लोस चुनाव : भाजपा के गढ़ आंवला में साइकिल और हाथी की सुस्त चाल
लखनऊ, 19 अप्रैल (हि.स.)। रुहेलखंड क्षेत्र में पड़ने आंवला संसदीय क्षेत्र का अपना प्राचीन इतिहास रहा है। आंवला महाभारतकाल में पांचाल नगरी की राजधानी थी। कठेरिया के राजाओं ने आंवला पर लगभग 5 सौ साल शासन किया। उसके बाद रूहेलों ने आंवला को जीतकर अपनी राजधानी बनाया। वर्तमान में आंवला संसदीय सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। आंवला सीट पर 7 मई को तीसरे चरण में मतदान होगा।
आंवला लोकसभा सीट का इतिहास
आंवला लोकसभा सीट देश की आजादी से 20 साल बाद बनी थी। पहले आंवला लोकसभा क्षेत्र रामपुर लोकसभा सीट का हिस्सा था। 1967 में कांग्रेस को यहां से जीत मिली और सावित्री श्याम यहां की सांसद बनीं। वह 1971 में भी यहीं से चुनी गईं, लेकिन 1977 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और हैट्रिक लगाने से चूक गईं। 1980 में जनता पार्टी तो 1984 में कांग्रेस को यहां से जीत मिली। 1989 से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने यहां पर पहली जीत हासिल की और तब से लेकर अब तक 6 चुनाव में जीत हासिल कर चुकी है। 1999 में समाजवादी पार्टी (सपा) और 2004 में जनता दल यूनाईटेड के प्रत्याशी रहे कुंवर सर्वराज सिंह यहां से जीते। साल 2009 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी ने जीत दर्ज की। 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा के धर्मेन्द्र कश्यप यहां से जीते। कांग्रेस यहां 40 साल पहले आखिरी बार जीती थी, लेकिन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) यहां से पहली जीत का इंतजार कर रही है। इस बार एक तरफ भाजपा जहां लगातार चौथी बार इस सीट पर कब्जा करने की कोशिश में रहेगी, वहीं दूसरी तरफ अखिलेश यादव के लिए यहां सपा की वापसी कराना चुनौती है।
पिछले दो चुनावों का हाल
2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी धर्मेंद्र कश्यप ने 537,675 (41.16 प्रतिशत) वोट हासिल कर जीत हासिल की। दूसरे नंबर पर रही सपा उम्मीदवार रुचि वीरा के खाते में 423,932 (27.26 प्रतिशत) वोट गए। भाजपा ने सपा-बसपा के साझा उम्मीदवार रुचि वीरा को 113,743 मतों के अंतर से हरा दिया।
बात 2014 के चुनाव की कि जाए तो भाजपा मेनका गांधी की जगह धर्मेंद्र कुमार कश्यप को मैदान में उतारा। उन्होंने पूर्व सांसद और सपा के कुंवर सर्वराज सिंह को 1.38 लाख से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया। यहां से भी कांग्रेस के प्रत्याशी और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम इकबाल शेरवानी चौथे स्थान पर रहे थे।
किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार
भाजपा ने तीसरी बार धर्मेंद्र कश्यप पर विश्वास जताया है। सपा और कांग्रेस के बीच चुनावी गठबंधन की वजह से यहां से सपा ने नीरज मौर्य को टिकट दिया। बसपा ने आबिद अली पर दांव लगाया है।
आंवला सीट का जातीय समीकरण
आंवला लोकसभा उत्तर प्रदेश की सीट नंबर-24 है। 2019 के चुनाव के समय आंवला सीट पर कुल 17,85,605 वोटर्स थे जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 8,08,183 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 9,77,335 थी। थर्ड जेंडर के 87 वोटर थे। यहां 4 लाख मुस्लिम, दो-दो लाख कश्यप व यादव वोटर हैं। लोध राजपूतों की संख्या करीब पौने दो लाख, जबकि लगभग सवा लाख मौर्य व करीब 80 हजार कुर्मी मतदाता हैं। यहां अनुसूचित जाति के लगभग साढ़े तीन लाख, सवा लाख ठाकुर, एक लाख वैश्य व करीब 90 हजार ब्राह्मण मतदाता बताए जाते हैं।
विधानसभा सीटों का हाल
आंवला संसदीय क्षेत्र के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें शेखुपुर, दातागंज, फरीदपुर (सु0), बिथारी चैनपुर और आंवला सीट शामिल है। इसमें फरीदपुर, बिथारी चैनपुर और आंवला सीट बरेली जिले में पड़ती हैं, शेष दोनों सीट बदायूं में आती है। शेखुपुर सीट पर सपा कब्जा है, बाकी सीटें भाजपा के खाते में हैं।
दलों की जीत का गणित और चुनौतियां
आंवला लोकसभा सीट से भाजपा और सपा दोनों ने ही पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। ऐसे में विरोधी के वोट बैंक में सेंध लगाने में जो प्रत्याशी जितना कामयाब होगा, उसकी जीत उतनी ही पक्की हो जाएगी। इधर सपा से नीरज मौर्य को टिकट दिए जाने के समय हुए विरोध ने भी सेंधमारी में मदद की। मुफ्त राशन योजना के जरिये भाजपा पहले ही बसपा के वोट बैंक में सेंध लगा चुकी है। ऐसे में यह तय है कि जो भी दल पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक में सेंधमारी करने में सफल होगा, जीत का सेहरा भी उसके माथे सजेगा। बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारकर इंडिया गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
राजनीतिक विशलेषक केपी त्रिपाठी के अनुसार, सपा के पीडीए फार्मूले को तोड़ने के लिए भाजपा लंबे समय से सक्रिय है। अयोध्या में रामलला के अचल विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही अक्षत वितरण ने भी पिछड़ा व दलित मतदाताओं में सेंधमारी की है। भाजपा की बढ़त साफ तौर पर दिखाई दे रही है।
आंवला से कौन कब बना सांसद
1967 सावित्री श्याम (कांग्रेस)
1971 सावित्री श्याम (कांग्रेस)
1977 बज राज सिंह (भारतीय लोकदल)
1980 जयपाल सिंह कश्यप (जनता पार्टी सेक्यूलर)
1984 कल्याण सिंह सोलंकी (कांग्रेस)
1989 राजवीर सिंह (भाजपा)
1991 राजवीर सिंह (भाजपा)
1996 कुंवर सर्वराज सिंह (सपा)
1998 राजवीर सिंह (भाजपा)
1999 कुंवर सर्वराज सिंह (सपा)
2004 कुंवर सर्वराज सिंह (जनता दल यूनाईटेड)
2009 मेनका गांधी (भाजपा)
2014 धर्मेन्द्र कुमार कश्यप (भाजपा)
2019 धर्मेन्द्र कुमार कश्यप (भाजपा)
हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/राजेश
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