'कुशीनगर लोकरंग 2024' का आगाज,लोक संस्कृति की छटा बिखेरेंगे विदेशी कलाकार
कुशीनगर, 31 मार्च (हि.स.)। 14–15 अप्रैल को कुशीनगर के जोनिया जनेबीपट्टी गांव में आयोजित लोकरंग 2024 में भारतीय मूल के विदेशी कलाकार लोक संस्कृति की छटा बिखेरेंगे। सुप्रसिद्ध सरनामी भोजपुरी गायक राजमोहन, भोजपुरी पॉप रैपर रग्गा मेन्नो, सोन्दर हीरा, वरुण नन्दा और किशन हीरा की प्रस्तुतियां देखने को मिलेंगी। यह जानकारी कार्यक्रम के आयोजक लेखक व कथाकार सुभाष कुशवाहा ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत में दी।
उन्होंने बताया कि ये सभी लोक कलाकार उन्नीसवीं सदी में, 1841 या उसके बाद, ब्रिटिश उपनिवेशों में कांट्रेक्ट के आधार पर भेजे गये भारतीय मजदूरों, जिन्हें बाद में गिरमिटिया कहा गया, की चौथी पीढ़ी के कलाकार हैं। मूलतः इनके पूर्वज पहले सूरीनाम ले जाए गये। सूरीनाम में जो भोजपुरी जन्मी, उसमें अवधी, मगधी, बिहार और उत्तर प्रदेश की भोजपुरी आदि का मिलाजुला रूप था, जिसे सरनामी कहा गया। इसलिए हम राजमोहन को सरनामी भोजपुरी गायक कहते हैं। सूरीनाम, नीदरलैंड का एक उपनिवेश था और उसके आज़ाद होने के बाद, वहां के बहुत से गिरमिटिया परिवार नीदरलैंड आकर बस गये, इसलिए आने वाले ये कलाकार सूरीनामी धरती पर जन्म लेने के बावजूद, नीदरलैंड निवासी हैं।
भोजपुरी पाप गायक हैं रग्गा:
इस टीम में शामिल रग्गा मेन्नो, भोजपुरी पॉप गायक हैं. लोकरंग के मंच पर यह एक भिन्न किस्म का प्रदर्शन होगा. उनके रिहर्सल वीडियो देख कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उनकी गायकी एक अलग अनुभव देगी कि, भोजपुरी या भारतीय लोक संस्कृति ने पश्चिमी देशों की संस्कृति से मिलकर, एक संकर लोक संस्कृति को जन्म दिया है। यही लोक संस्कृति के समावेशी तत्व हैं, जो हर समाज, संस्कृति, जीवन को अपने में मिला लेते हैं। वरुण नन्दा, सुप्रसिद्ध सूरनामी ढोलक वादक हैं जबकि सोन्दर हीरा ने पूर्वांचल के लवंडा और अहीरवा नाच को सात समंदर पार जिंदा रखा हुआ है, जो गिरमिटिया मजदूरों के साथ, दो सदी पूर्व सूरीनाम जा पहुंचा था। यह कम आश्चर्य का विषय नहीं कि जब यूरोप में अहीर जाति नहीं होती है तब भी वहां पहुंची हमारी लोक कला, जिन्दा है, यानि लोक कलाएं, जाति मुक्त होती हैं।
किशन हीरा, एक प्रतिष्ठित गायक और प्रतिभाशाली ढोलक और धनताल वादक हैं।
लोक संस्कृति को विदेश से जोड़ रहा लोकरंग:
कुशीनगर का लोकरंग 2024 देश का पहला मंच होगा, जो भोजपुरी लोकसंस्कृति के वितान को भारत, सूरीनाम और नीदरलैंड से जोड़ेगा.यह सही है की ज्यादातर गिरमिटिया कलाकार, मूलतः निम्न जातियों के वंशज हैं। इन्होंने विदेशी धरती को अपनी धरती बनाते हुए, सांस्कृतिक पहचान या अपने को सांस्कृतिक रूप से भारत से जोड़ने के वास्ते, धर्म का सहारा लिया था। वे तब शिक्षित भी नहीं थे. यही कारण रहा कि ज्यादातर कलाकार, पश्चिमी वैज्ञानिक समाज में रहते हुए भी, अपने पूर्वजों के दुखों को विधि-विधान का लेखा-जोखा मानते हुए, अवैज्ञानिक सोच से मुक्त न हो सके, धर्मांध बने रहे और पश्चिमी देशों में खुद को हिंदुत्व के पैरोकार के रूप में स्थापित किया मगर कुछ कलाकारों ने वास्तव में अपने पूर्वजों के भोगे दुःख, पीड़ा, दर्द, जुल्म आदि को विषय बनाकर जीवन संघर्षों को विषय बनाया। एक बात जो मुझे खटकती है, वह यह कि, किसी भी लोक कलाकार ने जतिदंश पर हमला नहीं किया, यद्यपि कि वे भारत की निम्न जातियों के वंशज हैं। एक कारण यह भी हो सकता है कि इस पीढ़ी के सामने, अब जाति स्मिता का प्रश्न ही नहीं है. उन्हें पश्चिमी देशों में अस्पृश्यता से नहीं जूझना पड़ता है।
हिन्दुस्थान समाचार/गोपाल/बृजनंदन
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