पहली भोजपुरी फिल्म 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो' की 62वीं वर्षगांठ मनी

पहली भोजपुरी फिल्म 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो' की 62वीं वर्षगांठ मनी
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पहली भोजपुरी फिल्म 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो' की 62वीं वर्षगांठ मनी


- विश्व भोजपुरी सम्मेलन ने भारत सरकार से पृथक भोजपुरी फिल्म सेंसर बोर्ड गठन की आवाज उठी

वाराणसी,05 फरवरी (हि.स.)। विश्व भोजपुरी सम्मेलन ने सोमवार को दिगंबर जैन मंदिर काम्प्लेक्स में भारतीय सिनेमा जगत की पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ की 62वीं वर्षगांठ मनाई। भोजपुरी फिल्मों में व्याप्त फूहड़ता,

अश्लीलता और दुर्दशा के मद्देनजर भारत सरकार से पृथक भोजपुरी फिल्म सेंसर बोर्ड के गठन की पुरजोर आवाज भी उठाई। बैठक की अध्यक्षता करते हुए भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय समन्वयक डॉ.अपूर्व नारायण तिवारी ने कहा कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद की प्रेरणा से चरित्र अभिनेता नजीर हुसैन ने फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ की पटकथा लिखी थी। वाराणसी में फिल्म का पहला प्रीमियर शो लहुराबीर स्थित प्रकाश टाकीज में पांच फरवरी सन् 1962 को हुआ था। पहली भोजपुरी फिल्म के अधिकांश कलाकार, निर्देशक और तकनीशियन आदि बनारस और आस-पास के जिलों के थे। इस श्वेत श्याम सुपर हिट गोल्डन जुबली फिल्म की अधिकांश शूटिंग बनारस में ही की गयी थी। इस विशिष्ट क्लासिकल फिल्म के अभिव्यंजक दृश्यों में संघर्षशील प्रेम कथा भरी है। जो कि शैलीगत स्पर्श के साथ मानवीय जीवन की कड़वी वास्तविकताओं से भी रुबरु कराती है।

डॉ.अपूर्व नारायण तिवारी ने बताया कि इस फिल्म को देखने के लिए तब सैकड़ों किलोमीटर दूर से लोग बनारस आते थे। गंगा स्नान के बाद वे फिल्म देखकर तर जाते थे और लोर गिराते तृप्त हो जाते थे। फिल्म में इतना सजीव चित्रण था। इस तरह से भोजपुरी सिनेमा का इतिहास शुरू होता है पांच फरवरी सन् 1962 से। श्री तिवारी ने कहा कि तबसे आज तक 62 वर्षों में भोजपुरी फिल्मों की दशा बिगड़ कर अर्श से फर्श सदृश हो गयी है। वे बाजारवाद से प्रभावित होकर दुर्दशा की शिकार हो गयी हैं। ऐसे विषम परिस्थितियों में आज भोजपुरी फिल्मों के लिए एक पृथक भोजपुरी फिल्म सेंसर बोर्ड का गठन किया जाना अपरिहार्य हो गया है।

कार्यक्रम में डॉ.आनंद प्रकाश तिवारी ने इस फिल्म का टाइटल गीत ‘हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो, साजन से कराय दा मिलनवा हमार’ गाया। उन्होंने कहा कि मातृभाषा में बनी फिल्में जीवन की सच्चाइयों से रुबरु कराती थीं और आज कि फिल्में बस कोरा दिवा स्वप्न ही दिखाती हैं।

कार्यक्रम में डा.दिनेश सिंह, आशीष राय, सुशील पांडेय, ओ.पी.शर्मा, काशीनाथ तिवारी, आलोक बर्मन, राहुल शाह, बच्चेलाल गौड़, एस.पी. शुक्ला आदि ने भागीदारी की।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/मोहित

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