'काशी' अपने सांसद को दोबारा-तिबारा भी देती है सेवा का मौका, संसदीय इतिहास मूक गवाह
- भाजपा उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को जीत का हैट्रिक लगाने का मौका, सियासी समीकरण भी साथ
वाराणसी, 31 मई (हि.स.)। काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी अपने अलमस्त फक्कड़ी जीवन शैली के लिए ही नहीं बल्कि अपने राजनीतिक सूझबूझ और धारा के विपरित निर्णय के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां किसी को कोई चेला नहीं, गुरू से ही सम्बोधन करता है और गर्व से बताता है कि खाक भी जिस जमी का पारस है वो शहर हमारा बनारस है। पसंद आ गया सियासी दल और जनप्रतिनिधि तो बाबा की नगरी उसे दोबारा-तिबारा भी सेवा का अवसर देती है। नहीं पसंद आने पर उसे दरकिनार करने में भी देर नहीं लगाती।
बनारस का संसदीय इतिहास भी इस बात का मूक गवाह है। आजादी के बाद से अब तक के संसदीय इतिहास पर नजर डाले तो काशी के पहले ऐसे कांग्रेस के सांसद रहे रघुनाथ सिंह, जिन्हें बाबा की नगरी ने 1952 के पहले चुनाव से लेकर लगातार तीन बार 1957 फिर 1962 में सेवा का भरपूर मौका दिया। इसके बाद बाद 1967 में सीपीएम प्रत्याशी सत्यनारायण सिंह को जीताकर शहर को कांग्रेस का गढ़ समझने वाले रघुनाथ सिंह को धुल भी चटा दिया था। तब सीपीएम के सत्यनारायण सिंह को 138789 मत मिला था। सत्यनारायण सिंह से जब काशीवासियों का मोहभंग हुआ तो 1971 में कांग्रेस के राजाराम शास्त्री को फिर सेवा का मौका दिया। तब पाकिस्तान को जंग में करारी शिकस्त देकर उसे दो टुकड़ों में बांट देने के बाद पूरे देश में कांग्रेस नेतृत्व श्रीमती इंदिरा गांधी की प्रचंड लहर भी चल रही थी। इसके बाद देश में आपातकाल का दौर आया। इससे काशी भी अछूती नही रही। आपातकाल के बाद हुए संसदीय चुनाव में काशी ने संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी चन्द्रशेखर को जीताकर राजाराम शास्त्री को करारी शिकस्त खाने के लिए मजबूर कर दिया लेकिन कुछ ही समय में सरकार और उम्मीदवार से मोहभंग होने के बाद काशी ने वर्ष 1980 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस के धुरंधर स्थानीय नेता पं. कमलापति त्रिपाठी को सिर माथे पर बिठा लिया। पंडित जी को कुल 129063 मत और विपक्षी दल के स्थानीय कद्दावर समाजवादी नेता राजनारायण को कुल 104328 मत मिला। इसके बाद जनता ने 1984 में फिर कांग्रेस पर भरोसा जता स्थानीय प्रत्याशी श्यामलाल यादव को विजेता बनाया।
यादव को कुल 153076 मत और सीपीआई के दिग्गज कामरेड ऊदल को 58664 मत मिला था । इसके बाद आया बोफोर्स घोटाले का दौर काशी ने भी इससे नाराज होकर सत्ता के विपरीत चलने का मन बना लिया। 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता दल के प्रत्याशी और काशी के लाल लालबहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री पर बाबा की नगरी का प्यार बरसा। अनिल शास्त्री ने कुल 268196 मत पाकर कांग्रेस के श्यामलाल यादव को पटखनी दी। इसके बाद आया राममंदिर निर्माण के लिए भाजपा के रथयात्रा और बाबरी मस्जिद विध्वन्स का दौर। काशी पर भी भगवा रंग चटख होने लगा। 1991 में भाजपा के प्रत्याशी और पूर्व डीजीपी श्रीशचन्द्र दीक्षित को काशी ने सिर माथे पर बैठाया। दीक्षित को कुल 186333 मत और उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी सीपीएम के राजकिशोर को 149894 मत मिला था । इसके बाद वर्ष 1996 में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल पर फिर जनता ने भरोसा जताया। 1998 में दोबारा और 1999 में तिबारा शंकर प्रसाद जायसवाल को काशी ने विजयश्री का वरण कराया। तीन बार लगातार सेवा का मौका पाने के बाद भी जनआकांक्षा पर खरे न उतरने पर शंकर प्रसाद जायसवाल को 2004 में जनता ने पटखनी दे दी। और कांग्रेस के स्थानीय दिग्गज छात्रनेता डा.राजेश मिश्र पर जमकर प्यार बरसा उन्हें विजेता बना दिया। इसके बाद भाजपा के दिग्गज नेता डा.मुरली मनोहर जोशी ने 2009 के चुनाव में यह सीट कांग्रेस से छिन ली। काशी की जनता ने भाजपा के आधार स्तम्भ नेता पर भरोसा जता कुल 203122 मत देकर उन्हें विजयश्री का वरण कराया। इसके बाद आया वर्ष 2014 का दौर तत्कालीन केन्द्र सरकार के नीतियों से खफा काशी ने फिर धारा से विपरित चलने का निर्णय लिया। तब पूरे देश के राजनीतिक क्षितिज पर धूमकेतू की तरह उभरे भाजपा संसदीय दल के नेता नरेन्द्र मोदी पर भरपूर प्यार लूटा काशी ने उन्हें रिकार्ड मतों से जीता इतिहास रच दिया। इस चुनाव में आप के अरविन्द केजरीवाल को छोड़ सपा बसपा कांग्रेस के प्रत्याशी की जमानत भी नही बच पाई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तब भाजपा के प्रत्याशी को कुल 581022 मत और दुसरे स्थान पर रहे आप के अरविन्द केजरीवाल को 209238 मत मिला था । चुनाव में कांग्रेस के अजय राय को 75614,बसपा के सीए विजय प्रकाश को 60579 तथा सपा के कैलाश चौरसिया को 45291 मत मिला था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बाबा की नगरी ने वर्ष 2019 में लगातार दूसरी बार सेवा का अवसर दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी को काशी के मतदाताओं ने प्रचंड बहुमत दिया। उन्हें कुल 6,74,664 मत मिला था । समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी शालिनी यादव दूसरे नंबर पर रही । शालिनी यादव को 1,95,159 वोट मिले थे। शालिनी यादव अब भाजपा में शामिल हो चुकी हैं। 2019 में अजय राय लगातार तीसरी बार तीसरे नंबर पर रहे और उन्हें 1,52,548 वोट मिले थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दूसरी बार 4,79,505 मतों के अंतर से बड़ी जीत हासिल की थी। तब भी वाराणसी में लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में 19 मई को मतदान हुआ था। प्रधानमंत्री मोदी ने 56.37 प्रतिशत मत हासिल किया था। पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक से भाजपा की बढ़ी लोकप्रियता का इसमें बड़ा योगदान था। इस बार 2024 में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जीत की हैट्रिक सियासी पंडित तय मान रहे है। लोगों की निगाहें जीत के अंतर पर टिकी हुई है। वाराणसी के संसदीय सीट के इतिहास में भाजपा सात बार और कांग्रेस ने पांच बार जीत दर्ज की हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/प्रभात
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