लमही में देशभर से जुटे संस्कृति धर्मियों ने भारत के वास्तविक चरित्र को किया पेश

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लमही में देशभर से जुटे संस्कृति धर्मियों ने भारत के वास्तविक चरित्र को किया पेश


वाराणसी, 31 अक्टूबर (हि.स.)। फिलिस्तीन और इजराइल के बीच युद्ध से उपजे नफरत की आग पर प्रेम की बरसात करने के लिए देशभर के संस्कृतिधर्मियों ने मंगलवार को लमही स्थित सुभाष भवन में गीत संगीत और अभिनय को माध्यम बनाकर दुनियां को शांति का पैगाम दिया । विशाल भारत संस्थान एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित भक्ति गीत परम्पराओं के माध्यम से भारत की सांझा संस्कृति का विकास विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम में देश विदेश के संस्कृतिधर्मी, नाटककार, भक्तिगीत के मर्मज्ञ जुटे। जाने-माने इशभक्ति गायक मिलिंद करमरकर एवं सामाजिक विज्ञान संकाय की संकायाध्यक्ष प्रो० बिन्दा परांजपे ने सुभाष मन्दिर में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को पुष्प अर्पित किया एवं आरती कर मत्था टेका। दीप प्रज्जवलित कर समारोह की शुरूआत की।

संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीवास्तव ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि आज विश्व युद्ध की विभीषिका के अलावा उपजे नफरत से जूझ रहा है। ऐसे में काशी से देशभर के संस्कृतिधर्मियों ने शांति का पैगाम भेजा है। काशी की यह पहल विश्व के लोगों को नई दिशा देने वाला है। पैगम्बरी नात पेश कर अनुष्का निकम ने कहा ‘क्या मिलेगा किसी को किसी से, आदमी है जुदा आदमी से। हमने सीखा अंधेरों से जीना, आप घबरा गए रौशनी से।’ आगे उन्होंने मराठी भाषा में एक गीत प्रस्तुत किया जिसका भावार्थ था- हमारे घर में न कोई अमर है न कोई गरीब, इस संसार में मैं एक छोटा सा कोना खोजना चाहती हूँ जहां मैं शांति से रहना चाहती हूँ। जहां प्रेम है वहां जाना चाहती हूँ।

खुसरो फाउंडेशन के समन्वयक डा० हाफिजुर्रहमान ने कहा कि पहले और आखिरी हिन्दुस्तानी है। इसके लिए कभी कोई समझौता नहीं हो सकता। दुनियां की सभी सभ्यताएं ईरान, यूनान, मिस्र, सीरीया सभी सभ्यताएं खत्म हो गईं, किन्तु हिन्दुस्तान आज भी जिन्दा है। हिन्दुस्तान ने दुनियां को एस्ट्रोलॉजी, पंचतंत्र, गणित, विज्ञान, अध्यात्म का ज्ञान सिखाया। आज भारत का सपना तभी पूरा हो पाएगा जब हम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, मदन मोहन मालवीय को अपना आदर्श बनाएंगे। भगवान श्रीराम की भक्ति को लेकर तुलसी और कबीर का भजन प्रस्तुत करते हुए मुम्बई के मिलिंद करमरकर ने भक्ति की गंगा बहा दी। मराठी में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एवं आजाद हिन्द फौज के देश के प्रति त्याग और समर्पण को ‘जयोस्तुते, जयोस्तुते, जयोस्तुते ध्वजधारी’ के भाव को प्रस्तुत किया। अमृत महोत्सव के संदर्भ में गीत प्रस्तुत करते हुए- ‘भारत की स्वतंत्रता की निरंतर बहती रहे गंगा, हर दम हर दिन लहराएंगे हम तिरंगा’। उन्होंने कहा कि भारत की संगीत एवं योग ने पूरी दुनियां में भारत को विश्वगुरू बनाया।

कश्मीर की अंजलि अदाकौल ने अपनी गजल से सांझा संस्कृति का पैगाम दिया। प्रो० बिन्दा परांजपे ने कहा कि शिक्षा और संस्कृति क्लास रूम से बाहर निकलकर समाज के लोगों तक पहुंचना चाहिये। संगोष्ठी का संचालन नाजनीन अंसारी ने किया। इस अवसर पर डा० कवीन्द्र नारायण, डा० अर्चना भारतवंशी, डा० मृदुला जायसवाल, नजमा परवीन, आभा भारतवंशी, नौशाद शेख, अफसर बाबा, शहाबुद्दीन जोसेफ, अजीत सिंह टीका, अनिल पाण्डेय, अलाउद्दीन, खलोकुद्दीन, विनोद यादव, इली भारतवंशी आदि भी मौजूद रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/पदुम नारायण

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