संपादकाचार्य बाबू राव विष्णु पराड़कर की जयंती मनी, संघर्ष और योगदान की चर्चा
वाराणसी, 19 नवम्बर (हि.स.)। संपादकाचार्य बाबू राव विष्णु पराड़कर उस नीव के पत्थरों में से हैं जिन्होंने अपने अस्तित्व को मिटाकर स्वतंत्रता का विशाल भवन खड़ा किया। पराड़कर ने हिंदी पत्रकारिता की मजबूत नीव तैयार की। वे अपने सिद्धांतों में अटल, अनुशासन में सख्त, शुद्धता के आग्रही और देश के लिए त्याग करने वाले पत्रकार थे। यह विचार रविवार को पराड़कर जयंती पर काशी पत्रकार संघ द्वारा आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं के हैं।
बतौर मुख्य वक्ता महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता व जनसंचार विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर अनिल कुमार उपाध्याय ने कहा कि भले ही भारतीय स्वतंत्रता का श्रेय महात्मा गांधी को जाता है परन्तु पराड़कर जी की भूमिका कमतर नहीं थी। उन्होंने वैचारिक क्रांति दी। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए संघ के अध्यक्ष डाॅ. अत्रि भारद्वाज ने कहा कि पराड़कर पत्रकारिता के साथ-साथ साहित्य के आचार्य भी थे। वरिष्ठ पत्रकार शुभाकर दुबे का लिखित वक्तव्य था कि पराड़कर युगीन पत्रकारिता और आज की पत्रकारिता को तौला नहीं जा सकता। आज की पत्रकारिता मिशन विहीन है।
वरिष्ठ पत्रकार राजेश यादव ने पत्रकारिता पर बाजारवाद के हावी होने पर चिंता जतायी। संघ के पूर्व अध्यक्ष सुभाष चन्द्र सिंह ने हिंदी पत्रकारिता के लिए सोशल मीडिया को खतरनाक बताया। संजय मिश्र ने इस बात पर चिंता जतायी कि आज अखबार राजनीतिक दलों के मुखापेक्षी हो गए हैं। डॉ. आशुतोष पाण्डेय ने कहा कि साहित्य, समाज और मीडिया के लिए मानवीय मूल्य जरूरी है जिसका नितांत अभाव है। डाॅ. कवीन्द्र नारायण ने कहा कि पत्रकारों और अखबारों को समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। गोष्ठी में सुशील मिश्र, विमलेश चतुर्वेदी व इदरीस अहमद ने भी विचार रखा।
कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन संघ के महामंत्री अखिलेश मिश्र ने किया। इस अवसर पर संघ के पूर्व अध्यक्ष बी.बी. यादव, राममिलन लाल श्रीवास्तव, सुरेश पाण्डेय, इन्द्रेश श्रीवास्तव, कुलदीप सिंह, अजय यादव, सोनू कुमार आदि की मौजूदगी रही।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/दिलीप
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