मूर्ति भी रखे और हमें कब्रिस्तान में नहीं जाने दे रहे हैं
लखनऊ, 7 दिसंबर (हि.स.)।गोपाल सिंह विशारद के मामले में फैसला हो जाने के बाद फैजाबाद न्यायालय को आशंका होने लगी कि विवादित स्थल पर अधिक भीड़ जमा हुई तो साम्प्रदायिक सौहाद्र को खतरा हो सकता है। फैजाबाद के उपायुक्त ने अदालत ने याचना किया कि फैसले में यह भी आदेश देने की कृपा की जाए कि आदेश की आड़ में वर्ग विशेष के लोग विवादित स्थल पर भीड़ जमा न करें, ना ही कोई नया निर्माण करें। 1950 के सभी मुकदमों की प्रकृति एक समान होने के कारण सिविल जज ने मुकदमों को एक साथ सुनने का आदेश दिया। मामला सिविल न्यायालय में चल रहा था इसलिए सिटी मजिस्टे्रट ने 30 जुलाई 1953 को भारतीय दंड संहिता की धारा 145 के अंर्तगत पहले की गई कुर्की की कार्रवाई और रिसीवर नियुक्त करने को निरस्त कर दिया था, लेकिन इस पर स्टे आ गया।
17 दिसंबर 1959 को निर्मोही अखाड़ा भी मुकदमे में शामिल हो गया। अखाड़े के महंत रामेश्वर दास ने मुसलमानों, रिसीवर और सरकार के खिलाफ मुकदमा ठोक दिया। कहा कि वह लंबे समय से श्रीरामजन्म भूमि का प्रबंधक और पुजारी रहा है, इसलिए उक्त मंदिर का काम उसे या उसके प्रतिनिधि को सौंपा जाना चाहिए। इस नए किरदार को भी सिविल जज ने अन्य मुकदमों के साथ नत्थी कर दिया।
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड आया मैदान में
इसके बाद 12 दिसंबर 1961 को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से मोहम्मद हाशिम अंसारी आए मैदान में और उन्होंने मुकदमा दायर कर दिया। हाशिम अंसारी ने गोपाल सिंह विशारद, सरकार, कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, नगर दंडनायक, अध्यक्ष अखिल भारतीय हिंदू महासभा, महंत रामंचद्रदास, आर्य समाज और सनातन धर्म सभा सभी को प्रतिवादी बनाकर अदालत में कहा कि विवादित परिसर में रामलला की मूर्ति रख दी गई है, और वहां पर स्थित कब्रिस्तान में हमे जाने उक्त प्रतिवादी जाने नहीं दे रहे हैं।
मांग की गई कि विवादित स्थल को मस्जिद घोषित करके सुन्नी वक्फ बोर्ड के कब्जे में दे दिया जाए। अपने दावे के समर्थन में सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से हाशिम अंसारी ने अदालत में नक्शा पेश किया जिसमें बाबरी मस्जिद और गंजे शहीदां दिखाया गया था। गंजे शहीदां क्या है और यह कब बनाया गया। हनुमान गढ़ी पर रहकर भोजन करने वाले सुन्नी मुस्लिम ने अफवाह फैलाया था कि हिंदुओं ने मस्जिद तोड़ दी है, जिसके बाद हुए दंगे में मारे गए मुसलमानों को जिस कब्र में दफनाया गया उसे ही गंजे शहीदां कहते हैं। यह घटना औरंगजेब काल के बाद की है। हाशिम अंसारी ने अदालत को यह भी बताया कि 1528 से ही मुसलमानों का इस जगह पर कब्जा है।
हिंदू पक्ष ने दिया कुरान का हवाला
हिंदू पक्षकारों ने अपने मुकदमें में यह एक तथ्य और जोड़ दिया और कहा कि इस्लाम के नियमों के अनुसार वहां मस्जिद नहीं हो सकती है। कुरान में कहा गया है कि कोई भी मुसलमान विवादित स्थान या जबरदस्ती या धोखे या छल से छीने गए स्थान पर नमाज अदा नहीं करेगा। हिंदुओं ने फतवा ए आलमगिरी खंड 6 पेज संख्या 234 का हवाला अदालत में दिया। हिंदू पक्ष ने यह भी कहा कि मीर बांकी तीन गुंबद तोडक़र उसे बनवा पाने में ही सफल हो पाया था। चौदह कसौटी के स्तंभों जिन पर हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां हैं, चंदन की लकड़ी का छन्नियों, भवन की बनावट, रामचबूतरा आदि उसके हिंदू मंदिर होने का स्पष्ट प्रमाण है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे में अगर रामचबूतरा के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया गया है तो आखिर किसी मस्जिद में राम चबूतरा होता है? इसके अलावा हिंदू पक्ष ने गंजे शहीदां और बाबरी ढांचे के खसरा नंबर को भी फर्जी साबित कर दिया।
हिन्दुस्थान समाचार/ मार्कण्डेय पाण्डेय/बृजनंदन
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