लोस चुनाव : लेदर सिटी कानपुर में भाजपा हैट्रिक लगाएगी या कांग्रेस करेगी वापसी!
लखनऊ, 11 मई (हि.स.)। गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसा कानपुर उप्र का एक प्रमुख औद्योगिक नगर है। कहा जाता है कि इस शहर की स्थापना सचेंदी राज्य के राजा हिंदू सिंह ने की थी। इस शहर का मूल नाम ‘कान्हपुर’ हुआ करता था और बाद में यह कानपुर हो गया। कानपुर को कभी उत्तर भारत का मैनचेस्टर भी कहा जाता था। कानपुर चमड़ा उद्योग का हब भी है। कानपुर अपने व्यापारिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ राजनीतिक पृष्ठभूमि के लिए भी काफी मशहूर है। उप्र की संसदीय सीट संख्या 43 कानपुर में चौथे चरण के तहत 13 मई को मतदान होगा।
कानपुर लोकसभा सीट का इतिहास
कानपुर लोकसभा सीट पर 1952 में पहला संसदीय चुनाव हुआ। उस चुनाव में कांग्रेस के हरिहर नाथ शास्त्री चुनाव जीते। साल 1957 आम चुनाव में इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार एसएम बनर्जी ने जीत दर्ज की। एसएम बनर्जी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी 1957, 1962, 1967 और साल 1971 के आम चुनाव में भी जीते। साल 1977 आम चुनाव में जनता पार्टी के मनोहर लाल सांसद चुने गए। 1980 और 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी क्रमश: आरिफ मोहम्मद खान और नरेश चंद्र चतुर्वेदी विजयी हुए। 1989 के चुनाव में सीपीएम की सुभाषिनी अली यहां से सांसद चुनी गईं। 1991 से साल 1998 तक भाजपा के जगतवीर सिंह द्रोण और साल 1999 से 2009 आम चुनाव तक कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल ने जीत दर्ज की। 2014 के चुनाव में भाजपा के डॉ. मुरली मनोहर जोशी सांसद बने। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सत्यदेव पचौरी ने जीतकर यहां कमल खिलाया। इस सीट पर कांग्रेस को 6 बार और भाजपा को 5 बार जीत मिली है। कानपुर लोकसभा सीट उन सीटों में शामिल है, जहां से बसपा और सपा का कभी खाता नहीं खुला। इस सीट पर निर्दलीय एसएम बनर्जी, भाजपा के जगतवीर सिंह द्रोण और कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल ने जीत की हैट्रिक का रिकार्ड बना चुके हैं।
पिछले दो चुनावों का हाल
2019 के लोकसभा चुनाव में लोकसभा 2019 में भाजपा के सत्यदेव पचौरी को 468,937 (55.6%) को वोट मिले थे। कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल को 313,003 (37.11%) वोट मिले थे। सत्यदेव पचौरी ने 1 लाख 55 हजार 934 मतों के अंतर से जीत दर्ज की। वही, सपा के रामकुमार निषाद 47,703 (5.72%) वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर रहे। बता दें, इस चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन था।
2014 के चुनाव की बात करें, तो इस चुनाव में भी भाजपा उम्मीदवार डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने 2 लाख 29 हजार 946 वोटों के अंतर से बड़ी जीत दर्ज की। डॉ. जोशी ने कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल को परास्त किया था। बसपा के सलीम अहम और सपा के सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल की इस चुनाव में जमानत जब्त हो गई थी।
किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार
भाजपा ने मौजूदा सांसद सत्यदेव पचौरी की जगह नए चेहरे रमेश अवस्थी को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने भी इस बार नए चेहरे आलोक मिश्रा को टिकट दिया है। बसपा से कुलदीप भदौरिया मैदान में हैं।
कानपुर सीट का जातीय समीकरण
कानपुर संसदीय सीट में करीब 18 लाख मतदाता हैं। कानपुर सीट पर अनुमानित 16-18% ब्राह्मण, 14-15% मुस्लिम, 6% क्षत्रिय, 18-19% वैश्य, सिंधी और पंजाबी है। बचे करीब 35-40% मतदाता एससी और ओबीसी वर्ग से हैं।
विधानसभा सीटों का हाल
कानपुर संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें आर्यनगर, गोविंद नगर, कानपुर कैंट, किदवई नगर और सीसामऊ विधासभा सीटें शामिल हैं। किदवई नगर और गोविंद नगर विधानसभा सीटें भाजपा के कब्जे में हैं, बाकी सीटों पर सपा काबिज है।
जीत का गणित और चुनौतियां
इस बार कानपुर लोकसभा के चुनाव में स्थानीय मुद्दों के साथ साथ राष्ट्रीय मुद्दे भी ज्यादा हावी होते दिखाई दे रहे हैं। सपा से गठबंधन के चलते कानपुर सीट कांग्रेस के खाते में है। देखना ये होगा कि क्या सपा मुस्लिम वोट कांग्रेस को ट्रांसफर करा पाएगी। साथ ही लुंज-पुंज संगठन से कांग्रेस कहां तक पहुंच पाती है। बसपा के कुलदीप सिंह भदौरिया भी कई क्षेत्रों में उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। इससे मुकाबला दिलचस्प होने के आसार हैं। सभी दल अल्पसंख्यक वोटों पर फोकस कर रहे हैं, खासकर भाजपा। दो लाख जैन, सिख और ईसाई वोटर चुनाव नतीजे बदलने की कूवत रखते हैं।
राजनीतिक विशलेषक सुशील शुक्ल के अनुसार, अगर सेंट्रलाइज होकर मुस्लिम मतदाता इंडिया गठबंधन को वोट करता है तो भाजपा के लिए टक्कर कांटे की हो जाएगी। क्योंकि भाजपा ने नए प्रत्याशी पर दांव लगाया है। जो खास चर्चित भी नहीं है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह और सीएम योगी आदित्यनाथ के दौरों के बाद से फिजा बदली है।
कानपुर से कौन कब बना सांसद
1952 हरिहर नाथ शास्त्री (कांग्रेस)
1957 एसएम बनर्जी (निर्दलीय)
1962 एसएम बनर्जी (निर्दलीय)
1967 एसएम बनर्जी (निर्दलीय)
1971 एसएम बनर्जी (निर्दलीय)
1977 मनोहर लाल (भारतीय लोकदल)
1980 आरिफ मो0 खां (कांग्रेस आई)
1984 नरेश चन्द्र चतुर्वेदी (कांग्रेस)
1989 सुभाषनी अली (सीपीएम)
1991 जयवीर सिंह द्रोण (भाजपा)
1996 जयवीर सिंह द्रोण (भाजपा)
1998 जयवीर सिंह द्रोण (भाजपा)
1999 श्रीप्रकाश जायसवाल (कांग्रेस)
2004 श्रीप्रकाश जायसवाल (कांग्रेस)
2009 श्रीप्रकाश जायसवाल (कांग्रेस)
2014 डॉ. मुरली मनोहर जोशी (भाजपा)
2019 सत्यदेव पचौरी (भाजपा)
हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/मोहित
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