फ्लैशबैक: जब आडवाणी ने किया कारसेवा का ऐलान, 1990 में रथयात्रा के जरिए राम मंदिर आंदोलन को दी धार, जानिए उस दिन क्या हुआ...

ram mandir protest
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अयोध्या। रामलला के प्राण प्रतिष्ठा में चंद घंटे ही शेष बजे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। बताया जा रहा है कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला का दरबार आम दर्शनार्थियों के लिए खुल जाएगा। 

राम के आने की ख़ुशी भी लोगों में ऐसी है कि भयंकर ठंड में भी लोग अपने आराध्य के स्वागत के लिए मैदानों में डेरा जमाए हुए हैं। सनातनी आस्था के प्रतीक राम मंदिर के लिए सैकड़ों हिन्दुओं ने अपना बलिदान दिया है। अब उन संतों की आत्मा को सच्ची श्रद्धांजली मिलेगी, जिन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के भव्य मंदिर के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। 

500 वर्षों की सनातनियों की तपस्या का अंत होने जा रहा है। ‘रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे…’ से ‘मंदिर वहीं बन गया…’ का नारा सफल हुआ। भगवान राम का मंदिर वहीं बना है, जहां कभी औरंगजेब द्वारा मंदिर गिराकर विवादित ढांचा बनाया गया था। दशकों लड़ाई चली और आख़िरकार वर्ष 2019 में सुप्रीमकोर्ट ने हिन्दुओं के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। राम जन्मभूमि की लड़ाई में 1990 अहम पड़ाव था, इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ता थे- बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी। 

राम मंदिर आंदोलन की कहानी जानने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। वर्ष 1987 के आसपास राम जन्मभूमि आंदोलन को धार मिलने लगी थी। हिन्दू पक्ष लगातार विवादित स्थल का ताला तोड़ने और पूजा करने की मांग कर रहा था। विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी जैसे संगठन एकजुट होकर आंदोलनरत थे। इसके लिए केंद्र की कांग्रेस सरकार से बात भी हुई, लेकिन बात नहीं बन पाई। 

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जब कांग्रेस की केंद्र और राज्य सरकार ने राम मंदिर का किया शिलान्यास

1987 अयोध्या के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। अयोध्या (तब फैजाबाद) की एक अदालत ने विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया, तो कांग्रेस ने इसे भुनाने का प्रयास किया। 1989 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र की राजीव गांधी सरकार और उत्तर प्रदेश की एनडी तिवारी सरकार ने राम मंदिर का शिलान्यास भी कर दिया। 

बीजेपी और संघ ने लगाया ध्रुवीकरण का आरोप

उस समय बीजेपी, संघ और विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों ने कांग्रेस पर ध्रुवीकरण का आरोप लगाया और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बीजेपी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवा का ऐलान किया और रामभक्तों से अयोध्या पहुंचने का ऐलान किया। आडवाणी ने स्वयं भी 12 सितम्बर 1990 को रथयात्रा निकालकर अयोध्या पहुंचने का ऐलान किया। 

आडवाणी का रथ तैयार करवाने की जिम्मेदारी प्रमोद महाजन को मिली। उन दिनों आडवाणी का रथ तैयार करने वाले मुंबई निवासी प्रकाश नलावडे उस किस्से को याद कर आज भी सिहर उठते हैं। चेंबूर में रहने वाले नलावडे का तब साज-सज्जा का व्यवसाय था। वह कहते हैं कि यात्रा से कुछ दिन पहले भाजपा नेता प्रमोद महाजन ने मुझसे संपर्क किया।

एल्युमिनियम से बना अभेद्य रथ

आर्ट डायरेक्टर शांति देव (Shanti Dev) ने रथ डिजाइन किया और मुझे इसे बनाने को कहा। हमने रथ बनाने के लिए एल्यूमीनियम और अन्य कठोर धातुओं का उपयोग किया ताकि यह गंभीर से गंभीर परिस्थितियों का सामना कर सके। नलावडे कहते हैं कि आडवाणी के रथ में एक वातानुकूलित केबिन और बिजली बैकअप जैसी सुविधाएं थीं।

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प्रकाश नलावडे बताते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी का रथ सिर्फ 10 दिन में बनकर तैयार हो गया। इस ‘रथ’ को लगभग 10 हजार किलोमीटर की यात्रा करनी थी। 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से आडवाणी की रथयात्रा शुरू हुई। इस यात्रा को देश के तमाम हिस्सों से होते हुए अयोध्या पहुंचना था और फिर 30 अक्टूबर को कारसेवा में शामिल होना था। प्रमोद महाजन, नरेंद्र मोदी जैसे नेता रथयात्रा की पूरी कमान संभाल रहे थे।

जब लालू ने आडवाणी के रथ को रोकने की बनाई योजना

आडवाणी की रथयात्रा बिहार पहुंची। 23 अक्टूबर की रात वह समस्तीपुर के सर्किट हाउस में रुके थे। रात करीब 1:30 बजे उनके कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई। सामने कुछ पुलिस अफसर खड़े थे। उन्होंने आडवाणी से कहा कि आपको गिरफ्तार कर लिया गया है। तब बिहार में लालू यादव की सरकार थी और तय किया था कि आडवाणी को अयोध्या नहीं पहुंचने देंगे।

पुलिस वालों की बात सुनकर आडवाणी ने कहा- ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’…और वह अफसरों के साथ आगे बढ़ गए।

30 अक्टूबर की घटना बन गई इतिहास

आडवाणी की गिरफ्तारी से कार सेवक और उग्र हो गए। इसके बाद जो हुआ वह सबको मालूम है। 30 अक्टूबर को आडवाणी तो अयोध्या नहीं पहुंच पाए लेकिन हजारों की तादाद में कार सेवक पहुंचे। जब वे विवादित बाबरी ढांचे की तरफ जाने लगे तो यूपी की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस गोलीबारी में 5 कार सेवकों की जान गई।

30 अक्टूबर की गोलीबारी के बाद माहौल और गरमा गया। 2 नवंबर को फिर अशोक सिंघल, उमा भारती जैसे नेताओं की अगुवाई में कार सेवक ढांचे की तरफ बढ़े। इस बार फिर गोली चली और कई कार सेवकों की जान गई।

6 दिसंबर 1992 को गिर गया विवादित ढांचा

1990 के गोलीकांड ने आग में घी डालने का काम किया और राम मंदिर आंदोलन और मजबूती से आगे बढ़ने लगा। इसके बाद आया साल 1992। तब तक केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों जगह सरकार बदल चुकी थी। केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी तो उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह (Kalyan Singh) मुख्यमंत्री थे। 6 दिसंबर 1992 को फिर हजारों की तादाद में कार सेवक अयोध्या में इकट्ठा हुए। इस बार उन्होंने विवादित ढांचे को ढहा दिया।

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