लोस चुनाव : किसके सिर सजेगा जीत का नगीना
लखनऊ, 29 मार्च (हि.स.)। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट का संसदीय इतिहास डेढ दशक पुराना है। इस सीट पर अब तक तीन बार चुनाव हुए हैं। नगीना लोकसभा सीट सुरक्षित सीट है। नगीना को मुख्य रूप से काष्ठ कला के लिए जाना जाता है। नगीना में काष्ठ कला सालाना टर्नओवर 400 करोड़ से ज्यादा है। यहां के कारीगर हाथ की नक्काशी से सुंदर आकर्षक हैंडीक्राफ्ट बनाते हैं जो विदेशों में अपनी पहचान रखते हैं और यहां से विदेशों तक सप्लाई किए जाते हैं। इस सीट पर मुख्य रूप से दलित और मुस्लिम निर्णायक है। नगीना का शाब्दिक अर्थ है रत्न या रत्न जड़ित आभूषण। इसे सैय्यद शासकों ने मुगलों से जागीर के रूप में पाया था। बाद में ये क्षेत्र 1857 के विद्रोह में मशहूर हुआ जब नजीबाबाद के नवाब और ब्रिटिश सेना के बीच बिजनौर में युद्ध हुआ था।
संसदीय इतिहास
यूपी की 17 आरक्षित लोकसभा सीटों में से एक नगीना लोकसभा क्षेत्र सबसे अहम माना जाता है। नगीना बिजनौर जिले की एक तहसील है। कभी ये सीट बिजनौर लोकसभा सीट का हिस्सा हुआ करती थी, लेकिन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिश पर इसे बिजनौर से अलग करके अलग लोकसभा क्षेत्र बनाया गया। 2009 में नगीना लोकसभा सीट पहली बार अस्तित्व में आई थी। इस सीट पर अब तक तीन बार लोकसभा चुनाव हुए हैं। यह सीट 16 लाख वोट वाली है।
यह क्षेत्र किसी भी दल का गढ़ नहीं रहा है। तीनों बार के चुनावों में यहां अलग-अलग पार्टी के प्रत्याशी जीतकर सांसद बने है। यूं कहें कि यहां की जनता हर बार नए उम्मीदवार को मौका दिया है। पहली बार 2009 में लोकसभा चुनाव हुआ। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के यशवीर सिंह पहली बार विजय हुए थे। उसके बाद 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सांसद यशवंत सिंह ने सपा प्रत्याशी को हराकर इस सीट पर अपना कब्जा जमाया था। जबकि 2019 के चुनाव में सपा और बसपा के गठबंधन के चलते बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी गिरीश चंद्र इस सीट पर विजय रहे जो वर्तमान में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
2019 में हाथी रहा सब पर भारी
2019 में सपा, बसपा और रालोद गठबंधन में थे। बसपा के गिरीश चंद्र चुनाव जीते। बसपा के खाते में 568,378 (56.31 फीसदी) वोट आए। दूसरे स्थान पर रहे भाजपा प्रत्याशी यशवंत सिंह को 4,01,546 (39.78 फीसदी) वोट मिले। कांग्रेस प्रत्याशी ओमवती देवी तीसरे स्थान पर रही, और उन्हें 20,046 (1.99 फीसदी) मत प्राप्त हुए।
नगीना के जातीय समीकरण
नगीना लोकसभा सीट वैसे तो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, लेकिन यहां सबसे ज्यादा आबादी मुस्लिमों की है। इस सीट पर 21 फीसदी अनुसूचित जाति के वोटर हैं। नगीना लोकसभा के अंतर्गत आने वाली विधानसभा की बात करें तो यहां मुस्लिम वोटरों की आबादी करीब 50 फीसदी से भी अधिक है। पिछले चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो यहां करीब 1493411 मतदाता हैं, इनमें 795554 पुरुष और 697857 महिला वोटर हैं।
नगीना लोकसभा क्षेत्र विधानसभा सीटों पर सपा आगे
नगीना लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत करीब पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें नजीबाबाद, नगीना, धामपुर, नहटौर और नूरपुर शामिल है। नजीबाबाद, नगीना और नूरपुर ये तीन सीटें सपा के कब्जे में हैं। तो वहीं नहटौर और धामपुर पर भाजपा का कमल खिला हुआ है।
कौन है मैदान में
भाजपा ने नहटौर के विधायक ओम कुमार को मौका दिया है। इंडिया गठबंधन में ये सीट सपा के खाते में आई है। सपा ने मनोज कुमार को मैदान में उतारा है। वहीं बसपा ने सुरेंद्र पाल को टिकट दिया। इसके अलावा भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर भी यहीं से ताल ठोक रहे हैं।
2024 में गठबंधन नये रूप में
पिछले लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन था। इस बार भाजपा-रालोद गठबंधन में हैं। इंंडिया गठबंधन में सपा-कांग्रेस शामिल हैं। बसपा अकेले मैदान में है। एनडीए गठबंधन में यह सीट रालोद के खाते में है। वहीं इंडिया गठबंधन में ये सीट सपा के कोटे में आई है।
क्या कहते हैं समीकरण
इस बार नगीना लोकसभा का चुनाव दिलचस्प होने वाला है। भाजपा ने नहटौर सीट से जीत की हैट्रिक लगा चुके विधायक ओमकुमार को यहां से चुनावी मैदान में उतारा है। 2012 से बनी नहटौर सीट पर ओमकुमार शुरू से ही काबिज हैं। नहटौर विधानसभा सीट नगीना लोकसभा के अंतर्गत ही आती है। सपा और कांग्रेस के गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में गई है। सपा ने पूर्व जज मनोज कुमार को मैदान में उतारा है। बसपा ने सुरेंद्र पाल पर दांव लगाया है। बसपा ने सुरेंद्र पाल को पुरकाजी विधानसभा से 2022 में चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन विधानसभा चुनाव में सुरेंद्र पाल को हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में वह तीसरे नंबर पर रहे थे और रालोद उम्मीदवरा अनिल कुमार की इस सीट पर जीत हुई थी।
भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद रावण यहां से अपनी सियासी जमीन की तलाश कर रहे हैं। वो पहली बार चुनाव मैदान में हैं। पहले चंद्रशेखर आजाद के सपा की तरफ से ही उतरने की चर्चा थी लेकिन बात नहीं बनने से आजाद समाज पार्टी के सिंबल पर मैदान में उतरे हैं। पहले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया था लेकिन किसी सीट पर नामांकन नहीं किया है। ऐसे में इंडिया गठबंधन को राहत मिली है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद के उतरने से चुनाव रोचक हो गया है। इससे जहां पश्चिम उत्तर प्रदेश की अन्य सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार हैं, वहीं चंद्रशेखर आजाद के उतरने से नगीना में चतुष्कोणीय लड़ाई देखने को मिल सकती है।
नगीना से कौन कब बना सांसद
2009 - यशवीर सिंह - (सपा)
2014- यशवंत सिंह - (भाजपा)
2019 - गिरीश चंद्र - (बसपा)
हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/बृजनंदन
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