लोस चुनाव : अकबरपुर में भाजपा हैट्रिक लगाएगी या सपा का खुलेगा खाता

लोस चुनाव : अकबरपुर में भाजपा हैट्रिक लगाएगी या सपा का खुलेगा खाता
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लोस चुनाव : अकबरपुर में भाजपा हैट्रिक लगाएगी या सपा का खुलेगा खाता


लखनऊ, 11 मई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कानपुर से सटा कानपुर देहात जिसे अकबरपुर लोकसभा सीट के नाम से जाना जाता है। मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में रिसालदार कुंवर सिंह, जो क्षत्रिय थे तथा सम्भवतः जिन्होंने इस नये कस्बे का निर्माण कराया था, इसका नाम गुड़ईखेड़ा से बदल कर ‘अकबरपुर’ कर दिया गया। गंगा और यमुना के मध्य दोआब में बसा यह लोकसभा क्षेत्र कानपुर-झांसी और कानपुर-इटावा को जोड़ने वाला एक टर्निंग प्वाइंट भी है, औद्योगिक क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा इस लोकसभा क्षेत्र में आता है। अकबरपुर में चौथे चरण के तहत 13 मई को मतदान होना है।

अकबरपुर लोकसभा सीट का इतिहास

अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र से पहले यह क्षेत्र बिल्हौर लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। इसमें कानपुर देहात का अधिकांश हिस्सा शामिल था। 2009 में परिसीमन के बाद इसमें से बिल्हौर का हिस्सा चला गया। उसका कुछ हिस्सा मिश्रिख व कुछ इटावा लोकसभा क्षेत्र से जोड़ दिया गया। इधर, कानपुर जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों और एक कानपुर देहात विधानसभा क्षेत्र को शामिल कर अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र बना दिया गया। इसे अकबरपुर रनियां लोकसभा क्षेत्र के भी नाम से जाना जाता है।

अकबरपुर लोकसभा सीट के अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस के प्रत्याशी रहे राजाराम पाल इस सीट से जीत हासिल कर यहां के पहले सांसद बने थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में देशभर में चली मोदी की लहर में यह सीट भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खाते में चली गई और 2014 और 2019 में भाजपा के ही प्रत्याशी देवेंद्र सिंह उर्फ भोले सिंह लगातार दो बार यहां से सांसद चुने गए। बाद में ये क्षेत्र भाजपा का गढ़ बन गया। इस सीट पर सपा का खाता अब तक नहीं खुला है। कानपुर देहात इसलिए भी खास है क्योंकि देश के 14वें राष्ट्रपति रहे रामनाथ कोविंद का यह गृह नगर है।

पिछले दो चुनावों का हाल

लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा के देवेंद्र सिंह उर्फ भोले सिंह ने बसपा की निशा सचान को 2 लाख 75 हजार 142 वोटों से हराया था। देवेंद्र सिंह भोले को 581,282 (56.62%) वोट मिले थे। बसपा प्रत्याशी को 306,140 (29.82%) वोट हासिल हुए थे। वहीं कांग्रेस के राजाराम पाल को 108,341 (10.55%) वोट मिले थे। कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई।

2014 के चुनाव की बात करें, तो इस चुनाव में भी भाजपा उम्मीदवार देवेंद्र सिंह उर्फ भोले सिंह ने 2 लाख 78 हजार 997 वोटों के अंतर से बड़ी जीत दर्ज की। देवेंद्र सिंह उर्फ भोले सिंह ने बसपा प्रत्याशी अनिल शुक्ला वारसी को परास्त किया था। सपा के लाल सिंह तोमर और कांग्रेस के राजाराम पाल की इस चुनाव में जमानत जब्त हो गई थी।

किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार

भाजपा ने मौजूदा सांसद देवेन्द्र सिंह उर्फ भोले सिंह पर तीसरी बार विश्वास जताया है। सपा से राजाराम पाल और बसपा से राजेश कुमार द्विवेदी मैदान में हैं।

अकबरपुर सीट का जातीय समीकरण

अकबरपुर लोकसभा में करीब 17.50 लाख मतदाता हैं। अनुसूचित जाति की आबादी इस सीट पर 23.22 फीसदी है। इस लोकसभा सीट पर ओबीसी, अल्पसंख्यक और एससी मतदाताओं की भूमिका अहम बताई जाती है और ये ही मतदाता लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी और पार्टी की जीत-हार में अहम भूमिका निभाते हैं इसलिए ज्यादातर पार्टी ओबीसी और एससी मतदाता पर अपना ध्यान लगाती है। इसके अलावा इस सीट पर राजपूत और ब्राह्मण मतदाता काफी निर्णायक भूमिका में हैं।

विधानसभा सीटों का हाल

अकबरपुर संसदीय सीट के अंतर्गत विधानसभा की पांच सीटें आती हैं, जिनके नाम रानियां, बिठूर, कल्याणपुर, महाराजपुर और घाटमपुर (अ0जा0) हैं। अकबरपुर लोकसभा सीट में रनियां विधानसभा को छोड़कर बाकी सभी सीटें कानपुर नगर की आती हैं। घाटमपुर सीट एनडीए के सहयोगी अपना दल सोनेलाल के कब्जे में है। बाकी सीटों पर भाजपा काबिज है।

जीत का गणित और चुनौतियां

इस सीट का 80 फीसदी हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है। चुनावी दृष्टि से देखें तो जातिगत आधार पर भी शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बड़ा अंतर है। शहर में मुस्लिम और सवर्ण जबकि ग्रामीण में पिछड़ा और दलित वर्ग के मतदाताओं के बीच खींचतान है। ऐसे में राजनीतिक दलों को अपनी दोहरी रणनीति बनाकर काम करना पड़ रहा है। यहां भाजपा और सपा के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है। पूर्व सांसद राजाराम पाल कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हो गए थे। सपा ने उन्हें मैदान में उतारा है। इस बार सपा-कांग्रेस का गठबंधन है, जिससे अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम वोट बिखरने का खतरा नहीं है। इस बार यहां केंद्र सरकार की योजनाओं और अनुच्छेद 370 व राम मंदिर निर्माण की चर्चा है। जिसका फायदा भाजपा को मिलेगा।

राजनीतिक विशलेषक सुशील शुक्ल के अनुसार, भाजपा की डबल इंजन की सरकार के विकास कार्यों का प्रभाव क्षेत्र में दिखता है। भाजपा के सामने इंडिया गठबंधन की मजबूत चुनौती है। अगर बसपा ने अल्पसंख्यक वोटरों में सेंध लगा दी तो सपा का गणित गड़बड़ा जाएगा।

अकबरपुर से कौन कब बना सांसद

2009 राजाराम पाल (कांग्रेस)

2014 देवेन्द्र सिंह उर्फ भोले सिंह (भाजपा)

2019 देवेन्द्र सिंह उर्फ भोले सिंह (भाजपा)

हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/मोहित/सियाराम

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