इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन ने वाराणसी से शुरू किया मिशन ब्रेन अटैक

इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन ने वाराणसी से शुरू किया मिशन ब्रेन अटैक
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इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन ने वाराणसी से शुरू किया मिशन ब्रेन अटैक


-ईच वन-टीच वन के तहत फिजिशियन,मरीजों और उनके तीमारदारों को किया जागरूक

वाराणसी, 12 मई (हि.स.)। इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन (आईएसए) ने मिशन ब्रेन अटैक की रविवार को वाराणसी से शुरुआत की । इस अभियान को शीघ्र ही पूरे देश में फैलाया जायेगा। अभियान में संगठन की ओर से नदेसर स्थित एक तारांकित होटल में ईच वन-टीच वन प्रोग्राम का आयोजन किया गया। इसमें ब्रेन स्ट्रोक से ठीक हुए मरीज, उनके परिजनों के साथ एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. निर्मल सूर्या, सचिव डॉ. अरविंद शर्मा, बीएचयू के प्रो. विजयनाथ मिश्र, डॉ. अभिषेक पाठक, डॉक्टर अविनाश चंद्र सिंह ने वार्ता की।

अध्यक्ष डॉ. सूर्या ने कहा कि यदि एक व्यक्ति किसी एक व्यक्ति को जागरूक करना शुरू कर दे तो काफी हद तक इसमें सफलता मिलेगी। उन्होंने कहा कि देश में मात्र 3500 न्यूरोलॉजिस्ट हैं, ऐसे में जनता को जागरूक होना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि इस अभियान में हम फिजिशियन को भी ट्रेनिंग दे रहे हैं। स्ट्रोक में इलाज के प्रोटोकॉल को बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि लकवा का मरीज अटैक होने के साढ़े चार घंटे के भीतर ऐसे सेंटर पर पहुंच जाता है, जहां सीटी स्कैन की सुविधा है और स्कैन से हम दिमाग के प्रभावित क्षेत्र का पता करके खून पतला करने के इंजेक्शन दे देते हैं तो 85 फीसदी तक हम मरीज को प्रभावित होने से बचा लेते हैं। यदि मरीज दूर- दराज गावों में है या सोते समय ही लकवा मार दिया जिसको पता ही नहीं चला और 24 घंटे के भीतर आता है तो रिहैबिलिटेशन से उसके प्रभावित अंग को सुधार किया जाता है। डॉ. निर्मल सूर्या ने कहा कि स्ट्रोक के पीछे तीन मुख्य वजह है। ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्राल। यदि आपके परिवार में बुजुर्गों को स्ट्रोक आए तो सतर्क रहें। ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्राल को नियंत्रण में रखने के साथ वजन कम रखना होगा। अल्कोहल और तंबाकू भी छोड़ना होगा। एसोसिएशन के सचिव डॉ. अरविंद शर्मा ने कहा कि मिशन ब्रेन अटैक के तहत वर्ल्ड स्ट्रोक ऑर्गेनाइजेशन के साथ भी समन्वय बनाना होगा। हमारा मकसद है कि जल्द से जल्द मरीज अस्पताल पहुंचे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आयुष्मान योजना के तहत खून पतला करने वाली दवाई फ्री मिलती है लेकिन 1 प्रतिशत लोग ही इसका लाभ उठा पा रहे हैं। जागरूकता की कमी है। उन्होंने कहा कि शहर की अपेक्षा गांव के लकवा के मरीज का इलाज इसलिए जटिल है कि पहले वह पहचान नहीं पाते और जब पहचानते हैं तो अस्पताल पहुंचने में देर हो जाता है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्र में जहां- जहां कोविड के समय सीटी स्कैन मशीन लग गई है, वहां के फिजिशियन को हम प्रशिक्षित करेंगे।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/दिलीप

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