भगवान श्रीराम भारतीय संस्कृति के ध्वज वाहक : रामभद्राचार्य

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भगवान श्रीराम भारतीय संस्कृति के ध्वज वाहक : रामभद्राचार्य




- कुशीनगर में जगदगुरू रामभद्राचार्य की रामकथा का चौथा दिन

कुशीनगर, 07 दिसंबर(हि.स.)। तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि भगवान राम ही चन्द्रमा हैं। प्रभु श्रीराम राम के विविध रुप हैं। चंद्र रुपी राम के अवतार पर कोई आरोप नहीं लग सकता है। क्योंकि यह प्रभु श्रीराम की मर्यादा है। भगवान राम के विविध रुप हैं। जो पुत्र, पिता, पति या समाज के पथ प्रदर्शक का है। प्रभु श्री राम ने जीवनपर्यंत मनुष्य के रुप में जन्म लेने की मर्यादा का पालन किया। यही कारण है कि उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहा गया और वे भारतीय संस्कृति के प्रमुख ध्वजवाहक बने।

जगदगुरू ने कुशीनगर के सेमरा धाम में चल रहे नौ दिवसीय रामकथा के चौथे दिन गुरुवार को कथा सुनाई। श्रीराम के चंद्र अवतार के महिमा का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि अइसन चंदा ना देखनी भुवन में, जेकर शोभा भरल त्रिभुवन में। प्रभु श्रीराम के जगद्गुरु द्वारा वर्णित इस रुप की महिमा को सुनते ही पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। जय श्रीराम के जय घोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया। पति पत्नी के संबंधों पर बोलते हुए उन्होंने आगे कहा कि पति को पतन से बचाने वाली ही सच्चे अर्थों में जीवन संगिनी है। राम से दूर लंका की अशोक वाटिका में रहने के बाद भी माता सीता हमेशा अपने पति, कुल व समाज के कल्याण के बारे में सोचती रहती हैं।

उन्होंने आगे कहा कि विद्या को अर्जन करने वाला तपस्या व दान करने वाला ही वास्तव में मानव है। उसी का जीवन धन्य है जो पृथ्वी पर आकर भगवान की बनाई इस दुनिया में अपनत्व, संस्कार व मर्यादा का पालन करता है। सच्चे अर्थों में तप, दान व शील वाला आचरण रखने वाला ही मनुष्य कहलाने का हकदार है। इससे पहले मुख्य यजमान विजय राय व शोभा राय तथा हरेंद्र जायसवाल व मीना जायसवाल के द्वारा अयोध्या से वैदिक विद्वानों के द्वारा पूरे विधि विधान से व्यास गद्दी के पूजन के बाद कथा प्रारंभ हुई।

हिन्दुस्थान समाचार/गोपाल

/राजेश

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