जन्मभूमि पर शिद्दत से याद किए गए महान रचनाकार 'अज्ञेय'
कुशीनगर, 07 मार्च(हि.स.)। अनेक कालजयी रचनाओं के सर्जक महान साहित्यकार हीरानंद सच्चिदानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की जयंती पर उनकी जन्मभूमि कुशीनगर में लोगों ने श्रद्धापूर्वक नमन किया। उनके कृतित्व व व्यक्तित्व को स्मरण करते हुए उनकी रचनाओं को वैश्विक समाज को दिशा देने वाला बताया।
गुरुवार को कुशीनगर के राजकीय बौद्ध संग्रहालय स्थित अज्ञेय सभागार में अज्ञेय स्मृति सम्मान को प्राप्त करने के बाद स्वीकृति वक्तव्य देते हुए कवि अरुण कमल ने कहा कि अज्ञेय स्वाधीनता के सबसे प्रबल उद्घोषक हैं। वे निरंतर स्वाधीनता के पक्ष में रहें। अज्ञेय स्वतंत्रता को सबसे बड़ा मूल्य स्वीकार करते हैं। यह उनके रचनाकार व्यक्तित्व की मूल चेतना है।
उक्त बातें उन्होंने सम्मान के लिए आभार व्यक्त करते हुए अज्ञेय के रचनाकार व्यक्तित्व को याद किया।
उन्होंने अज्ञेय को हिन्दी कविता को नया जीवन देने वाला रचनाकार बताया। कहा कि अज्ञेय को बार-बार याद करने की जरूरत है। अज्ञेय ने अपने को महान परंपराओं का उत्तराधिकारी बताया। भारतीय संस्कृति बहुलतावादी संस्कृति है। उसके अनेक मार्ग है। और यही भारतीय समाज की स्वाधीन चेतना है।
अज्ञेय स्मृति व्याख्यान देते हुए प्रोफेसर रामदेव शुक्ल ने कहा कि अज्ञेय का पहला चुनाव सर्जनात्मक लेखन था। इसी में इन्होंने दर्शन के बहुत सारे पक्षों को उद्घाटित किया। उन्होंने दुनियाभर में घूम घूमकर वहां की संस्कृतियों को समझा। उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में अविस्मरणीय रचनाएं की। उन्होंने भारतीय संस्कृति के स्थानीय रंगों को सबसे ज्यादा महत्व दिया। उनके आरंभ की कहानियों में पंजाब की स्थानीय संस्कृति और भाषा के सूक्ष्मतम रूप को प्रकट किया।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रोफेसर विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने अज्ञेय को संस्कृति पुरुष बताया। उनके व्यक्तित्व में विनम्रता कूट-कूट कर भरी थी। उनके लेखों का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि अज्ञेय संस्कृति का आधार भाषा को मानते हैं। वे स्वाधीनता को संस्कृति का सर्वोच्च मूल्य मानते थे और व्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रबल हिमायती थे। वे समाज के प्रति व्यक्ति के उत्तरदायित्व के परिप्रेक्ष्य में स्वतंत्रता के मूल्यों को व्याख्यायित करते हैं। संस्कृति शब्द अपने उद्गम में कृषि से जुड़ा हुआ है। संस्कृति शब्द परिष्कार से जुड़ा हुआ है। और सर्वप्रथम इसे मानसिक खेती के रूप में देखा गया। अज्ञेय की भाषा और चिन्तन में इसका मूल अर्थ दिखाई देता है।
स्वागत वक्तव्य और विषय की प्रस्तावना रखते हुए अरूनेश नीरन ने कहा कि अज्ञेय का कुशीनगर से आत्मीय लगाव था। उन्होंने श्रीमती कलावती देवी स्मृति न्यास की तरफ से अरुण कमल को पहला अज्ञेय स्मृति सम्मान देने की घोषणा की।
प्रशस्ति पत्र वाचन करते हुए प्रो. अरुण देव ने कहा अरुण कमल जितने वैश्विक है, उतने ही स्थानीय है। उनकी कविताओं में जीवन की लय है। देशज लोकाचार की महक है। भारतीय समाज के संक्रमण के गहरी पहचान अरुण कमल की कविताओं की खास पहचान है। वे हिन्दी के अनूठे कवि हैं। अरुण कमल की कविताओं का पाठ करते हुए बताया कि वे पुरबिया चेतना और समाज के कवि हैं। उनकी कविताएं पुरबिया समाज की यातनाओं से संपृक्त हैं। वे भाषा के सौंदर्य के साथ-साथ अपने समाज का सौंदर्य प्रत्यक्ष करते हैं।
अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए प्रोफेसर महेश्वर मिश्र ने कहां मैं अज्ञेय कहते हैं 'मैं शब्द बोलता हूं और शब्द से ही विचार बनते हैं।' अज्ञेय व्यक्ति की स्वतंत्रता के बहुत आग्रही थें। वे मौन की साधना करने वाले रचनाकार थें। वे मानते थे कि संस्कृति व्यक्ति को गढ़ती है। धन्यवाद ज्ञापन का दायित्व प्राचार्य विनोद मोहन मिश्रा ने निभाया। संगोष्ठी का ओजपूर्ण संचालन हिंदी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गौरव तिवारी ने किया।
हिन्दुस्थान समाचार/गोपाल/राजेश
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