चेतना का सम्बंध मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियों और भावनाओं से : प्रो.योगेन्द्र प्रताप सिंह

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चेतना का सम्बंध मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियों और भावनाओं से : प्रो.योगेन्द्र प्रताप सिंह


--इविवि में ‘शोध का बोध’ विषय पर व्याख्यान

प्रयागराज, 30 नवम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि शोध करना ज्ञान में कुछ जोड़ना होता है। शोध में नया कुछ नहीं होता बल्कि मौलिक होता है। रिसर्च में शोधार्थी को अपने को बाहर के प्लेटफार्म पर रखकर शोध करना चाहिए, किसी विमर्श में पड़कर नहीं। संश्लेषण ही इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी है। चेतना का सम्बंध मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियों और भावनाओं से होता है।

साहित्यिक संस्था ’नया परिमल’ इलाहाबाद द्वारा गुरूवार को हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ’शोध का बोध’ विषय पर शोध संवाद का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि ज्ञान की सत्ता कभी वस्तु, कभी तर्क और विश्वास में दिखाई देती है। साहित्यिक शोध सांस्कृतिक समन्वय को उन्नत करता है। परम्परा सदैव नई होती है। लोक की परम्परा सदैव शास्त्र से टक्कर लेती रही है। सत्य की भी प्रमाणिकता होती है।

अध्यक्षीय वक्तव्य डॉ. सुजीत कुमार सिंह ने एवं स्वागत वक्तव्य नया परिमल के संस्थापक सचिव डॉ. विनम्रसेन सिंह ने दिया। व्याख्यान के दौरान विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. चितरंजन कुमार, डॉ. अमितेश, शोधछात्र बाल करन सिंह, सौरभ मिश्रा, हिमांशधर द्विवेदी, अमन वर्मा, किरन राजभर, सुमन राजेश्वरी, चंद्रशेखर कुशवाहा और स्नातक-परास्नातक के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। संचालन शोध छात्र सर्वेश सिंह ने किया। व्याख्यान माला की संयोजक शोध छात्रा रूचि झा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/विद्याकांत/पदुम नारायण

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