सपा में आंतरिक लोकतंत्र का सम्मान और विमर्श-सहमति से होता है प्रत्याशी का चयन: राजेन्द्र चौधरी
लखनऊ, 05 अप्रैल (हि.स.)। समाजवादी पार्टी (सपा) अपने स्थापना काल से ही स्वतंत्रता आंदोलन के आदर्शों एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध रही है। संविधान और लोकतंत्र बचाने की निर्णायक लड़ाई भी पूरी संजीदगी के साथ लड़ रही है। समाजवादी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का सम्मान करते हुए प्रत्याशी चयन में नीचे से ऊपर स्तर तक विमर्श एवं सहमति की प्राथमिकता रहती है।
समाजवादी पार्टी और सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी में एक बुनियादी फर्क है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव राजनीतिक शुचिता को महत्व देते हैं। जबकि भाजपा में एकाधिकारवादी संस्कृति हावी है। लोकसभा चुनाव में कुछ प्रत्याशियों के परिवर्तन का अर्थ है कि समाजवादी पार्टी में लोकतंत्र है। वह अपने कार्यकर्ताओं की आवाज को सम्मान देती है, जबकि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा असहमति को कुचल दिया जाता है।
जिन्हें राजनीतिक इतिहास में रूचि है वे जानते हैं कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण का स्पष्ट विचार था कि जनता को अपना प्रत्याशी चुनने का अधिकार होना चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह तो राजनीति में शुचिता के इतने बड़े हिमायती थे कि वे चुनाव प्रचार के दौरान मंच से ही अपने प्रत्याशी के खिलाफ भी घोषणा कर देते थे। चौधरी साहब ने दागी और अलोकप्रिय प्रत्याशी को कभी समर्थन नहीं दिया। राजनीति में शुचिता के प्रति इस आग्रह के कई उदाहरण हैं। वे सत्ता की राजनीति नहीं, नैतिक मूल्यों की राजनीति करते थे।
एक उदाहरण तो बहुतों की जानकारी में है। सन् 1974 में भारतीय क्रांति दल के गाजियाबाद से विधानसभा प्रत्याशी राजेन्द्र चौधरी थे और बागपत से पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक प्रत्याशी घोषित किये गये थे। ये दोनों उन दिनों मेरठ विश्वविद्यालय में छात्र आंदोलन में सक्रिय रहते थे।
चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में चुनावी सभा में मतदाताओं से युवा प्रत्याशी राजेन्द्र चौधरी को वोट और नोट देकर जिताने की अपील की। इससे उलट बस्ती के हर्रैया में उन्होंने मंच से ही प्रत्याशी बदल दिया था। अपने घोषित प्रत्याशी की कमियों की जानकारी जनता द्वारा होने पर और उसे न चुनने की सार्वजनिक अपील को स्वीकार्य करने में चौधरी साहब ने कभी संकोच नहीं किया।
लोक नायक जयप्रकाश नारायण और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने जो राजनीति में लोकतांत्रिक मूल्य स्थापित किये थे, उन्हीं राजनीतिक मूल्यों को अखिलेश यादव आगे बढ़ाने में विश्वास रखते हैं।
भाजपा ने सत्ता के लिए जिताऊ प्रत्याशी होने को लक्ष्य बनाकर उन्हें भी अपना लिया है जिनके खुले भ्रष्टाचार की निंदा करते पहले थकते नहीं थे। भाजपा को इसलिए वाशिंग मशीन भी कहा जा रहा है। भाजपा में आकर अब भ्रष्ट, दागी और जनविरोधी भी साफ सुथरा होने का दावा करता है।
जब भ्रष्ट प्रत्याशी जनता पर थोपे जाएंगे तो संसद की गरिमा और चुनाव की शुचिता कहां रहेगी? राजनीति तब जनता के लिए नहीं किसी अन्य के लिए हो जाएगी। चुनाव में योग्य जनसेवी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान से राजनीति में विचार, ईमानदारी और लोक कल्याण की स्थापना होना अपेक्षित है। यह जानकारी सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने शुक्रवार को दी।
हिन्दुस्थान समाचार/मोहित/विद्याकांत
हमारे टेलीग्राम ग्रुप को ज्वाइन करने के लिये यहां क्लिक करें, साथ ही लेटेस्ट हिन्दी खबर और वाराणसी से जुड़ी जानकारी के लिये हमारा ऐप डाउनलोड करने के लिये यहां क्लिक करें।