800 वर्ष पहले थाईलैंड से भारत आये ताई—अहोम का डीएनए अध्ययन,आनुवंशिक इतिहास का खुलासा
वाराणसी, 28 मार्च (हि.स.)। अहोम राजवंश, जिसे ताई-अहोम के नाम से भी जाना जाता है, 12वीं शताब्दी (800 वर्ष पहले) में थाईलैंड से भारत आया था। इतिहासकारों का लम्बे समय से अहोम के अध्ययन में रूचि रही है। इतिहासकारों की टीम ने शोध अध्ययन के बाद असम में अहोम आबादी के आनुवंशिक इतिहास का खुलासा किया है।
टीम का शोध अध्ययन रिपोर्ट प्रतिष्ठित ह्यूमन मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स जर्नल में भी प्रकाशित हुआ है। शोध टीम में प्राचीन डीएनए लैब, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियोसाइंसेज, लखनऊ, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मैंगलोर विश्वविद्यालय, मैंगलोर, डेक्कन कॉलेज, पुणे और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सात शोधकर्ता शामिल थे। इस टीम का सह नेतृत्व बीएचयू के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे और बीएसआईपी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नीरज राय ने किया।
शोध टीम के अनुसार थाईलैंड से आने के बाद अहोम ने एक राजवंश की स्थापना की, और लगभग 600 वर्षों तक शासन किया। हालाँकि, अभी तक इस विशेष आबादी पर कोई अनुवांशिक अध्ययन नहीं हुआ था। टीम ने भारत के असम में रहने वाली आधुनिक अहोम आबादी के बीच 612,240 ऑटोसोमल मार्करों का अनुवांशिक अध्ययन किया। इस अध्ययन के पहले लेखक डॉ. सचिन कुमार ने बताया कि अहोम राजवंश थाईलैंड से अपने माइग्रेशन के बाद इस क्षेत्र में रहने वाली हिमालय के आबादी के साथ अनुवांशिक रूप से घुलमिल गया।
डॉ. नीरज राय ने बताया कि हाई-रिज़ॉल्यूशन हैप्लोटाइप-आधारित विश्लेषण ने इस अहोम आबादी को मुख्य रूप से नेपाल की कुसुंडा और मेघालय की खासी आबादी खासी से अनुवांशिक समानता दिखाई है। अध्ययन से यह भी पता चला कि अहोम आबादी अनुवांशिक रूप से अपनी पैतृक मातृभूमि (थाईलैंड) से काफी हद तक अलग हो गई है, और स्थानीय भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी के साथ घुल-मिल गई है। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र पूरे एशिया में आधुनिक मनुष्यों के फैलाव का प्रवेश द्वार रहा है, और यह अध्ययन इस विचार का समर्थन करने वाले आनुवंशिक साक्ष्य को भी प्रस्तुत करता है।
शोध दल को उम्मीद है कि यह अध्ययन भारत और विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र के आनुवंशिक इतिहास की बेहतर समझ में योगदान देगा। इस अध्ययन के निष्कर्षो ने भारत के मानव जनसंख्या आनुवंशिकी और माइग्रेशन अध्ययन के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ दिया है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जीन वैज्ञानिक प्रो.ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा की यह महत्वपूर्ण अध्ययन भारत में अहोम राजवंश के आनुवंशिक मिश्रण को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह आबादी के माइग्रेशन पैटर्न और उनके नए वातावरण में घुल मिल जाने को बेहतर ढंग से समझने के लिए आबादी के आनुवंशिक इतिहास का अध्ययन करने के महत्व पर प्रकाश डालता है।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/बृजनंदन
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