माघ मेला : ग्रामीण महिलाओं को मिले रोजगार के अवसर तो नाविकों के चेहरे खिले
-संगमनगरी में माघ मेला क्षेत्र के आसपास के गांवों में महिलाएं तैयार कर रही हैं गोबर के उपले और मिट्टी के चूल्हे
-माघ मेले में साधु -संतों और कल्पवासियों के अस्थायी शिविरों में रहती है उपलों और मिट्टी के चूल्हों की मांग
-मेला में हीटर और छोटे एलपीजी सिलेंडर पर पाबंदी से बढ़ी उपलों और मिट्टी के चूल्हों की मांगप्रयागराज, 21 दिसम्बर (हि.स.)। संगमनगरी में त्रिवेणी के तट पर 03 जनवरी से आयोजित होने जा रहे माघ मेला की शुरूआत के लिए अब दो हफ्ते का समय है। आस्था और अध्यात्म के यह महासमागम लाखों लोगों की जीविका का जरिया भी बन रहा है। महाकुम्भ नगर के अंतर्गत आने वाले गांवों में कई ग्रामीण महिलाओं की जीविका के महाकुम्भ ने नए अवसर दे दिए हैं। -15 हजार से अधिक ग्रामीण परिवारों के लिए जीविका का जरियासंगम किनारे 3 जनवरी से आयोजित होने जा रहा माघ मेला होटल, ट्रैवल और टेंटेज, फूड जैसे औद्योगिक सेक्टर के साथ छोटे-मोटे काम करने वाले लोगों के लिए भी जीविका के अवसर प्रदान कर रहा है। गंगा किनारे आकार ले रहे तंबुओं के इस नगर के अंतर्गत आने वाले 27 गांवों में पशुपालन से जुड़े कार्य में लगे परिवारों की 15 हजार से अधिक आबादी के लिए इस आयोजन ने जीविका का जरिया दे दिया है। नदी किनारे बसे कई गाँवों में इन दिनों ईंधन के रूप में उपलों का नया बाजार विकसित होने लगा है। इन गाँवों में नदी किनारे बड़ी तादाद में उपलों की मंडी बन गई है। गाँवों में इन दिनों गोबर से बने उपलों को बनाने में स्थानीय महिलाएं पूरे दिन लगी रहती हैं। मेला क्षेत्र के गंगा किनारे बसे बदरा सोनौटी गांव की विमला यादव का कहना है कि घर में चार भैंस और गाय हैं। जिनसे साल भर हम उपले बनाते हैं और इन्हें इकट्ठा करते रहते हैं। माघ महीने में कल्पवास करने आने वाले कल्पवासियों के यहां इनको भेजते हैं। मलावा खुर्द गांव की आरती सुबह से ही अपने घर की खाली रहने वाली महिलाओं के साथ मिट्टी के चूल्हे तैयार करने में जुट जाती हैं। आरती बताती हैं कि माघ मेले में कल्पवास करने आने वाले श्रद्धालुओं का खाना इन्ही चूल्हों पर तैयार होता है। इसके लिए अभी तक उनके पास सात हजार मिट्टी के चूल्हे तैयार करने के ऑर्डर मिल चुके हैं। साधु-संतो के शिविरों में भी इनके उपले और चूल्हों की अच्छी मांग है । -नाविकों की संख्या में बढ़ोतरी, महाकुम्भ की आमदनी का असरप्रयागराज सर्वाधिक कमाई करने वाले नाविक समाज में इस बार माघ मेले को लेकर सबसे अधिक उम्मीदें हैं। कई निषाद परिवार इस समय नई नाव संगम में उतारने की तैयारी में लगे हैं। जिसके पीछे महाकुम्भ का उनका सुखद अनुभव है। दारागंज के दशाश्वमेध घाट की निषाद बस्ती में रहने वाले बबलू निषाद बताते हैं कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों तक को एक महीने तक चलने वाले माघ मेले के लिए बुला लिया है। माघ मेले में सरकार की तरफ से जिस तरह 12 से 15 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है, उसमें अगर 5 करोड़ भी नावों से आए तो एक बार नाविक समाज की तकदीर बन जाएगी। -शिविरों में बिजली के हीटर और छोटे एलपीजी सिलेंडर के इस्तेमाल में लगी रोक बनी सहायकमहाकुम्भ आयोजन के बाद कल्पवास करने की शुरुआत करने वालों की संख्या में हर बार बढ़ोतरी होती है। एडीएम मेला दयानंद प्रसाद के मुताबिक इस बार माघ मेले में 6 हजार से अधिक संस्थाएं बसाई जा रही हैं। इसमें 4 लाख से अधिक कल्पवासियों को भी जगह मिलेगी। मेला क्षेत्र में बड़ी संस्थाएं वैसे तो कुकिंग गैस के बड़े सिलेंडर का इस्तेमाल करती हैं क्योंकि इन्हें प्रतिदिन लाखों लोगों को भोजन कराना होता है, लेकिन धर्माचार्य, साधु संत और कल्पवासी अभी भी अपनी पुरानी व्यवस्था के अंदर ही खाना बनाते हैं। कुछ स्थानों पर आग लगने की घटनाओं में हीटर और छोटे गैस सिलेंडर का इस्तेमाल बड़ी वजह पाये जाने के कारण मेला प्रशासन ने रोक लगा दी है। इस नई व्यवस्था से भी अब गांव की इन महिलाओं के हाथ से बने उपलों और मिट्टी के चूल्हों की मांग बढ़ गई है। तीर्थ पुरोहित प्रदीप तिवारी बताते हैं कि तीर्थ पुरोहितों के यहां ही सबसे अधिक कल्पवासी रुकते हैं। उनकी पहली प्राथमिकता पवित्रता और परम्परा होती है। इसके लिए वह मिट्टी के चूल्हों पर उपलों से बना भोजन ही बनाना पसंद करते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र

