कन्नौज: सीट ने हमेशा खुशबू अलग ही बिखेरी, दिए तीन मुख्यमंत्री

कन्नौज: सीट ने हमेशा खुशबू अलग ही बिखेरी, दिए तीन मुख्यमंत्री
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कन्नौज: सीट ने हमेशा खुशबू अलग ही बिखेरी, दिए तीन मुख्यमंत्री


कन्नौज, 04 मई (हि. स.)। उत्तर प्रदेश की कन्नौज सीट इन दिनों सुर्खियों में है। इस सीट से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव मैदान में हैं। अखिलेश ने यहां अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। सपा ने पहले यहां से तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार बनाया था। हालांकि, नामांकन से ठीक पहले तेज प्रताप का नाम कट गया। इस सीट भाजपा ने मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक को टिकट दिया है। बसपा के इमरान बिन जफर भी यहां से ताल ठोंक रहे हैं।

पहले कन्नौज सीट के बारे में

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से एक कन्नौज भी है। कन्नौज नाम से लोकसभा सीट शुरुआतों तीन लोकसभा चुनावों में नहीं थी। यह सीट 1967 में अस्तित्व में आई। साल 1967 में हुए आम चुनाव में कन्नौज सीट पर राम मनोहर लोहिया को जीत मिली थी। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उतरे लोहिया ने कांग्रेस के एसएन मिश्रा को मात्र 472 वोटों से हराया था।

1971 में लोकसभा चुनाव में कन्नौज सीट पर बाजी पलट गई। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार एसएन मिश्रा ने जीत दर्ज की। मिश्रा 1967 में यहां राम मनोहर लोहिया से हारे थे। 1971 के चुनाव में मिश्रा ने भारतीय जन संघ की तरफ से उतरे राम प्रकाश त्रिपाठी को 43,115 वोटों से हराया।

आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस हारी

साल 1977, आपातकाल के बाद देश में चुनाव होते हैं। कन्नौज से भारतीय लोकदल के टिकट पर मैदान में उतरे राम प्रकाश त्रिपाठी ने जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार बलराम सिंह यादव को 1,71,042 वोट से बड़ी शिकस्त दी।

तीन साल बाद 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए। 1980 के चुनाव में जनता पार्टी (सेकुलर) के उम्मीदवार छोटे सिंह यादव ने सफलता हासिल की। छोटे सिंह ने जनता पार्टी के टिकट पर उतरे राम प्रकाश त्रिपाठी को 39,137 वोटों से हराकर यह सफलता अर्जित की।

कन्नौज में भाजपा को मिली पहली जीत

1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कन्नौज सीट पर अपना खाता खोला। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार चंद्र भूषण सिंह उर्फ मुन्नू बाबू ने सपा की तरफ से उतरे छोटे सिंह को 54,880 मतों के अंतर से शिकस्त दी।

1998 के लोकसभा चुनाव में सपा ने कन्नौज सीट पर पिछली हार का बदला ले लिया। पार्टी के उम्मीदवार प्रदीप कुमार यादव ने इस बार भाजपा के चंद्र भूषण सिंह को 42,504 वोटों से हरा दिया।

1999 के चुनाव में कन्नौज सीट पर सपा उम्मीदवार और कोई नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव होते हैं।

इस चुनाव में उनकी टक्कर किसी बड़े राजनीतिक दल के उम्मीदवार की बजाय एक गैर-मान्यता प्राप्त दल अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस के प्रत्याशी से हुई। मुलायम सिंह ने लोकतांत्रिक कांग्रेस की तरफ से उतरे अरविंद प्रताप सिंह को 79,139 वोटों से हराया।

1999 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज के साथ ही संभल लोकसभा सीट से भी जीत दर्ज की थी। नतीजों के बाद मुलायम सिंह यादव संभल सीट से सांसद बने रहे और कन्नौज सीट से इस्तीफा दे दिया।

