जगदगुरू रामभद्राचार्य महाराज को मिले भारत रत्न- आर. के. सिंह पटेल
- ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य का हुआ सामाजिक अभिनंदन
चित्रकूट,03 मार्च (हि.स.)। विलक्षण प्रतिभा के धनी, जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय चित्रकूट के संस्थापक/जीवन पर्यन्त कुलाधिपति जगद्गुरु श्रीरामभद्राचार्य को भारतीय ज्ञानपीठ न्यास ,नई दिल्ली द्वारा भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। जिसके उपलक्ष्य पर रविवार को दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय में कुलाधिपति जगद्गुरु रामभद्राचार्य का चित्रकूट के सन्तों, समाजसेवी, राजनेताओं, शिक्षाविदों, शिक्षकों कर्मचारियों छात्रों के मध्य अभिनंदन किया गया।
इस मौके पर बांदा-चित्रकूट सांसद आर के सिंह पटेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट को गौरवांन्वित करने वाले जगदगुरू रामभद्राचार्य महाराज को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिलाये जाने की मांग की।
कार्यक्रम का शुभारंभ जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी और आचार्य रामचन्द्र दास, कुलपति प्रो शिशिर कुमार पांडेय ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यकम का शुभारंभ किया। सरस्वती वंदना संगीत विभाग की डा0 ज्योति वैष्णव और डा0 विशेष नारायण मिश्र ने प्रस्तुत किया। आमंत्रित अतिथियों का स्वागत अभिनंदन कुलपति प्रो0 शिशिर पांडेय ने किया।
तुलसी पीठ के युवराज आचार्य रामचन्द्र दास जी ने संबोधित करते हुए कहा कि आज परम पूज्य गुरुदेव जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी को हम सभी ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त होने पर इतना खुश हैं कि उतना पद्म विभूषण भी मिलने पर नहीं। क्योंकि यह पुरस्कार जगद्गुरु श्री के वैदुष्य, संस्कृत साहित्य में उनकी अनवरत सेवा का अंकन हुआ है। इसलिए आप सभी चित्रकूट के परम पूज्य संतों, समाजसेवी राजनेताओं, शिक्षकों, कर्मचारियों छात्रों, मीडिया बंधुओ का धन्यवाद करते हैं। परम पूज्य गुरुदेव जी आज लगभग शैक्षणिक जगत में शिक्षाविदों के लिए अमूल्य धरोहर है।और धार्मिक क्षेत्र में भी भारत में विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। आपने वर्तमान तक लगभग 250 ग्रंथों का लेखन किया है।जो भारतीय समाज आपको युगों- युगों तक याद करेगा। आपके द्वारा संचालित विभिन्न प्रकल्पों में साहित्य सेवा, दिब्यांग जन सेवा, संत सेवा, गौ सेवा, हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने से आपके द्वारा संचालित तुलसीपीठ से ज्ञानपीठ पुरस्कार का सफर बहुत ही रोचक है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने संबोधित करते हुए कहा कि मैं आज बहुत खुश हूं कि मेरे जीवन का यह उचित सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार के रूप में मिला है। मेरी लगभग 250 ग्रंथों की रचना इस भौतिक युग में एक आप सभी संतों, शिक्षाविदों को प्रेरणा देगा। साहित्य की विधि में इतना बडे बडे महाकाव्य का लेखन जिसमे गीत महाकाब्य, भार्गव राघवीयम, भृगंदुतम, पत्र काब्य, संस्कृत गध साहित्य, दशावतार, सहित एकांकी नाटक की प्रथम रचना की है। आप सभी को हार्दिक बधाई शुभकामनाए प्रेषित करते हैं कि अभी भी मुझे बहुत कार्य करना है इसके लिए आप सभी शुभकामनाए दीजिए कि मैं देश ,समाज, विश्वविद्यालय के लिए शेष कार्य कर पाए। सभी शिक्षकों कर्मचारियों को बहुत बहुत बधाई शुभकामनाए। आपने यह ऐतिहासिक आयोजन किया।
इस अवसर पर पूर्व मंत्री उत्तर प्रदेश चंदिका उपाध्याय, पूर्व सांसद भैरों प्रसाद मिश्र, प्रोफेसर अलका पांडेय लखनऊ विश्वविद्यालय, महंत मदन गोपाल दास कामदगिरि प्रमुख द्वार,महंत दिब्य जीवन दास , आचार्य विशंभर, निर्मला वैष्णव तुलसीपीठ, राघव परिवार, जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिब्यांग राज्य विश्वविद्यालय चित्रकूट के कुलपति प्रो0 शिशिर कुमार पांडेय, कुलाधिपति जी के निजी सचिव आर पी मिश्रा, कुलसचिव मधुरेंद पर्वत, डा0 मनोज पांडेय, डा0 विनोद मिश्रा, , डा0 संध्या पांडेय, कु0गरिमा मिश्रा व जयवीर आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डा० प्रमिला मिश्रा ने किया।
हिन्दुस्थान समाचार /रतन/बृजनंदन
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