प्रो. विजयदेव नारायण साही उर्दू और फारसी के विद्वान : सुस्मिता
-पगडंडी बनाते हैं साहसी पथिक के पदचिह्न : प्रो.संगीता श्रीवास्तव
-‘’यूनिवर्सिटी आफ इलाहाबाद एलुमिनाई एसोसिएशन’’ की ओर से एलुमिनाई संवाद श्रृंखला प्रारम्भ
प्रयागराज, 19 सितम्बर (हि.स.)। इविवि में ‘’यूनिवर्सिटी आफ इलाहाबाद एलुमिनाई एसोसिएशन’’ की ओर से गुरुवार को एलुमिनाई संवाद श्रृंखला प्रारम्भ हुई। मुख्य वक्ता और लेखिका रंगकर्मी सुस्मिता साही ने प्रो. विजयदेव नारायण साही के कृतित्व पर प्रकाश डाला। कहा कि प्रो. साही उर्दू और फारसी के विद्वान थे। उन्होंने कभी हिन्दी नहीं पढ़ी, लेकिन ज्यादातर लेखन हिन्दी में किया।
उन्होंने बताया कि प्रो. साही ने सदैव उत्तर छायावाद का विरोध किया। उन्होंने कहा कि प्रो. विजयदेव नारायण साही पर इविवि के प्रो. एससी देव, डॉ. राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव का अधिक प्रभाव था। शिक्षा को भारतीय दृष्टिकोण से पढ़ाने के लिए उन्होंने काशी विद्यापीठ में पढ़ाने का निर्णय लिया। सामाजिक सुधार के लिए बनारस और भदोही के मजदूरों को संगठित किया। मजदूर आंदोलनों के बाद उनकी लेखनी में बड़ा बदलाव आया। 1952 में दोबारा साहित्य सृजन में लौटे तो उनकी कविताओं में समाज का दर्द छलकने लगा। इमरजेंसी के दौरान अपनी गजल ’‘सरासर लुट रहा है, काफिला बचकर कहां जाए’’ से प्रो. साही ने अपना विरोध व्यक्त किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और वरिष्ठ कवि और आलोचक प्रो. राजेंद्र कुमार ने फिराक गोरखपुरी और प्रो. विजयदेव नारायण साही में सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यक समानताओं का जिक्र किया। बताया कि ‘परिमल’ संस्था के माध्यम से हिन्दी के अध्यापक धर्मवीर भारती और अंग्रेजी के शिक्षक प्रो.साही ने ‘नई कविता’ की सदैव वकालत की। जब ये दोनों मिलते तो ऐसा लगता कि अंग्रेजी हिन्दी को गले लगा रही है। उन्होंने कहा कि प्रो. साही कहते थे कि कालीदास सदैव कल्पना के पंखों पर सवार होकर उड़ान भरते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने युनिवर्सिटी आफ इलाहाबाद एलुमिनाई एसोसिएशन के पुनर्गठन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि साहसी पथिक के पदचिह्न पगडंडी बनाते हैं और समाज के लोग उसी पर चलते हैं। शिक्षक को भी ऐसा ही होना चाहिए, जो दूसरों के पथप्रदर्शक बनने का काम कर सके। हमें अपने महापुरुषों के बनाए रास्तों पर चलना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश की आजादी के बाद हिन्दी राष्ट्रीय भाषा नहीं बन पाई और अंग्रेजी से पिछड़ गई। लेकिन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शिक्षकों खासकर प्रो. विजयदेव नारायण साही और प्रो. हरिवंश राय बच्चन ने हिन्दी को पुनः प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रो. साही अक्सर कहते थे कि अंग्रेजी मेरी पेट (आजीविका) की भाषा और हिन्दी मेरी मस्तिष्क की भाषा है। कविता ‘तुरंता’ का जिक्र करके उन्होंने प्रो. साही की व्यंग शैली का जिक्र किया।
इविवि की पीआरओ प्रो. जया कपूर ने बताया कि यूनिवर्सिटी आफ इलाहाबाद एलुमिनाई एसोसिएशन के प्रेसिडेंट प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी। संचालन प्रो. रचना आनंद गौड़ ने एवं एसोसिएशन के सचिव प्रो. कुमार वीरेंद्र ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस मौके पर कुलसचिव प्रो. आशीष खरे, डीन कॉलेज डेवलपमेंट प्रो. एनके शुक्ल, डीन साइंस प्रो. संजय सक्सेना सहित विभागाध्यक्ष और शिक्षक मौजूद रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र
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