पाठ्यक्रम में बनाए भारतीय भाषाओं के लिए जगह : प्रो. टीवी कट्टीमनी
मेरठ, 11 दिसम्बर (हि.स.)। आंध्र प्रदेश केन्द्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.टीवी कट्टीमनी ने कहा कि अध्ययन-अध्यापन के स्तर को बनाए रखने के लिए पाठ्यक्रम को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि उसमें भारतीय भाषाओं के लिए जगह बने। साथ ही उच्च स्तर पर रोजगार सृजित किए जाएं। रोजगार के क्षेत्र में नए राजगार क्षेत्र निर्मित हो रहे हैं, जिनमें अनुवाद और कन्टेंट राइटिंग नया क्षेत्र है।
भारतीय भाषा दिवस 2023 के अवसर पर सोमवार को चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं भारतीय भाषाएं' विषय पर वेबगोष्ठी का आयोजन किया गया।
वेबगोष्ठी की अध्यक्षता आंध्र प्रदेश आदिवासी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टीवी कट्टीमनी ने की। गोष्ठी में विषय विशेषज्ञ भारतीय भाषा भवन गुजरात विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. कमलेश चौकसी, डॉ. जोनाली बरूआ, प्रो. वाचस्पति मिश्र, प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी रहे। प्रो. टीवी कट्टीमनी ने कहा कि शिक्षक को हमेशा विद्यार्थी की भूमिका में रहना चाहिए ताकि वह नवोन्मेषी दृष्टि से लैस होकर राष्ट्रनिर्माण में अपनी भूमिका निभा सके। नई शिक्षा नीति में नई संभाव्यता है, जिसमें भाषा साहित्य एवं संस्कृति का उत्थान समाहित है।
प्रो.नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि सुब्रह्मण्यम भारती ने विभिन्न धाराओं में साहित्य रचना की है। भारत की पंजाबी,तमिल,तेलुगु,उर्दू आदि भारतीय भाषाएं विश्वस्तर पर अपनी पहचान बना रही हैं। भारतीय शासन प्रशासन भी भारतीय भाषाओं में कामकाज को लेकर दृढ़ प्रतिज्ञ है और भारतीय भाषाओं में कार्य, शोध और अध्ययन को प्रोत्साहित कर रहे हैं। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय भाषाओं में विश्वस्तरीय कार्य हो रहे हैं। विश्वविद्यालय स्तर पर क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन और शोध कार्य हो रहे हैं। भारतीय भाषाओं में लिपि के स्तर पर अध्ययन का नया क्षेत्र शोध के लिए खुला है। 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के अन्तर्गत अध्ययन और शोध क्षेत्रीय बोलियों को भी केन्द्र में लेकर आएगा। संस्कृत में ज्ञान की विस्तृत परम्परा है।
प्रो. कमलेश चौकसी ने कहा कि संसार के प्रत्येक प्राणी की एक भाषा है। जैसे माँ से प्राणी का संबंध है, वैसा ही संबंध भाषा से है। हमारे पास समुद्र के रूप में संस्कृत भाषा है। हमारे पास समृद्ध रूप में अनेक भाषाएं और बोलियां है। अपनी भाषा और बोलियों के विकास में सहयोग करने से आपका जीवन सार्थक हो सकता है।
प्रो. वाचस्पति मिश्र ने कहा कि जब तक हम भारतीय भाषाओं को महत्व नहीं देंगे तब तक विश्वगुरू बनने की इच्छा कल्पना ही रहेगी। डॉ. जोनाली बरूआ ने कहा कि भाषा विकास के लिए अनुवाद और परिभाषिक शब्दावली का निमार्ण होना अनिवार्य है। संचालन डॉ. विद्या सागर सिंह ने किया।
कार्यक्रम में डॉ. अंजू, डॉ. आरती राणा, डॉ. यज्ञेश कुमार, पूजा यादव, पूजा, रेखा, प्रिंसी, प्रियंका, मोनिका, आयुषी, विक्रांत, रिया सिंह, साक्षी मलिक, अरशदा रिजवी आदि उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. कुलदीप/राजेश
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