क्रियायोग गुरु योगी सत्यम ने प्रयागवासियों को दी योग की शिक्षा

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क्रियायोग गुरु योगी सत्यम ने प्रयागवासियों को दी योग की शिक्षा


क्रियायोग गुरु योगी सत्यम ने प्रयागवासियों को दी योग की शिक्षा


प्रयागराज, 21 जून (हि.स.)। उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र में बुधवार को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर क्रियायोग गुरु के सानिध्य में 9वॉ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। साथ ही प्रयागराज शहर के विभिन्न स्थानों पर अंतरराष्ट्रीय क्रियायोग गुरु स्वामी योगी सत्यम ने क्रियायोग की शिक्षा देते हुए योग के महत्व को समझाया। इस अवसर पर देश ही नहीं विदेश के भी साधक मौजूद रहे।

इस अवसर पर क्रियायोग गुरु योगी सत्यम ने बताया कि योगेश्वर कृष्ण अर्जुन को आध्यात्मिक शिक्षा देते हुए स्पष्ट किया कि हे अर्जुन योगी बनो। योग वह अवस्था है, जिसमें समय व दूरी (माया) का लोप हो जाता है और मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप की अनुभूति करता है। जिससे उसे उसके व परब्रह्म के बीच शाश्वत एकता की अनुभूति होती है। तत्पश्चात उन्होंने क्रियायोग के विभिन्न रिचार्जिंग बिंदुओं को स्पष्ट करते हुए 15 मिनट का अभ्यास कराया।

अर्जुन को शिक्षा देते हुए भगवान कृष्ण ने कहा कि वह मनुष्य जो परम्परागत से परम सत्य की अनुभूति के लिए सामान्य तरीके से तप, ज्ञान एवं कर्म का अभ्यास करता है उसे बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए अर्जुन तुम इस अविनाशी परमज्ञान का अनुभव करो। इसी ज्ञान को महावतार बाबा ने क्रियायोग कहा है। लाहिड़ी महाशय को क्रियायोग की दीक्षा देते समय महावतार बाबा ने कहा कि जिस ज्ञान को मैं तुम्हें दे रहा हूं उसे हजारों वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने अजुर्न को दिया था। सामान्य तरीके से इस ज्ञान को ग्रहण नहीं किया जा सकता। कृष्ण अर्जुन को ज्ञान इसलिए दे पाए क्योंकि अर्जुन श्रीकृष्ण को सखा के रूप में अनुभव करते थे। कृष्ण को सखा के रूप में अनुभव करने के लिए क्रियायोग सरलतम एवं श्रेष्ठतम् मार्ग है।

अर्जुन ने श्रीकृष्ण को सखा के रूप में अनुभव किया। इसलिए अर्जुन कृष्ण भगवान द्वारा दी गई शिक्षा को आत्मसात कर सके। अभ्यास से सिद्ध हो चुका है कि हम मनुष्य कृष्ण को सखा के रूप में आसानी से अनुभव कर लेते हैं। ऐसी स्थिति में अंतःकरण में कृष्ण भगवान का ज्ञान प्रज्ज्वलित हो जाता है और हम विकास की उच्चतम् अवस्था योग की अनुभूति कर लेते हैं।

गुरुदेव ज्ञानावतार स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि जो लाहिड़ी महाशय के श्रेष्ठतम् शिष्य थे, जिन्होंने परमहंस योगानंद को 10 वर्ष तक आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान कर पश्चिमी देशों में क्रियायोग के प्रचार प्रसार के लिए भेजा। स्वामी युक्तेश्वर गिरि मृत्युंजय महावतार बाबाजी द्वारा प्राप्त हुए आज्ञा के अनुसार कैवल्य दर्शनम् की रचना की। जिसके तीसरे चैप्टर साधन के सूत्र नं 12 से 18 में स्पष्ट किया है कि जब मनुष्य आठ प्रकार के बंधन-घृणा, भय, लज्जा, शोक, निंदा, जाति अभिमान, कुल-अभिमान एवं आत्माभिमान से ग्रसित होता है तब वह यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि का अभ्यास नहीं कर सकता। क्रियायोग ध्यान करने से मनुष्य आठ प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाता है और वह यम, नियम, आसन आदि का सही अभ्यास करके परमसत्य की अनुभूति कर लेता है। ऐसा होते ही मनुष्य समस्त प्रकार के कष्टों से हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है। जिसे मोक्ष कहते है।

इस अवसर पर योगी सत्यम् द्वारा क्रियायोग अभ्यास क्रियायोग आश्रम के प्रांगण के साथ-साथ पुलिस होमगार्ड ट्रेनिंग सेन्टर, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृति केन्द्र एवं लाइव प्रसारण 32 देशों में किया गया। क्रियायोग कार्यक्रम के समागम में भारत के साथ-साथ अमेरिका, कनाडा, सिंगापूर, ब्राजील, यूरोप, साउथ आदि देशों से लोगों ने भाग लिया।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/पदुम नारायण

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