वैज्ञानिकों ने पनियाला वृक्षों से फल के नमूने एकत्र किए

वैज्ञानिकों ने पनियाला वृक्षों से फल के नमूने एकत्र किए
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वैज्ञानिकों ने पनियाला वृक्षों से फल के नमूने एकत्र किए




गोरखपुर, 24 नवम्बर (हि.स.)। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा लखनऊ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ दुष्यंत मिश्र एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ सुशील कुमार शुक्ला ने शुक्रवार को विभिन्न स्थानों पर पनियाला के वृक्षों का सर्वेक्षण किया। स्वस्थ्य पेड़ों से पनियाला के फलों के नमूने एकत्र किए।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा लखनऊ के दो प्रधान वैज्ञानिकों डॉ दुष्यंत मिश्र एवं डॉ सुशील कुमार शुक्ली ने शुक्रवार को पनियाला बाहुल्य क्षेत्रों यथा नौसढ़, लक्षीपुर, नकहा, कुशीनगर का भ्रमण किया। वहां पनियाला के वृक्षों को जियो टैग करते हुए उनके फलों के नमूने इकट्ठे किए। ताकि इसके फलों का भौतिक एवं रासायनिक विश्लेषण कर उनमें उपलब्ध विविधता का अध्ययन किया जा सके। सर्वेक्षण के बाद उपलब्ध प्राकृतिक वृक्षों से सर्वोत्तम वृक्षों का चयन कर भविष्य के लिए न केवल संरक्षित किया जा सके। बल्कि उसके पौधों को कलमी विधि से तैयार कर उनके अधिकाधिक रोपण के लिए किसानों को उपलब्ध कराया जा सके।

सर्वेक्षण के दौरान अनुसंधान सलाहकार समिति मानद सदस्य प्रगतिशील किसान इंद्रप्रकाश सिंह एवं डॉ अवध नारायण द्विवेदी भी उपस्थित रहे।

गोरखपुर के जिला उद्यान अधिकारी अरुण तिवारी की मदद से राजकीय उद्यान में उपलब्ध पनियाला के वृक्षों से भी वैज्ञानिकों ने फलों के नमूने एकत्र किए।

इसलिए खास है पनियाला

हेरिटेज फाउंडेशन गोरखपुर के ट्रस्टी अनिल कुमार तिवारी ने बताया कि पनियाला को इंडियन कॉफी प्लम या पानी आंवला के नाम से भी जानते हैं। पनियाला के वृक्ष उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज क्षेत्रों में पाए जाते हैं। विभिन्न कारणो से इसकी अवैध कटान के कारण अब यह फल लगभग विलुप्त होने की स्थिति में पहुंच गए हैं। पनियाला का फल विभिन्न एंटी आक्सीडेंट एवं औषधीय तत्वों से भरपूर है। इसके फल के साथ, छाल एवं पत्तियां तक इस्तेमाल की जाती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के छठ त्योहार पर इसके फल 300-400 रुपये किलोग्राम तक बिके। इन्हीं कारणों से इस फल को भारत सरकार गोरखपुर का भौगोलिक उपदर्श (जियोग्राफिकल इंडिकेटर) बनाने का प्रयास करही है। केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ के निदेशक डॉ टी दामोदरन कहते हैं कि एक उपेक्षित फल होते हुए भी देश के वैज्ञानिकों का ध्यान खींच रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. आमोदकांत /बृजनंदन

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