सर्दी में वैज्ञानिक विधि से पपीते की फसल का प्रबंधन करने से किसानों को होगा लाभ: डॉ.अरुण

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सर्दी में वैज्ञानिक विधि से पपीते की फसल का प्रबंधन करने से किसानों को होगा लाभ: डॉ.अरुण


सर्दी में वैज्ञानिक विधि से पपीते की फसल का प्रबंधन करने से किसानों को होगा लाभ: डॉ.अरुण


कानपुर, 30 नवम्बर (हि.स.)। सर्दी में पपीते की फसल का प्रबंधन करना अति आवश्यक है। पपीते की फसल के पौधों की रोपाई जुलाई—अगस्त के महीने में हो जाती है। यदि वैज्ञानिक विधि से इस फसल की देखरेख की जाए तो किसान भाइयों को इससे लाभ होगा। यह जानकारी गुरुवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर के उद्यान वैज्ञानिक डॉ अरुण कुमार सिंह ने दी।

उन्होंने बताया कि सर्दी में किसान भाइयों को ऐसी फसल की समसामयिक देखभाल करना आवश्यक है। यदि पौधों पर मिट्टी न चढ़ाई गई हो तो तत्काल शेष पोषक तत्व नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, सूचम पोषक तत्व 40 :50: 50 :10 ग्राम प्रति पौधा गुड़ाई करके दे दें।

उद्यान वैज्ञानिक डॉक्टर सिंह ने बताया कि आने वाले सर्दियों के मौसम में पपीते के खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखें क्योंकि पौधों की बढ़वार काफी होती है साथ ही पौधों पर लगे हुए फलों की तेजी से वृद्धि भी होती है। सर्दियों के मौसम में वैसे तो बीमारियां पौध गलन कम प्रभाव होता है किन्तु आवश्यकता से अधिक पानी लग जाने से पपीते के पौधों की जड़ों पर गलने की बीमारी का प्रकोप तेजी से होता है। यदि रोकथाम न की जाए तो यह बीमारी सिंचाई के पानी के साथ और ज्यादा विकराल रूप धारण कर लेती है। इस गलन की बीमारी से बचाव हेतु कॉपर ऑक्सिक्लोराइड दवा 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर तने के आसपास अच्छी तरीके से तर कर देना चाहिए। यदि बीमारी दोबारा आए तो इसी दवा को फिर से प्रयोग करें।

पपीते में ड्रिप सिंचाई से किसानों की होती है बचत

उन्होंने बताया कि पपीते की खेती में ड्रिप सिंचाई पद्धति का प्रयोग करने से पानी की काफी बचत होती है। साथ ही फलों का विकास भी अच्छी तरह से होता है। पपीते की फसल को ठंड से बचाव हेतु उत्तर पश्चिम दिशा की ओर बाड़ लगाने का कार्य पूर्ण कर लेना चाहिए जिससे पौधों पर विपरीत मौसम का प्रभाव न पड़े।

उन्होंने ने कहा कि फलों की पूर्ण विकास के लगभग 50 से 60 दिनों बाद इनके पकने की प्रक्रिया प्रारंभ होने लगती है दूर के बाजार में फसल बेचने के लिए फलों की रंग की अवस्था पर ही तोड़ लेना चाहिए तथा अच्छी तरह से अखबार या पुआल से लपेट कर भेजना चाहिए।

डॉक्टर सिंह ने बताया कि पपीते के फलों को हानिकारक रसायनों से पकाने की प्रथा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उन्होंने किसान भाइयों को यह भी सलाह दी कि पपीते के फलों को आधुनिक तकनीक से बनाए गए रायपनिंग चेंबर का प्रयोग करने से फलों की गुणवत्ता अच्छी रहती है।तथा बाजार में मूल्य भी अच्छा मिलता है।

हिन्दुस्थान समाचार/ राम बहादुर/बृजनंदन

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