मानव में नाट्य प्रतिभा नैसर्गिक रुप से होती है विद्यमान : प्रति कुलपति
- पंद्रह दिवसीय रंगमंच कार्यशाला का आयोजन
कानपुर, 26 जून (हि.स.)। रंगमंच के कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित होने चाहिये, क्योंकि मानव में नाट्य प्रतिभा नैसर्गिक रूप से विद्यमान होती है। इसको निखार कर व्यक्ति व्यक्तिगत जीवन एवं सामाजिक जीवन में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकता है। यह बातें बुधवार को छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू) के प्रति कुलपति प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी ने कही।
सीएसजेएमयू के अंतरराष्ट्रीय अतिथि गृह के सभागार में बुधवार को पंद्रह दिवसीय रंगमंच कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि डॉ वंदना पाठक, प्रति कुलपति प्रोफेसर सुधीर कुमार अवस्थी, वित्त अधिकारी अशोक कुमार त्रिपाठी, शिक्षा विभागाध्यक्ष डॉ रश्मि गोरे ने दीप प्रज्ज्वलन के जरिये हुआ।
डॉ. वंदना पाठक ने कहा कि रंगमंच व्यक्तित्व के विविध आयामों भाषा, अनुशासन, स्मृति, अभिव्यक्ति को पुष्ट करता है। इस प्रकार की कार्यशालाओं के माध्यम से विद्यार्थी अपने व्यक्तित्व को मुखर बनाने के साथ साथ इसको अपनी वृत्ति भी बना सकते है। जाने माने रंगमंच कलाकार रतन राठौर ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन की भांति रंगमंच पर रीटेक करने का अवसर नहीं है। रंग मंच दर्शक का सम्मान, अनुशासन, आत्मसम्मान और विश्वास जगाता है। इस कार्यशाला का उद्देश्य प्रतिभा चयन के साथ साथ प्रतिभागियों के व्यक्तित्व विकारों को दूर करना है।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में प्रतिभागियों के अलावा विभिन्न विभागों से आए शिक्षक डॉ. बद्री नारायण मिश्र, डॉ. शुभम वर्मा, डॉ. शिवांशु सचान, प्रदीप तिवारी आदि उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय/दीपक/मोहित
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