शंकराचार्य भारती कृष्ण के शोध एवं दार्शनिक विचार आज भी प्रासंगिक : जगद्गुरु अधोक्षजानंद
-भारती कृष्ण देवतीर्थ ने पूरी दुनिया में लहराया वैदिक गणित एवं सनातन धर्म का परचम
-भारतीय ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विदेश जाने वाले वे पहले शंकराचार्य बने
प्रयागराज, 16 फरवरी (हि.स.)। पूर्वाम्नाय गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने गोवर्धन मठ के 143वें शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण देवतीर्थ को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वे ऐसे महान संत थे जिन्होंने वैदिक गणित की खोज कर पूरे विश्व को आश्चर्य में डाल दिया था। साथ ही सनातन धर्म और वैदिक गणित के प्रचार प्रसार के लिये पूरी दुनिया का भ्रमण किया। उनके शोध और दार्शनिक विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
गोवर्धन मठ के 145वें शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ माघमेला क्षेत्र के शंकराचार्य शिविर में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने कहा कि शंकराचार्य भारती कृष्ण देवतीर्थ जी महाराज एक महान वक्ता थे। संस्कृत में उनकी विद्वता से प्रभावित होकर मद्रास स्थित संस्कृत संघ ने उन्हें सरस्वती की उपाधि से सम्मानित किया था। उन्होंने श्रृंगेरी के तत्कालीन शंकराचार्य के सानिध्य में कठोर साधना की। उन्हीं से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली। उन्हें 1925 में गोवर्धन मठ पुरी के शंकराचार्य के रूप में विभूषित किया गया। शंकराचार्य भारती कृष्ण देवतीर्थ जी महाराज अध्यात्म के साथ ही स्वाधीनता आंदोलन में भी सक्रिय थे। ब्रिटिश हुकूमत ने राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जेल यात्रा के दौरान ही उन्होंने अथर्ववेद के सोलह सूत्रों के आधार पर गणित की अनेक प्रवृत्तियों पर अनुसंधान किया। उन्होंने वेद में बीज गणित, त्रिकोणमीति आदि की जटिल उपपत्तियों का समाधान ढ़ूंढ़ा।
स्वामी अधोक्षजानंद ने कहा कि शंकराचार्य भारती कृष्ण देवतीर्थ की खोज को लेकर देश विदेश के विद्वत् समाज में उनकी चर्चा होने लगी। उन्होंने वंडर्स आफ वैदिक मैथेमेटिक्स लिखा। इसे हिंदी में वैदिक गणित कहते हैं। इसके अलावा ब्रह्मसूत्र भाष्यम, धर्म विज्ञान आदि अनेक ग्रथों की रचना की। साथ ही विश्व में शांति के लिये विश्व पुनर्निर्माण संघ की स्थापना की। वे पहले शंकराचार्य थे जिन्होंने विदेश के कई देशों का भ्रमण किया। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों के दूरदर्शन, रेडियो, चर्च एवं महाविद्यालयों में व्याख्यान दिया। विदेश में उन्होंने वैदिक गणित एवं वेदांत दर्शन का परचम लहराया। नश्वर शरीर त्यागने से पूर्व ही उन्होंने अपने शिष्यों एवं श्रद्धालुओं से कह दिया था कि जब भी भगवान का बुलाव आ जाये, व्यक्ति को परलोक गमन के लिये तैयार रहना चाहिए। इस प्रकार उन्होंने 2 फरवरी 1960 को अपना नश्वर शरीर त्याग कर ईश्वर के परमधाम के लिये प्रस्थान किया। आज जब भारत एक बार फिर विश्वगु्रु बनने की ओर अग्रसर है, शंकराचार्य भारती कृष्ण देवतीर्थ जी महाराज के शोध और विचार हमें आगे बढ़ायेंगे।
इसके पूर्व शंकराचार्य भारती कृष्ण देवतीर्थ के चित्र पर धर्म गुरुओं, साधु-संतों, विद्वानों एवं श्रद्धालुओं ने माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। श्रद्धांजलि सभा में शंकराचार्य परंपरा संवाहक स्वामी रामदेवानंद सरस्वती, स्वामी ब्रह्मदेवाश्रम, जगद्गुरु रामानुजाचार्य, ब्रह्मर्षि पीठाधीश्वर ताड़केश्वर शरण, महंत त्रिवेणी पुरी, महामंडलेश्वर झंडा बाबा आदि शामिल थे।
हिन्दुस्थान समाचार /पीएन द्विवेदी
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