बीएचयू का अनुवांशिक अध्ययन,लक्ष्यद्वीप के लोग एक ही जनसँख्या समूह के सदस्य
वाराणसी, 21 फरवरी (हि.स.)। लक्ष्यद्वीप भारतीय उपमहाद्वीप का एक द्वीपसमूह है, जिसमें दक्षिणपूर्वी अरब सागर में बसे 36 द्वीप शामिल हैं। वर्तमान में इन द्वीपों पर 68000 लोग रहते हैं, जो मूल रूप से मलयाली भाषा बोलते हैं। इन लोगों की आनुवंशिक उत्पत्ति का अब तक पता नहीं चल पाया था। साथ ही इन द्वीपों के लिए व्यापक पुरातात्विक साक्ष्यों का अभाव है। ऐसे में भारत के पांच संस्थानों के नौ वैज्ञानिकों ने लक्षद्वीप के दस द्वीपों के लोगों पर एक हाई-रेसोलुशन आनुवंशिक अध्ययन किया है। इस अध्ययन का सह-नेतृत्व प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे (बीएचयू), प्रोफेसर मुश्ताक (मैंगलोर विश्विद्यालय) और डॉ. नीरज राय (बीएसआईपी लखनऊ) ने किया।
पांच वर्ष तक चले इस वैज्ञानिक अध्ययन ने लक्षद्वीप द्वीपसमूह के लोगों के अनुवांशिक इतिहास को बताने के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले मार्कर (लगभग 5.5 लाख आनुवंशिक मार्कर) का पहली बार प्रयोग किया गया।
इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले बीएचयू के जीन विज्ञानी प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया की इस द्वीप पर सबसे पहले मानव कब पंहुचा और उनकी वंशावली क्या है? यह एक बड़ा सवाल था जिसको समझने के लिए हम लोगों ने यह अध्ययन किया। इस शोध कार्य का विश्लेषण चार प्रमुख बिंदुओं पर केंद्रित था। (ए) लक्षद्वीप आबादी की अनुवांशिक वंशावली,(बी) पूर्व, पश्चिम यूरेशिया और दक्षिण एशिया के साथ उनका अनुवांशिक संबंध, (सी) पहली आबादी और (डी) भारत से सबसे पहले लक्षद्वीप में पहुचने का समय कब था?। लक्षद्वीप द्वीपसमूह से डीएनए सैंपल एकत्र करने वाले प्रो. एमएस मुस्ताक ने बताया कि वर्तमान विश्लेषण में नए डेटा के अध्ययन द्वारा हम लोगोंं ने यह पता लगाया की सबसे पहले लक्षद्वीप पर पहुचने वाले लोग एक ही समूह में भारत से पहुचे थे, जिनका अनुवांशिक सम्बन्ध उत्तर और दक्षिण भारत दोनों से सामान रूप में था।
बीएसआईपी लखनऊ के डॉ. नीरज राय ने कहा की हमने लक्षद्वीप के लोगों का भारतीय उपमहाद्वीप के साथ घनिष्ठ आनुवंशिक संबंध देखा। जिसको विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययन में एक मॉडल की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण भौगोलिक अलगाव ने आनुवंशिक जीन प्रवाह को प्रतिबंधित कर दिया, जिसके कारण लक्षद्वीप के लोगों का एक अनूठा जीनपूल बना। इस अध्ययन के पहले लेखक और बी.एच.यू. के डॉ. प्रज्ज्वल प्रताप सिंह ने कहा की इस अध्ययन के नतीजों ने लक्षद्वीप के लोगो के बीच अपेक्षाकृत अधिक उत्तर भारतीय वंशावली की पहचान की जो 1260 ईस्वी तक इस द्वीप पर बस गई थी। पुरातत्वविद् डॉ. सचिन तिवारी, ने कहा की, लक्षद्वीप द्वीपसमूह की आबादी के बीच उत्तर भारतीय वंशावली उत्तर भारतीय व्यापारियों, आक्रमणकारियों की नियमित गतिविधियों और मौर्य काल से ही धार्मिक प्रसार के कारण है। इस शोध का निष्कर्ष जातीय समूहों और उनके आनुवंशिक योगदान के बीच अनुवांशिक सबंधो को दिखाता हैं, जो लक्षद्वीप की आबादी को बनाने वाली जटिल माइग्रेशन को समझाता है।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/पदुम नारायण
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