कन्नौज में अखिलेश की एंट्री

साल 2000 में हुए उप-चुनाव में कन्नौज सीट मुलायम सिंह के बेटे और मौजूदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को उतारा गया। इसके साथ ही अखिलेश ने चुनावी राजनीति में एंट्री ली। अखिलेश का राजनीति में यह प्रवेश जीत के साथ हुआ। उन्होंने इस उपचुनाव में जीत दर्ज की और लोकसभा पहुंचे।

साल 2004, इस बार कन्नौज सीट से एक बार अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरते हैं। इस चुनाव में अखिलेश के सामने बसपा से ठाकुर राजेश सिंह थे।

अखिलेश ने बसपा प्रत्याशी को 3,07,373 वोटों के विशाल अंतर से हरा दिया।

अब आती है 2009 के लोकसभा चुनाव की बारी। इस चुनाव में भी सपा की ओर से उतरे अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट पर जीत हासिल की लेकिन

उनकी जीत का अंतर घट गया। उन्होंने बसपा उम्मीदवार डॉ. महेश चंद्र वर्मा को 1,15,864 वोट से हराया। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले सुब्रत पाठक 2009 में तीसरे स्थान पर रहे।

उपचुनाव में निर्विरोध जीतीं डिंपल

2012 में कन्नौज सीट पर उप-चुनाव की जरूरत पड़ गई। दरअसल, 2012 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें सपा को सफलता मिली थी। जीत के बाद अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने और विधान परिषद के लिए चुने गए। इसके बाद कन्नौज सीट पर उप-चुनाव हुआ जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को कन्नौज लोकसभा सीट से निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया। उनके खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे दो उम्मीदवारों ने उप-चुनाव के लिए अपना नामांकन वापस ले लिया था। कांग्रेस और बसपा ने अपने उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा था जबकि भाजपा उम्मीदवार अंतिम समय में अपना नामांकन पत्र दाखिल नहीं कर पाए थे। इस तरह से शीला दीक्षित के बाद डिंपल यादव कन्नौज सीट का प्रतिनिधित्व करने वाली दूसरी महिला बन गईं।

2014 में डिंपल-सुब्रत का कड़ा मुकाबला

2014 के लोकसभा चुनाव में देश के ज्यादातर हिस्सों में भाजपा को जीत मिलती है। हालांकि, कन्नौज में पार्टी सपा के सामने हार जाती है। इस चुनाव में डिंपल यादव ने भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक को रोचक मुकाबले में 19,907 वोटों से हरा दिया। डिंपल को 4,89,164 वोट मिले। वहीं, भाजपा के प्रत्याशी को 4,69,257 वोट मिले।

2019 में सुब्रत ने भेदा कन्नौज का किला

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को देशभर की 303 सीटों पर जीत हासिल की। इनमें कन्नौज की अहम जीत भी शामिल रही। आखिरकार सुब्रत पाठक कन्नौज का किला भेदने में कामयाब हो गए। पाठक ने इस चुनाव में डिंपल यादव को 12,353 वोटों से हराया। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को 5,63,087 वोट मिले। वहीं, सपा के उम्मीदवार को 5,50,734 वोट मिले।

अंतिम समय में मैदान में उतरे अखिलेश

अब बात 2024 के चुनाव की कर लेते हैं। इस बार भाजपा के प्रत्याशी के तौर पर मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक ही चुनाव मैदान में हैं। वहीं, सपा की तरफ से पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद चुनाव मैदान में उतरे हैं। हालांकि, यह सब कुछ नामांकन करने की आखिरी दिनों को हुआ। पहले सपा प्रमुख ने अपने भतीजे तेजप्रताप को टिकट का ऐलान किया था लेकिन उनके लोकल कनेक्ट न होने और स्थानीय कार्यकर्ताओं के लखनऊ पहुंचकर धरना देने के बाद अखिलेश को नामांकन कि समय सीमा की समाप्ति की पूर्व संध्या पर निर्णय बदलकर अपने नाम का ऐलान करना पड़ा।

हिन्दुस्थान समाचार/संजीव झा

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