आईआईटी कानपुर के फैकल्टी को मिली जे.सी. बोस फेलोशिप

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आईआईटी कानपुर के फैकल्टी को मिली जे.सी. बोस फेलोशिप


कानपुर, 30 सितम्बर (हि.स.)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग (सीएसई) के प्रोफेसर नितिन सक्सेना को जेसी बोस फैलोशिप से सम्मानित किया गया है। यह फेलोशिप विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से दिया गया है।

उल्लेखनीय है कि जेसी बोस फेलोशिप विशेष रूप से सक्रिय वैज्ञानिकों के लिए है, जिनके पास उत्कृष्ट प्रदर्शन का रिकॉर्ड है, जैसा कि एसएस भटनागर पुरस्कार प्राप्त करने या विज्ञान अकादमियों के फेलो होने से प्रमाणित होता है। यह जानकारी शनिवार को आईआईटी कानपुर के निदेशक अभय करंदीकर ने दी।

उन्होंने बताया कि यह फेलोशिप कम्प्यूटेशनल कॉम्प्लेक्सिटी थ्योरी, बीजगणित, ज्यामिति और संख्या सिद्धांत में प्रोफेसर सक्सेना के योगदान को मान्यता देने के लिए प्रदान की गई है। प्रोफेसर सक्सेना ने 2002 में आईआईटी कानपुर से कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक और 2006 में प्रोफेसर मणीन्द्र अग्रवाल के मार्गदर्शन में पीएचडी पूरी की थी। इस पुरस्कार के साथ प्रो.सक्सेना आईआईटी कानपुर के 17 से अधिक संकाय सदस्यों की श्रेणी में शामिल हो गए हैं। जिन्होंने अतीत में यह प्रतिष्ठित फैलोशिप प्राप्त की है।

जे.सी. बोस फेलो को पांच साल की अवधि के लिए प्रति माह 25 हजार रुपये की व्यक्तिगत फेलोशिप और प्रति वर्ष 15 लाख रुपये का शोध अनुदान मिलेगा। मेजबान संस्थान के लिए ओवरहेड के रूप में 1.00 लाख रुपये प्रदान किए जाएंगे। फेलोशिप के कार्यकाल के दौरान अनुसंधान प्रदर्शन के कठोर मूल्यांकन के आधार पर फेलोशिप के कार्यकाल को अगले 5 वर्षों के लिए बढ़ाया जा सकता है।

इस वर्ष प्रोफेसर नितिन सक्सेना को 2024 के लिए प्रतिष्ठित भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी का फेलो चुना गया था। प्रोफेसर सक्सेना को 2023 के लिए इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए आईआईटी बॉम्बे अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। वह विज्ञान और इंजीनियरिंग में सभी चार राष्ट्रीय अकादमियों में निर्वाचित फेलो हैं।

प्रो. नितिन सक्सेना एक प्रतिष्ठित कंप्यूटर वैज्ञानिक हैं, जिनके अभूतपूर्व योगदान ने 2002 की शुरुआत से ही वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय पर एक अमिट छाप छोड़ी। विशेष रूप से, ये प्रारंभिक अग्रणी उपलब्धियाँ आईआईटी कानपुर में उनकी स्नातक थीसिस का हिस्सा थीं, जो एक असाधारण दुर्लभ उपलब्धि थी।

उन्होंने प्रो.मणीन्द्र अग्रवाल और डॉ.नीरज कयाल के साथ मिलकर 'PRIMES is in P' शीर्षक से एक मौलिक पेपर का सह-लेखन किया, जिसमें एकेएस प्राईमेलिटी टेस्ट की शुरुआत की गई। इसमें 'एकेएस' का मतलब अग्रवाल-कयाल-सक्सेना है। दुनिया भर के विशेषज्ञों ने प्रारंभिक परीक्षण में इसकी शिष्टता और प्रभावशीलता के लिए इस एल्गोरिदम की सराहना की।

उनके उल्लेखनीय कार्य ने उन्हें सैद्धांतिक कंप्यूटर विज्ञान और भाववाचक गणित के क्षेत्र में प्रतिष्ठित प्रशंसा दिलाई, जिसमें गोडेल पुरस्कार 2006 और फुल्कर्सन पुरस्कार 2006 शामिल हैं। प्रो. सक्सेना को इतिहास में सबसे कम उम्र के गोडेल पुरस्कार विजेता होने का गौरव प्राप्त है। उनके योगदान को 2015 में आईएनएसए यंग साइंटिस्ट मेडल और 2013-14 में स्वर्ण जयंती फेलोशिप जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है।

2018 में उन्होंने गणितीय विज्ञान में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार के साथ एक और उपलब्धि अपने नाम कर ली। यह सम्मान आमतौर पर कई वर्षों के अनुभव वाले लोगों के लिए आरक्षित होता है। उल्लेखनीय रूप से, उन्होंने 37 वर्ष की आयु में यह गौरव हासिल किया, जिससे वह इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के सबसे कम उम्र के प्राप्तकर्ताओं में से एक बन गए।

उनकी असाधारण शैक्षणिक प्रतिभा ने उन्हें 2003 में आईआईटी कानपुर से विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार दिलाया। इसके अलावा, 2009 में, आईआईटी कानपुर पूर्व छात्र संघ ने संस्थान की 50 वीं वर्षगांठ मनाते हुए, उन्हें अभी तक के शीर्ष 50 पूर्व छात्रों में मान्यता दी।

वर्तमान में, प्रो. सक्सेना कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी कानपुर में एन. रामा राव चेयर प्रोफेसर हैं और सेंटर फॉर डेवलपिंग इंटेलिजेंट सिस्टम्स (सीडीआईएस) के संस्थापक समन्वयक हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/राम बहादुर/राजेश

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