भारतीय ज्ञान आज भी सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रासंगिक : प्रो. आर.पी . पाठक

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भारतीय ज्ञान आज भी सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रासंगिक : प्रो. आर.पी . पाठक


जौनपुर ,07 अक्टूबर (हि. स.)। तिलकधारी महाविद्यालय में शिक्षक शिक्षा विभाग के तत्वावधान में भारतीय ज्ञान परंपरा और विकसित भारत :2047 शीर्षक पर सोमवार को आयोजित एक दिवसीय शैक्षिक संगोष्ठी के मुख्य अतिथि व मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. आर. पी.पाठक (डीन शिक्षा संकाय) लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली रहे।गोष्ठी को संबोधित करते हुए पूर्वांचल विश्वविद्यालय शिक्षा संकाय डीन प्रो. अजय कुमार दुबे ने अपने उदबोधन में बताया कि प्रो. पाठक एक उच्च चिंतक, लेखक हैं। आपने अब तक राष्ट्रीय स्तर के लगभग 120 पुस्तकों का लेखन एवं संपादन किया है और लगभग दो दर्जन पुस्तकें अभी भी प्रकाशनार्थ प्रेस में है। आप भारत सरकार के विभिन्न समितियों के सम्मानित सदस्य होने के साथ-साथ वर्तमान भारतीय परिवेश में परंपरागत भारतीय शिक्षा मूल्य के उल्लेखनीय विचारक के रूप में स्थापित हैं। गोष्ठी को संबोधित करते हुए अपने व्याख्यान में प्रो.आर. पी.पाठक ने भारतीय वांग्मय में निहित ज्ञान परंपरा को विस्तार पूर्वक रेखांकित किया, आपने बताया किस प्रकार से हमारे वैदिक शिक्षा व्यवस्था में श्रवण,मनन और निर्देशन के द्वारा सशक्त ज्ञान परंपरा जीवंत रूप से संचालित होती रही। भारतीय ज्ञान परंपरा में शास्त्रार्थ, वेदांग, उपनिषद, आरण्यक, ब्राह्मण, श्रुति, स्मृति, पुराण, काव्य, महाकाव्य, षड्दर्शन की प्रभावशाली एवं सशक्त ज्ञान परंपरा निरंतर प्रवाह में रही है। ज्ञान सिर्फ मानसिक विकास तक ही सीमित नहीं था, बल्कि आचार-विचार एवं व्यवहार में था। आधुनिक चिकित्सा, विज्ञान, साहित्य में भारतीय परंपरा में निहित मूल्य एवं ज्ञान को सम्मिलित कर भारत किस प्रकार एक विकसित राष्ट्र के रूप में विश्व का नेतृत्व कर सकता है, इसे आपने बड़े सहज ढंग से रेखांकित किया। प्राचार्य प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि भारतीय ज्ञान आज भी पूरे विश्व में प्रासंगिक है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व प्राचार्य प्रो. समर बहादुर सिंह ने कहा कि भारतीय चिंतन-दर्शन एक जीवन पद्धति है, जो आधुनिक जीवन में अत्यंत प्रासंगिक है। भारतीय परंपरा में निहित संस्कृति, धर्म और आचरण आधुनिक शिक्षा के आधारभूत स्तंभ हैं। जिनका अनुसरण कर भारत एक विकसित राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बन सकता है। विभागाध्यक्ष प्रो. सुधान्शु सिन्हा ने कहा कि भारतीय परंपरा में प्रकृति में उपस्थित सभी जीव कुछ न कुछ हमको शिक्षा प्रदान करते हैं। दत्तात्रेय ने कुल 24 गुरुओं का उल्लेख किया है। मुख्य अनुशास्ता प्रोफेसर रीता सिंह ने विविध उद्धरणों द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया। प्रो.श्रद्धा सिंह ,डॉ अरविंद कुमार सिंह , डॉ प्रशांत कुमार सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किये अतिथियों का आभार डॉ सीमांत कुमार राय एवं संचालन डॉ वैभव सिंह ने किया ।

कार्यक्रम में शिक्षक- शिक्षा संकाय के डॉ. वन्दना शुक्ला, डॉ. गीता सिंह ,डॉ. सुलेखा सिंह ने द्वितीय सत्र का संचालन किया। इस अवसर पर शोध छात्र, बी.एड. एवं एम.एड. के समस्त विद्यार्थी उपस्थित रहे ।

हिन्दुस्थान समाचार / विश्व प्रकाश श्रीवास्तव

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