लोस चुनाव : कैराना इस बार किसके साथ निभाएगा याराना
लखनऊ, 26 मार्च (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों से एक कैराना सीट शामली जिले में आती है। कैराना लोकसभा सीट पश्चिमी यूपी को प्रभावित करने वाली सीट मानी जाती है।मुजफ्फरनगर से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद यह क्षेत्र हरियाणा के पानीपत से भी सटा है। यमुना नदी के पास बसे कैराना को रालोद का घर भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में सबसे अधिक मतदाताओं की संख्या मुस्लिम और जाट समुदाय की है। हालांकि यह जातिगत आंकड़ा हर बार एक जैसा चुनावी फैसले नहीं करता है। इस लोकसभा क्षेत्र के तहत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं।
भाजपा ने गाड़ा जीत का झंडा
कैराना लोकसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी। उसी साल चुनाव हुआ था, जिसमें निर्दलीय प्रत्याशी यशपाल सिंह ने जीत दर्ज की थी। 2014 और 2019 के आम चुनाव में कैराना में कमल खिला। 2014 के चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता हुकुम सिंह ने यहां जीत का परचम लहराया था। हुकुम सिंह ने 5,65,909 (50.54 फीसदी) वोट हासिल किए थे। सपा के नाहिद हसन 3,29,081 (29.49 फीसदी) दूसरे, बसपा के कंवर हसन 1,60,414 (14.33 फीसदी) तीसरे और रालोद के करतार सिंह भडाना 42,706 (3.81 फीसदी) मत पाकर चौथे स्थान पर रहे। हुकुम सिंह के असमय निधन के बाद 2018 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को चुनाव मैदान में उतारा। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को रालोद के हाथों हार का सामना करना पड़ा। रालोद प्रत्याशी तब्बसुम हसन को 4,81,181 (51.26 फीसदी) वोट मिले। वहीं दूसरे स्थान पर रही भाजपा प्रत्याशी के खाते में 4,36,564 (46.51 फीसदी) वोट आए।
2019 में भाजपा ने हार का बदला लिया
पिछले आम चुनाव में भाजपा ने उपचुनाव में मिली जीत को हार में बदलने का काम किया। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी को 566,961 (50.44 फीसदी) वोट मिले। दूसरे स्थान पर रही सपा प्रत्याशी तब्बसुम हसन को 4,74,801 (42.44 फीसदी) वोट हासिल हुए। कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र सिंह मलिक 69335 (6.17 फीसदी) वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। पिछले चुनाव में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन था। गठबंधन में ये सीट सपा के खाते में आई थी।
2024 में गठबंधन का स्वरूप बदला
2024 के आम चुनाव में प्रदेश की राजनीति में गठबंधन का स्वरूप बदल गया है। एनडीए में भाजपा, रालोद, सुभासपा, अपना दल एस और निषाद पार्टी है। वहीं इंउिया गठबंधन में कांग्रेस और सपा शामिल है। बसपा इस बार अकेले मैदान में है। कैराना सीट को रालोद का गढ़ माना जाता है। गठबंधन में ये सीट भाजपा के खाते में है। आइएनडीआई गठबंधन में ये सीट सपा के खाते में है।
भाजपा ने दोबारा प्रदीप चौधरी पर जताया विश्वास
भाजपा ने पिछले चुनाव के विजेता प्रदीप चौधरी पर दोबारा विश्वास जताते हुए उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है। सपा ने इकरा हसन को और बसपा ने श्रीपाल राणा को यहां से टिकट दिया है। सपा प्रत्याशी इकरा हसन कैराना विधायक नाहिद हसन की बहन हैं।
दो बार से अधिक नहीं मिली किसी को जीत
