काल सर्वव्यापक, गतिशील और नित्य हैं : सूर्यप्रकाश द्विवेदी
मुरादाबाद, 5 मई (हि.स.)। आर्य समाज स्टेशन रोड पर रविवार को साप्ताहिक अधिवेशन सम्पन्न हुआ। अधिवेशन के प्रारंभ में पंडित वीरेंद्र आर्य के द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार से यज्ञ सम्पन्न कराया गया। तत्पश्चात सत्संग में राजेश नारंग ने ईश्वरीय भजन प्रस्तुत किया और निर्मल आर्य ने सत्यार्थ प्रकाश का पाठ किया।
इस अवसर पर वैदिक मनीषी सूर्यप्रकाश द्विवेदी ने अथर्ववेद में उल्लेखनीय कालशूक्त के अंतर्गत काल की महिमा के वर्णन को वेद मंत्रों की व्याख्या करते हुए बताया कि काल सात प्रकार की रश्मियों वाले सूर्य के समान निरंतर द्रूतगति से दौड़ रहा है। वह महाबलवान, सर्वव्यापी और अति शीघ्रगामी व्यापक और नित्य है।वह कभी नष्ट न होने वाला है। प्रलय और सृष्टि दोनों समय में रहने वाला है।
सूर्य प्रकाश द्विवेदी ने आगे बताया कि काल से ही भूमण्डल के सब कार्य सिद्ध होते हैं। काल ही समस्त लोकों के पदार्थो को धारण किये हुए हैं।काल सामान्य ज्ञान से जानने योग्य नहीं है ,महर्षि, तपस्वी और धर्मात्मा ही काल के रहस्यों को अपनी मेधा बुद्धि से जानकार ही सदुपयोग करके सिद्धि को पाते हैं और वहीं इसके सामर्थ्य को जानते हैं। काल ही सृष्टि का पिता है जो समस्त भूमण्डल पर जीवों रक्षा करता है, भूमण्डल में नित नये परिवर्तन भी करता रहता है। काल ही जीवों के शरीरों में प्राण रुपी शक्ति का संवाहक है काल से ही प्रलय और सृष्टि रचना होती है। काल नियामक है। वेदज्ञानी काल की महत्ता को शीघ्र समझ लेते हैं। काल डर नहीं अपितु पालक है, विज्ञान अनुसंधायक है ।वायु, पृथ्वी, आकाश आदि के परमाणु संयोग पाकर और साकार रूप लेकर संसार का उपकार करते हैं। काल कल्याणकारी है और रक्षक भी है। इसलिए काल को वेद मंत्रों के वैज्ञानिक भाव से समझकर अपना कल्याण करें।
अधिवेशन में अरविंद आर्य बंधु, विनोद कुमार गुप्ता,डा राम मुनि,डा अभय श्रोत्रिय, रमेश सिंह आर्य,डा आलोक कुमार,अजब सिंह आर्य, लोकेश आर्य, मयंक कुमार,विजय कौशिक, यशपाल आर्य, सुभाष आर्य, सतीश मदान, जितेन्द्र आर्य, संदीप त्रिवेदी, ज्ञानप्रकाश रस्तोगी आदि उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/निमित जायसवाल/बृजनंदन
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