पादन में कमी, गर्भपात, बांझपन होते है। कभी-कभी शरीर गांठ से ढक जाता है।
लम्पी रोग के फैलने के कारण
डॉ.मिश्र ने बताया कि लम्पी स्किन बीमारी खून चूसने वाली मक्खी, मच्छर एवं किलनियों से बीमार पशुओं से स्वस्थ पशुओं में फैलती है। इस रोग का संक्रमण पशुओं से मनुष्यों में नही होता है। बीमारी से प्रभावित पशुओं के थूक-लार, वीर्य, संक्रमित दूध के माध्यम से रोग अन्य पशुओं में फैलता है।
उपचार और नियंत्रण के उपाय
यह बीमारी वायरस जनित है, जिसके कारण इसका कारगर उपचार उपलब्ध नहीं है, केवल बचाव ही सर्वोत्तम उपाय है। पशु बाड़े और पशुशाला में फिनायल य सोडियम हाईपोक्लोराइट 2 प्रतिशत इत्यादि कीटाणुनाशकों का छिड़काव करें। घावों के उपचार एवं मक्खियों को दूर करने के लिए स्प्रे व जीवाणु नाशक दवा लगाएं। असंक्रमित पशुओं को मच्छर, मक्खी एवं अन्य कीटों से बचाने का उचित प्रबंध करें और पंख, मच्छरदानी इत्यादि का प्रयोग करें। इसके अतिरिक्त बीमार पशुओं को अलग बांधे, उनके चारे एवं पानी का प्रबंधन अलग से करें। संक्रमित पशुओं को आवागमन रोकें, पशुओं को सदैव स्वच्छ पानी पिलायें। संक्रमित पशु के दूध को उबाल कर प्रयोग करें य पियें।
हिन्दुस्थान समाचार/राम बहादुर/मोहित