कैराना लोकसभा सीट का इतिहास रहा है कि यहां पर कोई भी दल दो बार से ज्यादा लगातार जीत हासिल नहीं कर सका है। यहां की जनता हर बार परिवर्तन कर काबिज दल को बाहर कर देती है। यह सिलसिला पहले लोकसभा चुनाव से चला आ रहा है। यहां पर कांग्रेस की लहर के बावजूद पहले लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी ने भारी मतों से जीत हासिल कर कांग्रेस को हराया था। बाद में यहां जनता दल के प्रत्याशी ने लगातार दो बार 1989 और 1991 में जीत हासिल की, लेकिन तीसरी बार वह जीत नहीं सके। इसी तरह यह कारनामा अजीत सिंह चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ने 1999 और 2004 में कर दिखाया, लेकिन वह भी तीसरी बार लगातार जीत हासिल नहीं कर सके।
40 साल पहले कांग्रेस को मिली थी जीत
1984 के बाद से कांग्रेस यहां कभी नहीं जीती। कैराना में कांग्रेस के लिए 40 साल से सूखा पड़ा है। वहीं भाजपा और रालोद इस सीट पर तीन और सपा, बसपा एक-एक बार विजय पताका फहरा चुके हैं। 2014 में मोदी लहर के दौरान भाजपा ने एक बार फिर इस सीट पर परचम लहराया था, लेकिन 2018 में हुए उपचुनाव में भाजपा ये सीट हार गई, लेकिन 2019 में हुए इलेक्शन में भाजपा एक बार फिर इस सीट पर काबिज हुई है। अब सबकी नजरें 2024 के चुनाव पर है। कांग्रेस के सामने जहां एक ओर 40 साल का सूखा खत्म करने की चुनौती है तो वहीं भाजपा भी इस सीट पर कमल खिलाने की तैयारी में है।
लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा में एनडीए का दबदबा
कैराना लोकसभा सीट में पांच विधानसभा शामली, कैराना, थानाभवन, नकुड़ और गंगोह शामिल हैं। वर्तमान में पांच में से दो सीटों पर भाजपा, दो पर रालोद और एक सीट पर सपा काबिज है। कैराना विधानसभा की बात करें तो यहां से सपा प्रत्याशी नाहिद हसन, नकुड़ विधानसभा से भाजपा के मुकेश चौधरी, गंगोह विधानसभा से भाजपा के किरत सिंह गुर्जर, थाना भवन विधानसभा से रालोद के अशरफ अली, शामली विधानसभा से रालोद के प्रसन्न चौधरी विधायक हैं।
क्या कहते हैं समीकरण
आंकड़ों की बात करें तो कैराना लोकसभा सीट पर करीब 17 लाख मतदाता हैं। इनमें से साढ़े 11 लाख हिंदू और करीब साढ़े पांच लाख मुस्लिम वोटर हैं। हिंदू वोटरों की बात करें तो सबसे अधिक जाटों की संख्या है, इसलिए यहां पर मुस्लिम-जाट का गठजोड़ अधिक देखा जाता है। पांच विधानसभा की बात करें तो प्रत्येक पर करीब 50-50 हजार अनुसूचित जाति के भी वोटर हैं। इसी तरह से दूसरे सबसे ज्यादा वोटर सैनी बिरादरी से हैं। पांच विधानसभा की बात करें तो प्रत्येक पर करीब 50-50 हजार अनुसूचित जाति के भी वोटर हैं।
अब बात करें बन रहे नए समीकरण की तो भाजपा के पास अपना वोट बैंक है। रालोद को जाट वोट अधिक मिलते हैं। भाजपा-रालोद गठबंधन में हैं। ऐसे में एनडीए का पलड़ा यहां भारी दिखता है। कांग्रेस-सपा दोनों दलों को उम्मीद है कि गठबंधन होने के कारण उन्हें मुस्लिमों के साथ-साथ अन्य वर्गों का भी वोट मिलेगा। इसके जरिए गठबंधन इस सीट पर जीत का ख्वाब देख रहा है। बसपा को दलित और मुस्लिम वोटों का सहारा है। बसपा इंडिया गठबंधन के वोट बैंक खासकर मुस्लिम वोटरों को साधने में जुटी है। हालांकि, जीत का सेहरा किसके सिर पर बंधेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
कैराना सीट का चुनावी इतिहास
1962 - यशपाल सिंह निर्दलीय
1967 - गय्यूर अली खान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1971 - शफ्कत जंग कांग्रेस
1977 - चंदन सिंह जनता पार्टी
1980 - गायत्री देवी जनता पार्टी एस
1984 - चौधरी अख्तर हसन कांग्रेस
1989 - हरपाल पंवार जनता दल
1991 - हरपाल पंवार जनता दल
1996 - मनव्वर हसन सपा
1998 - वीरेंद्र वर्मा भाजपा
1999 - अमीर आलम रालोद
2004 - अनुराधा चौधरी, रालोद
2009 - तबस्सुम हसन बसपा
2014 - हुकुम सिंह भाजपा
2018 उपचुनाव - तबस्सुम हसन रालोद
2019 - प्रदीप चौधरी भाजपा
हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/राजेश
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