वाराणसी में युवक को बीएचयू के सीटीवीएस विभाग में मिला जीवनदान,जटिल हृदयरोग से था ग्रसित

वाराणसी,04 अप्रैल (हि.स.)। जन्म से ही जटिल हृदयरोग से ग्रसित एक 18 वर्षीय युवक को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान सर सुंदर लाल चिकित्सालय के सीटीवीएस विभाग में नया जीवन मिला है। विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक प्रो. सिद्धार्थ लखोटिया के अनुसार एक जटिल ऑपरेशन में मरीज के खराब एरोटिक वाल्व को कृत्रिम वाल्व से बदला गया। और वेंट्रीकुलर सेप्टत्त डिफेक्ट को सिंथेटिक पैच द्वारा बंद किया गया। अब युवक की स्थिति अच्छी है और उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। हालांकि अब भी वह इन डॉक्टरों की देख रेख में है और कृत्रिम वाल्व के कारण उसको आजीवन दवाइयों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
प्रो. सिद्धार्थ लखोटिया ने कहा कि वी.एस.डी. रोग हृदय में जन्मजात विकृति है जो रोगियों में जन्म से ही होती है। यदि इसका समय पर इलाज न किया जाए तो कई रोगी समय के साथ फेंफड़ों में उच्च रक्तचाप के शिकार हो जाते हैं। जिसके कारण वी.एस.डी. जैसी बीमारियों मे रक्त का बहाव उलट जाता है। आईएमएस बीएचयू के निदेशक प्रोफेसर एस एन संखवार ने पहली बार की गई इस जटिल सर्जरी के लिए पूरी टीम को बधाई दी है।
ऑपरेटिंग टीम के सदस्य डॉ. नरेंद्र नाथ दास ने बताया कि युवक को बचपन से ही जटिल समस्याएं थीं । जैसे सांस फूलना, सीने में दर्द एवं घबराहट आदि। जब लड़के की जांच कराई गई तो रिपोर्ट में वेंट्रीकुलर सेप्टल डिफेक्ट (हृदय में छेद) एवं लीकेज की बीमारी पाई गई। इस कारण से महाधमनी के वाल्व गंभीर रूप से लीक कर रहे थे । इस स्थिति को आइसेनमेंगर सिंड्रोम कहा जाता है। इस मरीज का समय पर इलाज न होने से एरोटा के लीफलेट प्रोलाप्स ने वी.एस.डी. को लगभग पूरी तरह से बंद करके फेंफड़ों में उच्च रक्तचाप होने से रोक दिया, परंतु वाल्व खराब हो गया। समय पर डॉक्टर से सलाह लेने से यह समस्या सिर्फ हृदय के छेद बन्द करने से ठीक हो सकता थी, लेकिन देर से हॉस्पिटल आने के कारण वाल्व बदलने की भी जरूरत पड़ी।
इस ऑपरेशन टीम के सदस्य डॉ. अरविंद पांडे, डॉ. संजीव कुमार, दिनेश मैती, बैजनाथ, ओमप्रकाश, विकास, राहुल, उमेश, अरविंद एवं आशुतोष पांडे रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी